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मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons) क्या हैं ?

 क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons)

क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons) एक निर्लाभ अमेरिकी संगठन है। यह एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है जो शिक्षा या ज्ञान संबंधी उपलब्ध संसाधनों की शैक्षिक पहुँच और दूसरों के लिए कानूनी रूप से सृजन-पुनर्सृजन एवं संशोधन करने और इसे साझा करने की सीमा को परिभाषित एवं विस्तारित करने हेतु समर्पित है। क्रिएटिव कॉमन्स ने कई सत्वाधिकार अनुज्ञा अर्थात् कॉपीराइट लाइसेंस  जारी किए हैं, जिन्हें क्रिएटिव कॉमन्स (CC) लाइसेंस के रूप में जाना जाता है ये लाइसेंस आम लोगों के लिए सुपरिभाषित हैं एवं इनका प्रयोग भी निशुल्क हैं इन लाइसेंस से रचनात्मक कार्यों के लेखकों को यह बताने में सुविधा होती है कि वे कौन से अधिकार अपने लिए सुरक्षित रख रहे हैं और उपभोक्ताओं या अन्य रचनाकारों के लाभ के लिए वे कौन से अधिकार सौंपना चाहते हैं। एक लेखक, कलाकार या रचनाकार को कॉपीराइट के तहत अपने द्वारा सृजित कार्यों से संबंधित बहुत सारे अधिकार प्राप्त होते हैं। एक तरफ तो ये अधिकार, सृजनकर्ता के लिए बेहद लाभकारी होते हैं, पर दूसरी तरफ इनके कारण ज्ञान या शिक्षा का व्यापक प्रसार एवं आमजन तक इसकी पहुँच बाधित होती है। क्रिएटिव कॉमन्स (CC) रचनाकार के इन्हीं विभिन्न अधिकारों को वर्गीकृत कर उन्हें विशेष चिह्नों द्वारा परिभाषित करता है। रचनाकार या लेखक चाहे तो इनमें से कुछ अधिकार स्वेच्छा से अन्य लोगों या रचनाकारों को रचनात्मक कार्यों एवं शिक्षा के गैर-लाभकारी प्रसार हेतु सौंप सकता है या उक्त अधिकारों को छोड़ सकता है। इससे सृजनधर्मिता एवं ज्ञान के प्रसार-विस्तार में सहायता मिलती है।

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

उपन्यास (Novel)

                                                                                 उपन्यास

उपन्यास गद्य-शैली में लिखा गया वह अन्यतम विधा है जिसके मूल में कथा है। काव्य एवं नाटक का कथातत्व इनकी काव्यात्मकता एवं रंगमंचीयता से भिन्न उपन्यास के रूप में विकसित हुआ। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उपन्यास कथात्मक कथा का एक अपेक्षाकृत लंबा काम है, जिसे आम तौर पर गद्य में लिखा जाता है और पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जाता है। इसे कल्‍पना-प्रसूत कथा भी कहा जाता है। यह एक लंबा काल्पनिक (fictional) आख्यान (narrative) है।

बृहत् हिंदी कोश उपन्यास को इस प्रकार परिभाषित करता है – “कल्पित और काफ़ी लंबी कहानी जिसमें प्रायः बहुत से पात्र हों तथा जीवन की विविध बातों का चित्रण हो, ‘नावेल  (बृहत् हिंदी कोश, पृ.-174)” उपन्यास को इसके अंग्रेजी नाम ‘novel’ से कई भारतीय भाषाओं ‘नावेल’ या ‘नाविल’ के नाम से जाना जाता है । अंग्रेजी में यह  novela अर्थात् नया (new) एवं भिन्न के अर्थ में लिया जाता था क्योंकि यह विधा सर्वथा नयी थी । मराठी एवं कन्नड़ में इसे ‘कादंबरी के नाम से जाना जाता है । उपन्यास को गुजराती में ‘नवलकथा’ (નવલકથા), तेलुगु में ‘नवल’ (నవల), तमिळ एवं मलयालम में ‘नावेल (நாவல்) एवं (നോവൽ) कहा जाता है । हिंदी में इस शब्द का प्रयोग संभवतः बंगला से आया है । उपन्यास को बंगला, ओड़िया एवं असमिया में इसी नाम से जाना जाता है । फ्रांसीसी भाषा में उपन्यास विधा को ‘रोमौं’ (Roman) कहा जाता है।

