अनुवाद और रूपांतरण में प्रतिलिप्यधिकार की भूमिका
(Role of Copyright in Translation and adaptation)
अनुवाद और रूपांतरण में प्रतिलिप्यधिकार या कॉपीराइट की अति महती भूमिका है। हर समाज एवं देश अपने सर्जकों, कलाकारों, रचनाकारों की सृजनात्मकता एवं उपलब्धि से गौरवान्वित होता है। साहित्य एवं कला के सृजन एवं प्रोन्नयन से संस्कृति की श्रीवृद्धि होती है। प्रतिलिप्यधिकार सर्जक, रचनाकार या कलाकार को कई तरह के अधिकार देता है जिससे वह अपनी रचना पर अपना अधिकार दर्शा सकें तथा उससे आर्थिक सहायता भी प्राप्त हो सके। प्रतिलिप्यधिकार सर्जक के अधिकारों एवं हितों की रक्षा करता है। अगर सही अर्थों में देखा जाय तो यह एक प्रकार का निषेधकारी अधिकार है। रचयिता या सर्जक को यह अधिकार है कि वह हर व्यक्ति को अनुमति लिये बिना उसकी प्रतिलिपि बनाने से रोक सकता है। प्रतिलिप्यधिकार उसे सुरक्षा प्रदान करता है कि उसकी कृति का किसी भी तरीके का अन्य व्यावसायिक प्रयोग नहीं किया जा सके। भारत में प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम 1957 के अनुसार प्रतिलिप्यधिकार लेखक, सर्जक या रचनाकार की मृत्यु के 60 वर्ष तक बना रहता है तथा उसके अगले कैलेंडर वर्ष से ही वह कृति प्रतिलिप्यधिकार से मुक्त मानी जाएगी। यूरोपीय एवं अमेरिका में यह अवधि 70 साल है। बर्न समझौता (1886) एवं यूनेस्को समझौता (1955) एवं यूनिवर्सल कापीराइट कॉनवेंशन (1955) के अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिलिप्यधिकार को निर्धारित किया जाता है।
अनुवाद
और रूपांतरण को हम किसी भी रचना या कृति का पुनरुत्पादन मान सकते हैं। अनुवाद और
रूपांतरण से किसी भी रचना या कृति का व्यावसायिक प्रयोग हो सकता है इसीलिए अनुवाद
और रूपांतरण के लिए भी मूल लेखक या रचनाकार की लिखित स्वीकृति अनिवार्य है। अगर कोई अनुवादक स्वयं के लिए अथवा शोध कार्य
हेतु अनुवाद करना चाहता है तो उसे रचनाकार की अनुमति आवश्यक नहीं है। लेकिन इस
स्थिति में वह अपनी अनूदित कृति का उपयोग किसी भी व्यावसायिक कार्य के लिए नहीं
करेगा। उसका उपयोग सर्वथा निजी ही रहेगा। अनुवाद के लिए अनुवादक रचना या कृति के
प्रतिलिप्यधिकार धारक से अनुवाद हेतु अनुमति के लिए संपर्क करेगा। इसके पश्चात वह
या अनुवाद प्रकाशित करने वाला प्रकाशक प्रतिलिप्यधिकार कार्यालय में अनुवाद के लिए
लाइसेंस के लिए आवेदन देगा। प्रतिलिप्यधिकार कार्यालय उस भाषा में अनुवाद का
अनुमति नहीं देता है जो उस देश में प्रयोग या प्रचलित न हो; उदाहरण के लिए
अंग्रेजी से फ़्रांसीसी भाषा में अनुवाद की अनुमति भारत में मिलना मुश्किल है
क्योंकि यहाँ फ़्रांसीसी भाषा सामान्यत: नहीं बोली जाती है। किसी रचना या कृति के प्रथम
प्रकाशन के सात वर्ष तक अनुवाद का अधिकार साधारणतया नहीं मिलता है क्योंकि इससे
शायद मूल कृति के व्यावसायिक हित बाधित हो सकते हैं और मूल रचनाकार अपने प्रकाशक
