अनुसृजन और अनुवाद
अनुसृजन की व्युत्पत्तिपरक व्याख्या की जाए तो अनु का अर्थ होता है – ‘के पश्चात्’ अर्थात मूल कृति अथवा रचना को फिर से लक्ष्यभाषा की
प्रकृति एवं बिंब-विधान आदि के अनुरूप अर्थ छायाओं को प्रस्तुत करने हेतु मूलभाव
पर आधारित पाठ या रचना का निर्माण करना अनुसृजन है। यह मूलकृति की भावना पर आधारित
फिर से रचा गया पाठ या रचना होती है। कुछ विद्वान इसे पुनर्सृजन भी कहना पसंद करते
हैं। अनुसृजन अनुवाद की ही विशेष विधा है जिसमें सर्जनात्मक स्वतंत्रता अनुवाद से
बहुत ज्यादा होती है। अनुसृजन में हम बहुत कुछ जोड़ सकते हैं या घटा सकते हैं। उमर
खैय्याम की रूबाइयों का फिट्जेराल्ड द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद तथा फिट्जेराल्ड
की अनूदित कृति का हिंदी में हरिवंशराय बच्चन का अनुवाद ‘मधुशाला’ अनुसृजन का एक सर्वोत्तम उदाहरण है।
अनुवाद कई बार सृजन से भी दुष्कर होता है।
इसमें अनुवादक को मूलरचनाकार के भाव को समझकर उसे हूबहू लक्ष्य भाषा में संप्रेषित
करना होता है। इसमें अनुसृजन या पुनर्सृजन की भांति सृजनात्मक आजादी नहीं होती है।
अनुवादक का हमेशा से प्रयास होता है कि वह ज्यादा से ज्यादा से मूल पाठ या रचना के
करीब रहे चाहें वो भाषाई स्तर पर हो या सांस्कृतिक स्तर पर या भावात्मकता की बात
हो। इस प्रकार, अनुवाद का कार्य अनुसृजन के कार्य से अधिक कठिन प्रतीत होता है।
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