उपन्यास की एशियाई परंपरा यथा चीनी, जापानी एवं कोरियाई संस्कृति में उपन्यास को ‘लंबी गपशप’ या ‘लंबी छोटी बातचीत’ (long length small talk - 長篇小 ) कहा जाता है। दरअसल चीनी परंपरा से इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग आरंभ हुआ। चीनी परंपरा में साहित्यिक कृतियों को ‘छोटी बातचीत, ऐतिहासिक लेखन को ‘माध्यमिक बातचीत एवं दर्शन और शाश्वत नियमों पर आधारित लेखन को ‘महान बातचीत कहा जाता था। स्पष्ट है कि यहाँ छोटी, माध्यमिक एवं महान बढ़ते क्रम में हैं तथा दार्शनिक एवं तात्विक लेखन को ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता था।

विश्व के प्रथम उपन्यासों में निम्नलिखित उपन्यास महत्वपूर्ण हैं -

1.       गर्गौंतुआ और पोंताग्रूएल का जीवन (English: The Life of Gargantua and of Pantagruel , French: La vie de Gargantua et de Pantagruel, 1532-1564) यह 16वीं शताब्दी में फ़्रौंस्वा राबले (François Rabelais) द्वारा लिखे गए पाँच उपन्यासों की एक शृंखला है, जिसमें गर्गौंतुआ और उसके पुत्र पोंताग्रूएल नामक दो विशालकाय चरित्रों के जीवन, उनकी यात्राएं एवं अनुभवों को चित्रित किया गया है। इस फ्रांसीसी उपन्यास में मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान एवं अनुभव, दर्शन आदि की बात की गयी है।           (https://en.wikipedia.org/wiki/Gargantua_and_Pantagruel )

2.       मिगेल दे सेरवांतेस (Miguel de Cervantes) की कृतिदोन किखोते दे ला मांचा (Don Quixote de la Mancha) (1605, 1615) को कई विद्वान सही अर्थों में विश्व का पहला उपन्यास मानते हैं। स्पेनिश भाषा में रचित यह उपन्यास सबसे ज्यादा अनूदित उपन्यासों में से एक है। इसे विश्व के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों में भी गिना जाता है। (https://en.wikipedia.org/wiki/Don_Quixote)

3.       मादाम द लाफायेत (Madame de La Fayette) की कृति प्रिंसेस दे क्लैव (La Princesse de Clèves) को मार्च 1678 में बिना किसी रचयिता के नाम के प्रकाशित किया गया था। इसे कई विद्वानों ने मनोवैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक उपन्यास की परंपरा की शुरुआत मानते हैं। यह फ्रांसीसी उपन्यास पत्र शैली में लिखा गया संभवत: पहला उपन्यास है।  (https://en.wikipedia.org/wiki/La_Princesse_de_Cl%C3%A8ves )

4.       अंग्रेजी साहित्य के के कुछ प्रमुख उपन्यासकार निम्नलिखित हैं :

डानियल डफ़ो (Daniel Defoe) की रॉबिंसन क्रुसो  (Robinson Crusoe-1719) को अँग्रेजी के शुरुआती उपन्यासों में गिना जाता है।

सामुएल रिचार्डसन (Samuel Richardson (1707-1754)) को पत्रात्मक शैली (epistolary novels) के उपन्यासों के लिए जाना जाता है। इनके कुछ प्रसिद्ध उपन्यास हैं - Pamela; or, Virtue Rewarded (1740), Clarissa: Or the History of a Young Lady (1748), The History of Sir Charles Grandison (1753)

हेनरी फील्डिंग (Henri Fielding) का उपन्यास टॉम जोन्स (Tom Jones - 1749) को शुरुआती श्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। इसे फील्डिंग का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है जिसका बाद के उपन्यासों पर विशेष प्रभाव पड़ा ।

गद्य उपन्यास के विकास को मुद्रण में नवाचार और 15वीं शताब्दी में सस्ते कागज की शुरूआत से प्रोत्साहन मिला। पद्य को याद रखना एवं दूसरे से कहना आसान था एवं लिखित पुस्तक की प्रतिलिपि बनाना प्रिंटिंग प्रेस के विकास से पूर्व एक कठिन कार्य था। इसीलिए प्रिंटिंग प्रेस के विकास से पूर्व अधिकांश साहित्य पद्य में ही रचे गए तथा यह भी ध्यान देने की बात है कि पद्य में लिखा साहित्य अपनी गेयता, गीतात्मकता आदि के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी संप्रेषित-संरक्षित रहा ।