के साथ अनुबंध में होता है। लेकिन अगर किसी कारण से ऐसा कोई अनुबंध मूल लेखक और
प्रकाशन संस्था में नहीं हुआ हो तो इस स्थिति में भी अनुवादक को या अनुवाद प्रकाशक
को अनूदित कृति के लिए भी मूल लेखक को रॉयल्टी देनी होगी। भारत में प्रतिलिप्यधिकार
अधिनियम 1957 के धारा 31 में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है।
रूपांतरण
में रचना का माध्यम बदल जाता है जैसे अगर मूल रचना नाटक है तो इसका फिल्मांकन, संक्षेपण, नाट्येतर विधाओं में पुनरुत्पादन या
पुनर्सृजन ही रूपांतरण है। अनुवाद एवं रूपांतरण में अनुवादक या रूपांतरणकार मूल
कृति में फेर बदल नहीं कर सकता। और अगर उसे करना भी हो तो मूल रचनाकार से इसके लिए
पूर्व लिखित अनुमति लेनी होगी। अन्यथा मूल लेखक कभी भी अनुवादक या फिल्मकार के
खिलाफ न्यायालय जा सकता है तथा मान हानि का केस दर्ज करा सकता है। अनुवादक या
फिल्मकार से वह हर्जाना भी वसूल सकता है एवं फिल्म का प्रदर्शन भी रोक सकता है।
भारतीय
प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम 1957 की धारा 13 में अनुवादक या रूपांतरणकार
(फिल्मकार, नाटककार आदि) के भी अधिकार बताये गये हैं। अनूदित कृति या फिल्मकार
द्वारा किसी कृति पर आधारित बनायी गयी फिल्म एक रचनात्मक कार्य है तथा अनुवादक या
फिल्मकार को अपने अनुवाद या फिल्म पर पूरा प्रतिलिप्यधिकार होता है। यदि कोई
व्यक्ति (अनुवादक, फिल्मकार) किसी रचना या कृति के पुनरुत्पादन हेतु
प्रतिलिप्यधिकार प्राप्त कर लेता है तो उसे उस कृति के संबंध में निम्नलिखित
अधिकार स्वत: प्राप्त हो जाते हैं :
i)
अनूदित कृति का पुनरुत्पादन या
किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में संग्रहण
ii)
अनूदित कृति को सार्वजनिक रूप
से जारी करना।
iii)
अनूदित कृति की सार्वजनिक
प्रस्तुति
iv)
अनूदित कृति का अनुवाद करना
v)
अनूदित कृति का रूपांतरण करना;
यथा अनूदित कृति पर आधारित फिल्म निर्माण आदि।
अगर
अनुवादक किसी पत्रिका का उपसंपादक हो तो
उस दौरान उसने कुछ अनूदित करके उक्त पत्रिका में प्रकाशित किया हो तो उस पर
पत्रिका के स्वामी का अधिकार होगा। उल्लेखनीय है कि अगर इस प्रकार का कोई करार
पत्रिका के स्वामी और उपसंपादक के बीच हुआ हो तभी यह नियम लागू होगा अन्यथा
अनुवादक के पास ही सारे अधिकार होंगे। अगर अनुवादक किसी स्कूल या विश्वविद्यालय के
अधीन कार्य करता हो तो उसके द्वारा किये गये अनुवाद पर अनुवादक का ही अधिकार होगा
क्योंकि स्कूल या विश्वविद्यालय पढ़ाने के लिए पैसे देते हैं अनुवाद के लिए नहीं। अगर
अनुवादक किसी प्रोजेक्ट या नियोजन के तहत अनुवाद कार्य करता है तो उस अनुवादक पर
नियोजक संस्था का अधिकार होता है।
इस प्रकार, प्रतिलिप्यधिकार मूल लेखक या रचनाकार, अनुवादक एवं अन्य सृजनशील लोगों के अधिकारों, हितों की रक्षा करता है तथा उन्हें अपने कार्य के लिए सुरक्षा प्रदान करता है।
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