उपन्यास की कई विशेषताओं हो सकती हैं जिनमें से कुछ निम्नवत हैं -  

1.       काल्पनिक आख्यान

2.       साहित्यिक गद्य शैली

3.       अंतरंगता का अनुभव

4.       लंबाई

5.       पात्र

हिंदी में 'नावेल' के अर्थ में 'उपन्यास' शब्द का प्रथम प्रयोग संभवतया भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1875 ई. में 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' में प्रकाशित अपनी अपूर्ण रचना 'मालती' के लिए किया था। ब्रजरत्न दास के अनुसार, भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 'कुछ आपबीती कुछ जग बीती' नाम से एक उपन्यास लिखा था। किंतु, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सन् 1882 में प्रकाशित लाला श्रीनिवास दास कृत 'परीक्षा गुरु' को अंग्रेजी के ढंग का हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास माना है। हिंदी के प्रथम उपन्यास के बारे में विद्वानों का एक मत नहीं है,  अलग-अलग लोगों के अनुसार भिन्न-भिन्न रचनाएँ मानी गई हैं, कुछ दृष्टांत निम्नलिखित हैं –

प्रस्तोता / समालोचक

उपन्यास

प्रकाशन वर्ष

उपन्यासकार

डॉ. गोपाल राय

देवरानी जेठानी की कहानी

1870 ई.

पं. गौरी दत्त

डॉ विजयशंकर मल्ल

भाग्यवती

1877 ई.

श्रद्धाराम फिल्लौरी

श्री रामचंद्र शुक्ल

परीक्षा-गुरु

1882 ई.

लाला श्रीनिवास दास

 

हिंदी के महान लेखक उपन्यास के मूल तत्व को अपने लेख ‘उपन्यास’ में बताते हैं -  मैं उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है।” (प्रेमचंद 2008: 47)

सन् 1888 में प्रकाशित देवकीनंदन खत्री द्वारा रचित हिंदी के आरंभिक उपन्यासों में से एक उपन्यास ‘चंद्रकांता’ हिंदी का पहला लोकप्रिय उपन्यास ही जिसने लोगों को हिंदी वर्तनी सीखने एवं  हिंदी पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

उपन्यास के निम्नलिखित तत्व माने जाते हैं, जिनका ध्यान उपन्यास के अनुवाद हेतु भी महत्वपूर्ण है –

कथानक

चरित्र चित्रण और पात्र

कथोपकथन

देशकाल एवं वातावरण

भाषा-शैली

उद्देश्य

 

 

उपन्यास के कई प्रकार हैं, जिनमें कुछ इस प्रकार हैं :

 

ऐतिहासिक उपन्यास (Historical novel), 

पिकरेस्क उपन्यास (Picaresque novel),

संवेदनशील उपन्यास  (Sentimental novel),

गोथिक उपन्यास (Gothic novel),

मनोवैज्ञानिक उपन्यास (Psychological novel),

novel of manners,

Bildungsroman

पत्र शैली का उपन्यास (Epistolary novel),

आंचलिक उपन्यास (Pastoral novel),

roman à clef,

antinovel,

cult novel,

जासूसी उपन्यास (detective novel),

रहस्य उपन्यास (mystery novel),

थ्रिलर उपन्यास (thriller novel),

पश्चिमी उपन्यास (western novel),

फ़ंतासी  (fantasy novel/),

सर्वहारा (proletarian)

 

 

संदर्भ ग्रंथ :

प्रेमचंद. (2008). कुछ विचार. इलाहाबाद : लोकभारती.

रविवार, 8 जनवरी 2023

भक्ति साहित्य का अस्मिता-विमर्शमूलक अनुकूलन

                                                         भक्ति साहित्य का अस्मिता-विमर्शमूलक अनुकूलन


भक्ति साहित्य ने स्वदेशी भाषा में रचनाओं को बढ़ावा दिया। भक्ति साहित्य के दौरान सभी जगह संतो एवं कवियों ने लोगों की आम भाषा में साहित्य की रचना की एवं आमजन की भावनाओं एवं उनकी अस्मिता का खयाल रखा। भक्ति साहित्य के दौरान संतों, कवियों ने संस्कृत के भागवत, रामायण, महाभारत एवं पुराणों को लोगों की आम भाषा में अनूदित किया। लोगों की अस्मिता का मान रखा एवं उनके लोक संस्कृति एवं सभ्यता के अनुसार महान काव्यों का अनुवाद-अनुसृजन किया। इससे इन भाषाओं का मान-सम्मान बढ़ा और उनमें साहित्य संपदा भी बढ़ी। इस तरह से देखा जय तो भक्ति साहित्य अस्मिता-विमर्शमूलक अनुकूलन था। संस्कृत ही केवल समृद्ध भाषा न रही तथा धर्म अभिजात्य वर्ग से सामान्य वर्ग तक इसी भक्ति साहित्य के बदौलत पहुँच पाया।

सोमवार, 18 जुलाई 2022

                                                                               मित्रता

n आचार्य रामचंद्र शुक्ल

जब कोई युवा पुरुष अपने घर से बाहर निकलकर बाहरी संसार में अपनी स्थिति जमाता हैतब पहली कठिनता उसे मित्र चुनने में पड़ती है। यदि उसकी स्थिति बिल्कुल एकान्त और निराली नहीं रहती तो उसकी जान-पहचान के लोग धड़ाधड़ बढ़ते जाते हैं और थोड़े ही दिनों में कुछ लोगों से उसका हेल-मेल हो जाता है। यही हेल-मेल बढ़ते-बढ़ते मित्रता के रूप में परिणत हो जाता है। मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफ़लता निर्भर हो जाती हैक्योकि संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है। हम लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरम्भ करते हैं जबकि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता हैहमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं जिसे जो जिस रूप में चाहेउस रूप का करे- चाहे वह राक्षस बनावेचाहे देवता।

ऐसे लोगों का साथ करना हमारे लिए बुरा है जो हमसे अधिक दृढ़ संकल्प के हैंक्योंकि हमें उनकी हर एक बात बिना विरोध के मान लेनी पड़ती है। पर ऐसे लोगों का साथ करना और बुरा है जो हमारी ही बात को ऊपर रखते हैंक्योंकि ऐसी दशा में न तो हमारे ऊपर कोई दाब रहता हैऔर न हमारे लिए कोई सहारा रहता है। दोनों अवस्थाओं में जिस बात का भय रहता हैउसका पता युवा पुरुषों को प्राय: विवेक से कम रहता है। यदि विवेक से काम लिया जाये तो यह भय नहीं रहतापर युवा पुरुष प्राय: विवेक से कम काम लेते है। कैसे आश्चर्य की बात है कि लोग एक घोड़ा लेते हैं तो उसके गुण-दोषों को कितना परख लेते हैपर किसी को मित्र बनाने में उसके पूर्व आचरण और प्रकृति आदि का कुछ भी विचार और अनुसंधान नहीं करते। वे उसमें सब बातें अच्छी ही अच्छी मानकर अपना पूरा विश्वास जमा देते हैं। हंसमुख चेहराबातचीत का ढंगथोड़ी चतुराई या साहस- ये ही दो चार बातें किसी में देखकर लोग चटपट उसे अपना बना लेते है। हम लोग नहीं सोचते कि मैत्री का उद्देश्य क्या हैतथा जीवन के व्यवहार में उसका कुछ मूल्य भी है। यह बात हमें नहीं सूझती कि यह ऐसा साधन है जिससे आत्मशिक्षा का कार्य बहुत सुगम हो जाता है। एक प्राचीन विद्वान का वचन है- "विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है। जिसे ऐसा मित्र मिल जाये उसे समझना चाहिए कि खजाना मिल गया।" विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषधि है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों में हमें दृढ़ करेंगेदोष और त्रुटियों से हमें बचाएँगेहमारे सत्य , पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंजब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगेतब वे हमें सचेत करेंगेजब हम हतोत्साहित होंगे तब हमें उत्साहित करेंगे। सारांश यह है कि वे हमें उत्तमतापूर्वक जीवन निर्वाह करने में हर तरह से सहायता देंगे। सच्ची मित्रता से उत्तम से उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख होती हैअच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है। ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न पुरुष को करना चाहिए।       

 छात्रावास में तो मित्रता की धुन सवार रहती है। मित्रता हृदय से उमड़ पड़ती है। पीछे के जो स्नेह-बंधन होते हैंउसमें न तो उतनी उमंग रहती हैन उतनी खिन्नता। बाल-मैत्री में जो मनन करने वाला आनन्द होता हैजो हृदय को बेधने वाली ईर्ष्या होती हैवह और कहाँकैसी मधुरता और कैसी अनुरक्ति होती हैकैसा अपार विश्वास होता है। हृदय के कैसे-कैसे उद्गार निकलते है। वर्तमान कैसा आनन्दमय दिखायी पड़ता है और भविष्य के सम्बन्ध में कैसी लुभाने वाली कल्पनाएँ मन में रहती है। कितनी जल्दी बातें लगती है और कितनी जल्दी मानना-मनाना होता है। 'सहपाठी की मित्रताइस उक्ति में हृदय के कितने भारी उथल-पुथल का भाव भरा हुआ है। किन्तु जिस प्रकार युवा पुरुष की मित्रता स्कूल के बालक की मित्रता से दृढ़शान्त और गम्भीर होती हैउसी प्रकार हमारी युवावस्था के मित्र बाल्यावस्था के मित्रों से कई बातों में भिन्न होते हैं। मैं समझता हूं कि मित्र चाहते हुए बहुत से लोग मित्र के आदर्श की कल्पना मन में करते होंगेपर इस कल्पित आदर्श से तो हमारा काम जीवन की झंझटों में चलता नहीं। सुन्दर प्रतिमामनभावनी चाल और स्वच्छंद प्रकृति ये ही दो-चार बातें देखकर मित्रता की जाती है। पर जीवन-संग्राम में साथ देने वाले मित्रों में इनसे कुछ अधिक बातें चाहिए। मित्र केवल उसे नहीं कहते जिसके गुणों की तो हम प्रशंसा करेंपर जिससे हम स्नेह न कर सकें. जिससे अपने छोटे-मोटे काम तो हम निकालते जायेंपर भीतर-ही-भीतर घृणा करते रहेंमित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिएजिस पर हम पूरा विश्वास कर सकेंभाई के समान होना चाहिएजिसे हम अपना प्रीति-पात्र बना सकें। हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए- ऐसी सहानुभूति जिससे एक के हानि-लाभ को दूसरा अपना हानि-लाभ समझे। मित्रता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दो मित्र एक ही प्रकार का कार्य करते हों या एक ही रुचि के हों। इसी प्रकार प्रकृति और आचरण की समानता भी आवश्यक या वांछनीय नहीं है। दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में बराबर प्रीति और मित्रता रही है। राम धीर और शान्त प्रकृति के थेलक्ष्मण उग्र और उद्धत स्वभाव के थेपर दोनों भाइयों में अत्यन्त प्रगाढ़ स्नेह था। उदार तथा उच्चाशय कर्ण और लोभी दुर्योधन के स्वभावों में कुछ विशेष समानता न थी. पर उन दोनों की मित्रता खूब निभी। यह कोई भी बात नहीं है कि एक ही स्वभाव और रुचि के लोगों में ही मित्रता खूब निभी। यह कोई भी बात नहीं हैं कि एक ही स्वभाव और रुचि के लोगों में ही मित्रता हो सकती है। समाज में विभिन्नता देखकर लोग एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैंजो गुण हममें नहीं है हम चाहते हैं कि कोई ऐसा मित्र मिलेजिसमें वे गुण हों। चिंताशील मनुष्य प्रफुल्लित चित्त का साथ ढूंढता हैनिर्बल बली काधीर उत्साही का। उच्च आकांक्षावाला चन्द्रगुप्त युक्ति और उपाय के लिए चाणक्य का मुंह ताकता था। नीति-विशारद अकबर मन बहलाने के लिए बीरबल की ओर देखता था।        

मित्र का कर्त्तव्य इस प्रकार बताया गया है- "उच्च और महान कार्य में इस प्रकार सहायता देनामन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी निज की सामर्थ्य से बाहर का काम कर जाओ।" यह कर्त्तव्य उस से पूरा होगा जो दृढ़-चित्त और सत्य-संकल्प का हो। इससे हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों। मृदुल और पुरुषार्थी होंशिष्ट और सत्यनिष्ठ होंजिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकेंऔर यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा।

        जो बात ऊपर मित्रों के सम्बन्ध में कही गयी हैवही जान-पहचान वालों के सम्बन्ध में भी ठीक है। जान-पहचान के लोग ऐसे हों जिनसे हम कुछ लाभ उठा सकते होंजो हमारे जीवन को उत्तम और आनन्दमय करने में कुछ सहायता दे सकते होंयद्यपि उतनी नहीं जितनी गहरे गहरे मित्र दे सकते हैं। मनुष्य का जीवन थोड़ा हैउसमें खोने के लिए समय नहीं। यदि कख और ग न हमारे लिए कुछ कर सकते हैंन कोई बुद्धिमानी या विनोद की बातचीत कर सकते हैंन कोई अच्छी बात बतला सकते हैंन सहानुभूति द्वारा हमें ढाढ़स बंधा सकते हैंहमारे आनन्द में सम्मिलित हो सकते हैंन हमें कर्त्तव्य का ध्यान दिला सकते हैंतो ईश्वर हमें उनसे दूर ही रखें। हमें अपने चारों ओर जड़ मूर्तियां सजाना नहीं है। आजकल जान-पहचान बढ़ाना कोई बड़ी बात नहीं है। कोई भी युवा पुरुष ऐसे अनेक युवा पुरुषों को पा सकता है जो उसके साथ थियेटर देखने जायेंगेनाच रंग में आयेंगेसैर-सपाटे में जायेंगेभोजन का निमंत्रण स्वीकार करेंगे। यदि ऐसे जान पहचान के लोगों से कुछ हानि न होगी तो लाभ भी न होगा। पर यदि हानि होगी तो बड़ी भारी होगी। सोचो तो तुम्हारा जीवन कितना नष्ट होगा। यदि ये जान-पहचान के लोग उन मनचले युवकों में से निकलें जिनकी संख्या दुर्भाग्यवश आजकल बहुत बढ़ रही हैयदि उन शोहदों में से निकलें जो अमीरों की बुराइयों और मूर्खताओं की नकल किया करते हैंगलियों में ठठ्टा मारते हैं और सिगरेट का धुआं उड़ाते चलते हैं। ऐसे नवयुवकों से बढ़कर शून्यनि:सार और शोचनीय जीवन और किसका हैवे अच्छी बातों के सच्चे आनन्द से कोसों दूर है। उनके लिए न तो संसार में सुन्दर और मनोहर उक्ति वाले कवि हुए हैं और न संसार में सुन्दर आचरण वाले महात्मा हुए हैं। उनके लिए न तो बड़े-बड़े वीर अद्भुत कर्म कर गये हैं और न बड़े-बड़े ग्रन्थकार ऐसे विचार छोड़ गये हैं जिनसे मनुष्य जाति के हृदय में सात्विकता की उमंगे उठती हैं। उनके लिए फूल-पत्तियों में कोई सौन्दर्य नहीं। झरनों के कल-कल में मधुर संगीत नहींअनन्त सागर तरंगों में गम्भीर रहस्यों का आभास नहींउनके भाग्य में सच्चे प्रयत्न और पुरुषार्थ का आनन्द नहींउनके भाग्य से सच्ची प्रीति का सुख और कोमल हृदय की शान्ति नहीं। जिनकी आत्मा अपने इन्द्रिय-विषयों में ही लिप्त हैजिनका हृदय नीचाशयों और कुत्सित विचारों से कलुषित हैऐसे नाशोन्मुख प्राणियों को दिन-दिन अन्धकार में पतित होते देख कौन ऐसा होगा जो तरस न खायेगाउसे ऐसे प्राणियों का साथ न करना चाहिए।

        मकदूनिया का बादशाह डमेट्रियस कभी-कभी राज्य का सब का सब काम छोड़ अपने ही मेल के दस-पाँच साथियों को लेकर विषय वासना में लिप्त रहा करता था। एक बीमारी का बहाना करके इसी प्रकार वह अपने दिन काट रहा था। इसी बीच उसका पिता उससे मिलने के लिए गया और उसने एक हंसमुख जवान को कोठरी से बाहर निकलते देखा। जब पिता कोठरी के भीतर पहुंचा तब डेमेट्रियस ने कहा- "ज्वर ने मुझे अभी छोड़ा है।" पिता ने कहा- 'हां! ठीक है वह दरवाजे पर मुझे मिला था।'

        कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सद् वृत्ति का ही नाश नहीं करताबल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा-पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बंधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।

        इंग्लैण्ड के एक विद्वान को युवावस्था में राज-दरबारियों में जगह नहीं मिली। इस पर जिन्दगी भर वह अपने भाग्य को सराहता रहा। बहुत से लोग तो इसे अपना बड़ा भारी दुर्भाग्य समझतेपर वह अच्छी तरह जानता था कि वहां वह बुरे लोगों की संगति में पड़ता जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होते। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनके घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती हैक्योंकि उतने ही बीच में ऐसी-ऐसी बातें कही जाती है जो कानों में न पड़नी चाहिएचित्त पर ऐसे प्रभाव पड़ते है जिनसे उसकी पवित्रता का नाश होता है। बुराई अटल भाव धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं। इस बात को प्राय: सभी लोग जानते हैकि भद्दे व फूहड़ गीत जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं. उतनी जल्दी कोई गम्भीर या अच्छी बात नहीं। एक बार एक मित्र ने मुझसे कहा कि उसने लड़कपन में कहीं से एक बुरी कहावत सुन पायी थीजिसका ध्यान वह लाख चेष्टा करता है कि न आयेपर बार-बार आता है। जिन भावनाओं को हम दूर रखना चाहते हैंजिन बातों को हम याद नहीं करना चाहते वे बार-बार हृदय में उठती हैं और बेधती हैं। अतः तुम पूरी चौकसी रखोऐसे लोगों को कभी साथी न बनाओ जो अश्लीलअपवित्र और फूहड़ बातों से तुम्हें हंसाना चाहे। सावधान रहो ऐसा ना हो कि पहले-पहले तुम इसे एक बहुत सामान्य बात समझो और सोचो कि एक बार ऐसा हुआफिर ऐसा न होगा। अथवा तुम्हारे चरित्र-बल का ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि ऐसी बातें बकने वाले आगे चलकर आप सुधर जायेंगे। नहींऐसा नहीं होगा। जब एक बार मनुष्य अपना पैर कीचड़ में डाल देता है। तब फिर यह नहीं देखता कि वह कहाँ और कैसी जगह पैर रखता है। धीरे-धीरे उन बुरी बातों में अभयस्त होते-होते तुम्हारी घृणा कम हो जाएगी। पीछे तुम्हें उनसे चिढ़ न मालूम होगीक्योंकि तुम यह सोचने लगोगे कि चिढ़ने की बात ही क्या है! तुम्हारा विवेक कुण्ठित हो जायेगा और तुम्हें भले-बुरे की पहचान न रह जाएगी। अन्त में होते-होते तुम भी बुराई के भक्त बन जाओगेअतः हृदय को उज्ज्वल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगत की छूत से बचो। यही पुरानी कहावत है कि-

'काजर की कोठरी मेंकैसो हू सयानो जाय।

एक लीक काजर कीलागिहैपै लागिहै।।'

 

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

 

हिंदी के साथ अन्य विदेशी भाषाओं का संवाद : अटल भाषांतर योजना (ABY)

 

अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त अन्य विदेशी भाषाओं के विद्यार्थियों के लिए अनुपम अवसर है- ‘अटल भाषांतर योजना (Atal Bhashantar Yojana)’।  26 दिसंबर 2018 को विदेश मंत्रालय द्वारा भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी की स्मृति में ‘अटल भाषांतर योजना (ABY)’ का शुभारंभ किया गया। अरबी, चीनी, फ्रेंच, जापानी, रूसी और स्पेनिश से हिंदी भाषा में भाषांतर के लिए 'विशिष्ट दुभाषियों' का एक पूल या समूह तैयार करने की दिशा में भाषा विशेषज्ञों अथवा हिंदी से विदेशी भाषाओं के दुभाषिए के प्रशिक्षण के लिए ‘अटल भाषा योजना’ आरंभ की गई है।

पात्रता (Eligibility): कक्षा दसवीं से लेकर विश्वविद्यालय तक सारी परीक्षाओं में आवेदक के अंक 60% या इससे अधिक होने चाहिए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से मान्यता प्राप्त तथा राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद् (NAAC) द्वारा न्यूनतम बी+ (B+) श्रेणी (ग्रेड) प्राप्त विश्वविद्यालयों से उपरिलिखित 6 भाषाओं में से किसी एक भाषा में स्नातक और उच्चतर उपाधि धारक या उसके समकक्ष योग्यता वाले विद्यार्थी आवेदन के पात्र होंगे। अभ्यर्थियों का हिंदी और अंग्रेजी भाषा में दक्षता अनिवार्य है। 21 से 26 वर्ष तक के अभ्यर्थी ‘अटल भाषांतर योजना’ हेतु आवेदन कर सकते हैं। इस योजना हेतु विदेश मंत्रालय की वेबसाइट और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में आवेदन हेतु विज्ञापन दिए जाते हैं।

चयन-प्रक्रिया (Selection Process) : ‘अटल भाषांतर योजना (ABY)’ योजना के अंतर्गत प्रत्येक उम्मीदवार को उपरोक्त विदेशी भाषाओं में एक बहु-स्तरीय चयन प्रक्रिया के माध्यम से चयनित किया जाता है। पहली चयन परीक्षा स्क्रीनिंग परीक्षा होती है। इसमें सफल होने के पश्चात लिखित और मौखिक परीक्षा ली जाती है। चयन का तीसरा एवं अंतिम चरण साक्षात्कार होता है। इन तीनों परीक्षाओं के चरणों से गुजरने के बाद ही अभ्यर्थी का चयन संभव है।

विशेषताएँ एवं लाभ (Benefits) : चयनित उम्मीदवारों को विदेश में प्रतिष्ठित भाषा स्कूलों में भारत सरकार की तरफ से निशुल्क विदेशी भाषा से अनुवाद एवं निर्वचन के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। चयनित उम्मीदवारों को उनके प्रशिक्षण अवधि के दौरान मासिक वजीफा या अध्येता वृत्ति भी प्रदान किया जाता है। उसे अंतरराष्ट्रीय यात्रा का टिकट एवं चिकित्सा बीमा आदि का खर्च वहन भी भारत सरकार के द्वारा ही किया जाएगा। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उत्तीर्ण उम्मीदवारों को विदेश मंत्रालय में ‘विशिष्ट दुभाषिया’ के रूप में 5 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाएगा।

विदेश मंत्रालय द्वारा प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार ‘अटल भाषांतर योजना (ABY)’ के अंतर्गत प्रथम बैच में कुल तीन (03) उम्मीदवारों का चयन किया गया। कुल निर्धारित छ: भाषाओं में से मात्र चीनी, अरबी एवं रूसी भाषाओं में एक-एक विद्यार्थी ही इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए जुड़ पाए। चयनित विद्यार्थी अमेरिका के विश्वविद्यालयों में ‘निर्वचन एवं अनुवाद (Interpretation and Translation)’ के क्षेत्र में परास्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। पहले वर्ष इस योजना के तहत फ्रांसीसी, जापानी एवं स्पेनिश हेतु कोई अभ्यर्थी इसमें नहीं शामिल हो पाया है। मंत्रालय के वर्ष 2020-21 एवं 2021-22 की वार्षिक रिपोर्टों इस योजना में शामिल प्रतिभागियों से संबंधित कोई भी जानकारी नहीं मिलती है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि कोरोना काल (COVID-19) के कारण इस योजना पर समेकित प्रयास न हो पाया हो।

© डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र

सहायक आचार्य

अनुवाद अध्ययन विभाग

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा

 

शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

नेतृत्व क्षमता

                                         नेतृत्व क्षमता (Leadership Skill)

 

नेतृत्व क्षमता क्या है ? और, इसका विकास कैसे किया जाय ?  एक नेता कैसा होना चाहिए एवं उसमें क्या-क्या गुण होने चाहिए, इन सभी के बारे में हमें जानना चाहिए एवं आधुनिक युग में इसकी बहुत ही आवश्यकता है । एक नेता अथवा अच्छा प्रशासक अपने द्वारा किये गये कार्यों की जिम्मेदारी लेता है । अपने सहयोगियों एवं साथियों को उचित सम्मान देता है । समय-समय पर उनके द्वारा किये गये कार्यों की सराहना करता है । उनके होने के महत्व को बताता है । अगर सहयोगियों द्वारा कोई कमी हो या त्रुटि हो तो उन्हें आराम से एकांत में बताता है । वह डांटता है लेकिन बेइज्जत नहीं करता। वह अपने सहयोगियों का उचित सम्मान करता है तथा अपने व्यवहार द्वारा अनुकरणीय बनता है । कोई भी व्यक्ति भले ही अपने भाषण में कितना भी कहे लेकिन अगर उसकी कथनी-करनी में अंतर है तो वह कभी भी अनुकरणीय नहीं हो सकता। एक नेता का सबसे बड़ा गुण है कि वह बड़े उद्देश्यों एवं दूसरों के लिए अपने निजी हितों का भी ध्यान नहीं रखता है। उसके लिए कर्तव्य सबसे ऊपर होता है। नेता अथवा लीडर अकर्मण्यता से डरता है और वह असफल होने से नहीं डरता है। वह लीक से हटकर सोचने का साहस करता है। उसके पास दूसरों को धैर्य से सुनने की क्षमता होती है। उसके लक्ष्य व्यक्तिपरक न होकर संस्था या देश हित में होते हैं। उसमें मानवोचित भाव एवं गुण भी होते हैं, वह निरा यांत्रिक नहीं होता है।

 

नेतृत्व क्षमता तीन प्रकार की होती है :

 

1.      परिवर्तनीय (Transactional)

2.      अनुकरणीय (Transformational)

3.      छद्मानुकरणीय (Pseudo transformational)

 

उपर्युक्त तीनों में से अनुकरणीय (Transformational) नेतृत्व ही उत्तम है। एक अच्छे नेता या प्रशासक की दृष्टि एवं विज़न स्पष्ट होती है। वह अपने ध्येय को लेकर भ्रम की स्थिति में नहीं रहता है। अनेकों वास्तविक एवं ऐतिहासिक उदाहरणों से हम नेतृत्व क्षमता क्या होती है-  सीख सकते हैं।  फ़्रांसीसी सिद्धांत लेसे-फैर (Laissez-Faire) भी एक प्रकार की नेतृत्व क्षमता ही है जिसमें नेता सब कुछ अन्य लोगों पर छोड़ देता है। वह जैसा चल रहा है, वैसा ही चलने देता है। वह मात्र एक दर्शक की भूमिका में होता है। नेता के लिए यह स्थिति भी सही नहीं है। एक नेता को वर्तमान एवं भविष्य पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए लेकिन अतीत को भी विस्मृत नहीं होने देना चाहिए। एक गाड़ी की तरह आगे का शीशा वर्तमान एवं भविष्य है और पीछे वाला दर्पण भूत को प्रदर्शित करता है।

 

© डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र

    सहायक प्रोफेसर,

    अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ,

    म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा