मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons) क्या हैं ?

 क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons)

क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons) एक निर्लाभ अमेरिकी संगठन है। यह एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है जो शिक्षा या ज्ञान संबंधी उपलब्ध संसाधनों की शैक्षिक पहुँच और दूसरों के लिए कानूनी रूप से सृजन-पुनर्सृजन एवं संशोधन करने और इसे साझा करने की सीमा को परिभाषित एवं विस्तारित करने हेतु समर्पित है। क्रिएटिव कॉमन्स ने कई सत्वाधिकार अनुज्ञा अर्थात् कॉपीराइट लाइसेंस  जारी किए हैं, जिन्हें क्रिएटिव कॉमन्स (CC) लाइसेंस के रूप में जाना जाता है ये लाइसेंस आम लोगों के लिए सुपरिभाषित हैं एवं इनका प्रयोग भी निशुल्क हैं इन लाइसेंस से रचनात्मक कार्यों के लेखकों को यह बताने में सुविधा होती है कि वे कौन से अधिकार अपने लिए सुरक्षित रख रहे हैं और उपभोक्ताओं या अन्य रचनाकारों के लाभ के लिए वे कौन से अधिकार सौंपना चाहते हैं। एक लेखक, कलाकार या रचनाकार को कॉपीराइट के तहत अपने द्वारा सृजित कार्यों से संबंधित बहुत सारे अधिकार प्राप्त होते हैं। एक तरफ तो ये अधिकार, सृजनकर्ता के लिए बेहद लाभकारी होते हैं, पर दूसरी तरफ इनके कारण ज्ञान या शिक्षा का व्यापक प्रसार एवं आमजन तक इसकी पहुँच बाधित होती है। क्रिएटिव कॉमन्स (CC) रचनाकार के इन्हीं विभिन्न अधिकारों को वर्गीकृत कर उन्हें विशेष चिह्नों द्वारा परिभाषित करता है। रचनाकार या लेखक चाहे तो इनमें से कुछ अधिकार स्वेच्छा से अन्य लोगों या रचनाकारों को रचनात्मक कार्यों एवं शिक्षा के गैर-लाभकारी प्रसार हेतु सौंप सकता है या उक्त अधिकारों को छोड़ सकता है। इससे सृजनधर्मिता एवं ज्ञान के प्रसार-विस्तार में सहायता मिलती है।

सोमवार, 17 जुलाई 2023

दुभाषिया कर्म की चुनौतियाँ

 कुछ लोगों का मानना है कि भाषांतरण किसी व्यक्ति के भाषण/वक्तव्य का शब्द-प्रति-शब्द मौखिक अनुवाद मात्र है। हालाँकि, वास्तविकता इससे बिलकुल इतर है। दुभाषिया के लिए अपेक्षित गुणों (तीक्ष्ण स्मरण शक्ति, वाक कला में निष्णात, नोटिंग का ज्ञान आदि) के साथ-साथ उसे कई अन्य चुनौतियों के लिए सदा तैयार रहना चाहिए।  भाषांतरण एक बेहद जटिल और गतिशील प्रक्रिया है जिसके लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता, प्रशिक्षण और अभ्यास-अनुभव की आवश्यकता होती है। दुभाषिया के लिए केवल दोनों भाषाओं में पारंगत होना ही पर्याप्त नहीं है, उच्च गुणवत्ता वाली भाषांतरण सेवा प्रदान करने के लिए उसके पास व्यापक अनुभव और कौशल भी होना चाहिए। कम योग्य और अनुभवहीन दुभाषिया वक्ताओं के बीच गंभीर गलतफहमियाँ पैदा कर सकता है। उच्च-गुणवत्ता वाले दुभाषिया के पास कई प्रकार के उपकरण और तकनीकें होती हैं जिनका उपयोग वह भाषांतरण की चुनौतियों और कठिनाइयों को दूर करने के लिए करता है।

            भाषांतरण प्रक्रिया के दौरान कुछ निम्नलिखित चुनौतियाँ देखने को मिल सकती हैं :         

        i.            सांस्कृतिक जागरूकता का अभाव :

            भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में एक ही चिह्न या संकेत के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं; जैसे पश्चिमी देशों में उल्लू बुद्धिमत्ता और विवेक का प्रतीक है तो भारतीय संदर्भ में मूर्खता का द्योतक है। यदि ‘He is as wise as an owl’ का भाषांतरण करना हो तो हम क्या करेंगे ? इसका अनुवाद यदि हम यह करें कि ‘वह उल्लू के समान बुद्धिमान है’ तो यह निरा मूर्खता होगी क्योंकि भारत में यह हमारे लिए विरोधाभाषी वक्तव्य होगा। अगर हम यह करें कि ‘वह लोमड़ी की तरह बुद्धिमान है या चालाक है तो एक बार बात बन भी सकती है, किंतु लोमड़ी चालाकी या धूर्तता का प्रतीक है बुद्धिमानी का कम । इसलिए यहाँ दूसरा अनुवाद भी उचित प्रतीत नहीं होता है। इसी प्रकार, कई प्रतीक अलग-अलग हो सकते हैं। यदि दुभाषिया समतुल्य अभिव्यक्ति से परिचित है तो वह उसका प्रयोग कर सकता है अन्यथा उसे सामान्य अर्थ संप्रेषण का प्रयास करना चाहिए। ऊपर के उदाहरण के संदर्भ में बात की जाए तो यहाँ ‘वह बहुत बुद्धिमान है कहना ही उपयुक्त होगा। कई बार एक ही भाषा कई देशों या स्थानों पर बोली जाती है, लेकिन सांस्कृतिक मतभेदों के कारण गलतफहमियाँ हो सकती हैं। विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में, एक ही शब्द नए अर्थ ग्रहण कर लेते हैं और कुछ क्षेत्रीय बोली, मुहावरे, चुटकुले और वाक्यांश सीधे भाषांतरित नहीं किये जा सकते, उनका उस विशेष स्थान पर प्रयोग समझना आवश्यक होता है। दृष्टांत हेतु अंग्रेजी भाषा अमेरिका, इंग्लैंड, भारत और ऑस्ट्रेलिया में बोली जाती है किंतु, इनमें भी स्थान के अनुसार सांस्कृतिक एवं मूल्यगत विविधताएँ पाई जाती हैं । अतः दुभाषिया को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की संस्कृति एवं सांस्कृतिक मूल्यों का अच्छा बोध होना चाहिए ।

      ii.            भौगोलिक जागरूकता का अभाव :

            सांस्कृतिक जागरूकता के साथ-साथ दुभाषिया को स्रोत एवं लक्ष्य भाषा की भौगोलिक स्थितियों का समुचित ज्ञान होना चाहिए । यह ज्ञान भाषाई अभिव्यक्तियों के लिए सहायक तो होता ही है साथ ही इससे भाषांतरण की तैयारी करने में भी सुगमता होती है । उदाहरण स्वरूप ‘carrying coal to Manchester’ का अनुवाद क्या होगा ? इसके लिए Manchestar के बारे में जानकारी हो तो आसानी पता चल सकता है कि इसका अर्थ बिना काम का श्रम करना है, न कि ‘मैनचेस्टर तक कोयला ढोना’ है । मैनचेस्टर में बहुत कोयला निकलता है, वहाँ के लिए कोई मूर्ख ही कोयला ले जाएगा । भारतीय संदर्भ में इसका अनुवाद ‘उल्टे बाँस बरेली को हो सकता है ।

            भौगोलिक ज्ञान से केवल भाषाई अभिव्यक्तियों को समझने में ही आसानी नहीं होती है, बल्कि इससे कार्यक्रम स्थल की जलवायु, मौसम और अन्य आवश्यक जानकारियों का ज्ञान हो जाता है । वहाँ पर किस प्रकार का पहनावा होगा, क्या खान-पान हो सकता है? इसका भी अंदाजा हो जाता है और उसी के अनुसार दुभाषिया अपनी तैयारी कर लेता है ।

   iii.            भाषाई विविधता और क्षेत्रीय अभिव्यक्तियों के ज्ञान का अभाव :

            एक ही भाषा क्षेत्र में कई बार क्षेत्रीय विविधताएँ देखने को मिलती हैं। यदि दुभाषिया को भाषाई विविधता और क्षेत्रीय अभिव्यक्तियों के ज्ञान का अभाव हो तो उसके लिए भाषांतरण का कार्य बहुत बड़ी चुनती होगी। उदाहरण के लिए, यदि किसी ने 'टेक अ हाइक (take a hike)' वाक्यांश का बिना किसी स्पष्टीकरण के सीधे दूसरी भाषा में भाषांतरण कर दिया तो इसका अर्थ शब्दानुवाद बिलकुल नहीं है कि ‘वृद्धि लें’, बल्कि यह अभिव्यक्ति उत्तरी अमेरिकी अंग्रेजी में ‘चले जाओ’ या ‘बाहर निकलो (get out) (झुंझलाहट की स्थिति में) आदि के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक वक्ता जो कह रहा है, उसे सटीक रूप से बताने के लिए एक अच्छे दुभाषिया को दोनों वक्ताओं की मुहावरे-लोकोक्तियों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाई अभिव्यक्तियों की गहरी समझ होनी चाहिए। अयोग्य या अनुभवहीन दुभाषिया को इनके अर्थ संप्रेषण करने में कठिनाई हो सकती है जिनके शाब्दिक अनुवाद का कोई अर्थ नहीं हो। व्यक्तिगत भाषा/वाक शैली भी भिन्न-भिन्न होती है इसलिए विविध भाषा शैली के वक्ताओं को सुनने का पर्याप्त अभ्यास होना चाहिए। यदि किसी राजनयिक या राष्ट्राध्यक्ष के लिए भाषांतरण करना हो तो उनके द्वारा पूर्व में दिए गए वक्तव्यों और भाषणों को सुनना चाहिए, इससे उनकी भाषा शैली एवं भाषा प्रयोग की जानकारी मिलती है जिससे भाषांतरण में सुगमता होगी है।

    iv.            वक्ताओं को सुनने में कठिनाई :

            यह समस्या आम लग सकती है या इस तरफ हमारा ध्यान अक्सर नहीं जाता है, किंतु भाषांतरण के दौरान वक्ता को सुनने में कठिनाई होना एक बहुत ही सामान्य समस्या है। यह समस्या खराब तरीके से सेट किए गए ऑडियो उपकरण (विशेष रूप से दूरस्थ सेटिंग्स में) या स्पीकर के गड़बड़ाने के कारण हो सकती है। अनुभवी दुभाषिया भाषांतरण कार्य से पूर्व ही सुनिश्चित कर लेता है कि सभी ऑडियो उपकरण ठीक से काम कर रहे हैं और उसे पता होता है कि वक्ताओं को यदि कुछ कहना है तो कब निर्देश देना है ताकि उन्हें समझा जा सके। अयोग्य दुभाषिया यह नहीं जानता कि इस चुनौती से कैसे निपटा जाए और वह ऐसे शब्दों को छोड़ सकता है जिन्हें वह ठीक से सुन न सका हो, जिससे गलत भाषांतरण की संभावना रहती है। कई बार श्रोताओं की आवाज़ या अन्य शोरगुल के कारण भी श्रवण में समस्या हो सकती है, इसके लिए उसके पास हमेशा हेडफ़ोन अवश्य होना चाहिए, उसे स्पीकर पर कभी भी निर्भर नहीं रहना चाहिए।

      v.            तकनीकी विषयों का भाषांतरण:

            व्याख्या अक्सर किसी विषय-विशिष्ट के संदर्भ में होती है जैसे कानूनी, चिकित्सा, व्यवसाय और विज्ञान आदि। दुभाषिया को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह इस विशिष्ट क्षेत्र की शब्दावली से अच्छी तरह से स्वयं परिचित हो। उदाहरण के लिए, कुछ लोग बिना किसी तैयारी के चिकित्सा-विशिष्ट शब्दावली जैसे ‘Gallstones’ का भाषांतरण ‘पित्त की थैली में पथरी’ करने में सक्षम होंगे, लेकिन सभी लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार ‘पित्त की थैली (gallbladder)’ का अंग्रेजी में क्या अनुवाद होगा यह भी आम दुभाषिया के लिए चुनौती है, जब तक कि वह इस क्षेत्र विशेष के लिए पूरी तरह से तैयार हो। हालाँकि, यदि विषय वस्तु बहुत विशिष्ट हो, तो दुभाषिया को विषय पर पहले से जानकारी देने की आवश्यकता हो सकती है ताकि वह तैयारी कर सके। एक अयोग्य दुभाषिया ऐसा भाषांतरण करेगा जो भ्रामक और अस्पष्ट होगा।

    vi.            मूल वक्ता के लहजे का अनुकरण:

            मूल वक्ता, जिसका हमें भाषांतरण करना होता है, के लहजे का अनुकरण एक कौशल संबंधी विशेषता है। किसी के लहजे का अनुकरण आसान कार्य नहीं होता है, बल्कि इसके लिए अभ्यास के साथ-साथ प्रतिभा की भी आवश्यकता होती है। कल्पना कीजिए कि कोई वक्ता व्यंग्यात्मक स्वर में कह रहा हो 'ओह, यह तो बहुत बढ़िया है!' यह वाक्य सामान्य स्वर में अनुमोदन की अभिव्यक्ति है तो व्यंग्यात्मक स्वर  अत्यधिक असंतोष व्यक्त करने का एक तरीका है। यदि दुभाषिया इसे समझ नहीं सकता है तो वह अर्थ का अनर्थ कर सकता है। इस उदाहरण से हमें वक्ता के स्वर को समझने की दुभाषिया की क्षमता के महत्व का पता चलता है। चूँकि अर्थ केवल बोले गए शब्दों से ही व्यक्त नहीं होता, बल्कि उसके उच्चारण की शैली या लहजे से भी व्यक्त होता है इसलिए व्यंग्य और हास्य को ठीक से समझने में विफलता गंभीर गलत भाषांतरण में परिणत हो सकती है। अतः भाषांतरण का अनुभवी होना बहुत आवश्यक होता है।

 vii.            मनोयोग की कमी :

            दुभाषिया कभी-कभी स्वास्थ्य या अन्य किसी व्यक्तिगत समस्या के कारण मानसिक तनाव की स्थिति के कारण दुभाषिया कर्म में ध्यान नहीं दे पाता है। मानसिक तनाव से दुभाषिया कर्म हेतु आवश्यक पूर्ण मनोयोग की स्थिति नहीं आ पाती, इस स्थिति में दुभाषिया सही से वक्ता की बातों को समझने में सक्षम नहीं होता है और परिणामतः भाषांतरण के दौरान त्रुटियाँ होने की संभावना बनी रहती है। इस स्थिति में, दुभाषिया को पूर्व में ही भाषांतरण के लिए मना कर देना चाहिए। सामान्यतः यदि संवाद बहुत महत्वपूर्ण हो तो बैकअप (backup) दुभाषिया रखे जाते हैं, उनका प्रयोग बेहतर होता है।

 

इन चुनौतियों /कठिनाइयों पर कैसे विजय प्राप्त किया जा सकता है ?

            दुभाषियों के लिए इन चुनौतियों पर काबू पाने की केवल एक ही कुंजी है और वह है अभ्यास एवं अनुभव। दुभाषिए के लिए प्रतिदिन अभ्यास करना अपरिहार्य है। उसे दोनों भाषाओं की सांस्कृतिक पहलुओं की अच्छी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। क्षेत्र विशेष की शब्दावलियों एवं अभिव्यक्तियों का अभ्यास होना चाहिए। इसके लिए उसे प्रतिदिन विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न पाठों एवं भाषणों के भाषांतरण एवं अनुवाद का अभ्यास करना चाहिए। प्रत्येक दिन, उसे दोनों भाषाओं के समाचार-पत्रों का गहन अध्ययन करना चाहिए। जैसे-जैसे दुभाषिए अधिक अनुभव प्राप्त करते हैं, उनकी सांस्कृतिक संदर्भों की समझ गहरी होती जाती है और आवाज के तान-अनुतान, लहजे की सटीक भाषांतरण करने की क्षमता भी अभ्यास से विकसित हो जाती है। जब भाषांतरण की बात आती है, तो अनुभव का कोई विकल्प नहीं है और एक अयोग्य दुभाषिया को कार्य सौंपने से सभी पक्षों के बीच भ्रम पैदा होने की संभावना रहती है।

      भाषांतरण निश्चय ही चुनौती भरा कार्य है जिसके लिए व्यापक प्रशिक्षण और अनुभव की आवश्यकता होती है। केवल दोनों भाषाओं में पारंगत या निष्णात होना ही पर्याप्त नहीं होता है। उच्च-गुणवत्ता के भाषांतरण के लिए, ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो सामान्य भाषांतरण की चुनौतियों से अच्छी तरह परिचित हो और प्रशिक्षित हो तथा उसे इस कार्य का लंबा अनुभव हो।

दुभाषिए के गुण

            दुभाषिए एक भाषा से दूसरी भाषा में संदेश को संप्रेषित करते हैं। दुभाषिए सांकेतिक भाषा (Sign Language) को बोली जाने वाली भाषा में और बोली जाने वाली भाषा को सांकेतिक भाषा में भी अर्थ संप्रेषण का कार्य करते हैं। दुभाषिया का लक्ष्य लोगों को संदेश को ऐसे सुनाना होता है जैसे कि वे मूल भाषा सुन रहे हों। दुभाषियों को आमतौर पर दोनों भाषाओं को धाराप्रवाह बोलने वाला या उस पर अधिकार रखने वाला होना चाहिए, क्योंकि वे  दोनों भाषाओं के लोगों के बीच स्रोत से लक्ष्य और लक्ष्य से स्रोत भाषा में संवाद करते हैं। एक कुशल या सक्षम दुभाषिए में कुछ निम्नलिखित गुणों की अपेक्षा की जाती है-

        i.            दोनों भाषाओं (स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा) पर समान अधिकार होना चाहिए, उसमें धाराप्रवाह बोलने की क्षमता होनी चाहिए। इसके साथ-साथ वाक कौशल एवं वाकपटुता भी होनी चाहिए।

      ii.            मूल के प्रति वस्तुनिष्ठता और श्रोताओं के प्रति सम्मान का भाव होना चाहिए।

   iii.            दोनों भाषाओं की संरचना एवं क्षेत्रीय स्वरूप, व्यक्ति भाषा आदि विविधताओं से भी पूरा परिचय होना चाहिए।

    iv.            क्षेत्र विशेष की आधारभूत शब्दावली अच्छी तरह से कंठस्थ होनी चाहिए।

      v.            दुभाषिए को एक अच्छे वक्ता के साथ-साथ एक अच्छा श्रोता भी होना चाहिए।

    vi.            उसकी स्मरण शक्ति तीक्ष्ण होनी चाहिए ताकि सुने गए वाक्यों या संदेश को याद रख सके।

 vii.            मूल संदेश या विचार को संक्षेप में लिखने (note taking) की क्षमता होनी चाहिए।

viii.            उसमें अभिनेता के गुण होने चाहिए।

    ix.            कॉन्फ्रेंस या सम्मेलन भाषांतरण हेतु दुभाषियों में बौद्धिक जिज्ञासा का होना आवश्यक है।

      x.            उसमें त्वरित निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए

    xi.            उसे आचार-व्यवहार, नियमावली एवं प्रोटोकॉल से अच्छी तरह परिचित होना चाहिए

 xii.            उसकी भेषभूषा और उसका व्यवहार निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार होना चाहिए

xiii.            स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के बीच उसे सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए, दोनों भाषा समूह के बीच सेतु के रूप में कार्य करना चाहिए।

xiv.            भाषांतरण का प्रतिदिन अभ्यास होना चाहिए

  xv.            किसी भी भाषांतरण कार्य के पहले उसकी समुचित पूर्व तैयारी होनी चाहिए।

इस प्रकार, दुभाषिया कर्म एक चुनौती भरा कार्य है जिसमें नित नई समस्याएँ आती हैं। दुभाषिए को संयमित, अनुशासन एवं निष्ठा पूर्वक अपने कार्य को करना चाहिए। दो भाषा समुदायों के बीच संवाद का कार्य हमेशा से एक बेहद जिम्मेदारी भरा कार्य रहा है। कई बार गलत या भ्रामक अर्थ संप्रेषण से युद्ध अथवा टकराहट-संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अंत: दुभाषिए को दोनों समुदायों अथवा राष्ट्रों के बीच सेतु का कार्य करना चाहिए। 

भाषांतरण के क्षेत्र में रोजगार के अवसर

 भाषांतरण के क्षेत्र में रोजगार के अवसर

             

            भाषांतरण या दुभाषिए प्रविधि में कुशल व्यक्तियों के लिए रोजगार के विभिन्न अवसर उपलब्ध हैं। अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। रोजगार के कुछ क्षेत्र निम्नवत हैं –

i)       अंतरराष्ट्रीय संगठनों यथा- संयुक्त राष्ट्र संघ (UN), यूरोपीय संघ (EU) एवं संघाई सहयोग संगठन (SCO) आदि।

ii)                 राजनय संबंधों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में संवाद हेतु।

iii)               व्यावसायिक-व्यापारिक गतिविधियों में संवाद-संगोष्ठी के लिए।

iv)               अकादमिक-खेल गतिविधियों में विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के मध्य संवाद हेतु।

v)                 पर्यटन के क्षेत्र में गाइड/दुभाषिए के रूप में।

vi)               राजनीतिक रैलियों एवं प्रशासनिक संवाद हेतु ।

vii)              विधिक एवं चिकित्सीय प्रक्रिया में संवाद हेतु।

viii)          संसदीय भाषणों के भाषांतरण हेतु

            इसके साथ ही भाषांतरण में कुशल व्यक्ति अनुवाद कार्य हेतु भी सर्वथा उपयुक्त होता है एवं भाषा से जुड़े अन्य व्यवसायों में भी वह सफल हो सकता है। कुशल अनुवादक तो दुर्लभ होते ही हैं,  किंतु दुभाषिए कर्म में कुशल व्यक्ति विरले ही मिलते हैं।  

मंगलवार, 27 जून 2023

मशीनी अनुवाद की आवश्यकता

         वैसे तो देखा जाए तो अनुवाद की परंपरा बहुत पुरानी है। शुरूआती दौर में अनुवाद कार्य व्यक्तिगत रुचि के लिए किया जाता था, परंतु बाद में धार्मिक ग्रंथो का अनुवाद बहुत तेजी से किया जाने लगा। चूँकि ज्ञान अर्जन के संबंध में मनुष्य की अपनी सीमाएँ हैं क्योंकि हर समाज की अपनी भाषा एवं संस्कृति होती है। लेकिन, समाज के विकास, सांस्कृतिक,  व्यापरिक एवं राजनैतिक उद्देश्यों हेतु अनुवाद आवश्यक हो जाता है। आज के इस आधुनिक दौर में अनुवाद को विज्ञान के रूप में देखा जाने लगा है।

            प्रत्येक देश अपने विकास के लिए ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में हुए शोध, सामाजिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक एवं प्रशासकीय ज्ञान को अपनी भाषा में चाहता है जिसके लिए अन्य भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान को अपनी भाषा में अनूदित करता है। आज विश्व के सभी देश एक-दूसरे से पहले से कहीं अधिक करीब आ चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रों के मध्य आपसी व्यापार एवं संवाद में पूर्व से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट एवं संवाद के अन्य नवाचारी साधनों से आपसी संवाद में तीव्रता आई है। पहले से कहीं अधिक एक-दूसरे पर निर्भरता हो गई है; ऊर्जा के संसाधन किसी देश के पास है तो तकनीक में कोई अन्य देश विकसित है, कृषि में कोई और राष्ट्र आगे है तो कुशल मानव संसाधन की दृष्टि से कोई भिन्न देश समृद्ध है। इस प्रकार, हर राष्ट्र का अपना भौगोलिक-ऐतिहासिक, रणनीतिक, व्यापारिक एवं सामरिक महत्व है। इस स्थिति में विश्व के सभी देशों के मध्य आपसी संवाद का होना पहले से कहीं ज्यादा आवश्यक है। इसी कारण से अनुवाद की माँग तेजी से बढ़ रही है। हर राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की सूचनाओं एवं ज्ञान सामग्री को अपनी भाषा में जानना-समझना चाहता है। मानव अनुवाद एक धीमी एवं अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है, अनुवाद की इस बढ़ती माँग को मानव अनुवाद पूरा करने में सक्षम नहीं है। इसलिए आज के इस तकनीकी दौर में लोग संगणक की ओर उन्मुख हुए हैं। अनुवाद कार्य मशीन द्वारा किए जाने लगा है क्योंकि मशीन द्वारा सैकड़ों पृष्ठ का अनुवाद कुछ ही समय में किया जा सकता है; जबकि मानव अनुवाद द्वारा यह संभव नहीं है। हालाँकि शुरूआती दौर में मशीनी अनुवाद का विकास विशेष उद्देश्य के लिए किया गया था, किंतु अब मशीनी अनुवाद का प्रयोग हर क्षेत्र में किया जाने लगा है। कृत्रिम मेधा (AI) के क्षेत्र में क्रांति आने के बाद मशीनी अनुवाद की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है और मशीनी अनुवाद को हर क्षेत्र जैसे – शिक्षा, व्यापार, राजनीति, राजनय आदि क्षेत्रों से जोड़े जाने लगा है। 

मशीनी अनुवाद क्या है?

 किसी एक प्राकृतिक भाषा (जैसे – हिंदी ) के पाठ को किसी दूसरी प्राकृतिक भाषा (जैसे – मराठी)  में  मशीन द्वारा स्वचालित रूप से अनूदित करने की प्रक्रिया मशीनी अनुवाद कहलाती है। यहाँ मशीन का तात्पर्य संगणक एवं उसके समतुल्य इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों से है। मशीनी अनुवाद प्रक्रिया में जिस भाषा के पाठ को अनूदित किया जाता है उसे स्रोत भाषा तथा जिस भाषा में अनूदित किया जाता है उसे लक्ष्य भाषा कहा जाता है।

जैसे –    Ram eats a mango. (स्रोत भाषा)

            राम आम खाता है (लक्ष्य भाषा)

            उपर्युक्त उदाहरण में, अंग्रेजी भाषा में लिखा गया वाक्य स्रोत भाषा का है, इसलिए यहाँ स्रोत भाषा अंग्रेजी है एवं स्रोत भाषा के वाक्य को हिंदी भाषा में अनूदित किया गया है, इसलिए हिंदी यहाँ लक्ष्य भाषा है।

            मशीनी अनुवाद को ‘यांत्रिक अनुवाद’ या ‘स्वचालित अनुवाद’ के नाम से भी जाना जाता है

            ऐसा माना जाता है कि मशीनी अनुवाद में भी नाइडा (1964) द्वारा बताई गयी अनुवाद की तीनों प्रक्रियाएँ – विश्लेषण, अंतरण, पुनर्गठन प्रक्रियाएँ मशीनी अनुवाद में भी संपादित होती हैं जिसे संगणक प्रोग्राम द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में सर्वप्रथम  स्रोत भाषा के पाठ को निविष्ट (input) के रूप में प्रविष्ट किया जाता है और पहले से तैयार की गयी विश्लेषण प्रक्रिया द्वारा पाठ को विश्लेषित किया जाता है ततपश्चात, अंतरण प्रक्रिया द्वारा स्रोत भाषा के पाठ के पदों, पदबंधों एवं वाक्यों को लक्ष्य भाषा के पाठ के पदों, पदबंधों एवं वाक्यों में स्थानांतरित किया जाता है इसके बाद पुनर्गठन प्रक्रिया द्वारा लक्ष्य पाठ को उत्तपादित किया जाता है।



इस प्रकार, मशीनी अनुवाद या यांत्रिक अनुवाद ऐसा अनुवाद है जो मानव नहीं बल्कि मशीन अर्थात कम्प्युटर, मोबाइल आदि यंत्रों द्वारा संपादित किया जाता है। यह मानव अनुवाद की तुलना में समय, श्रम एवं संसाधन तीनों को बचाने वाला होता है। एक ओर जहाँ मानव अनुवाद श्रमसाध्य होता है, मशीनी अनुवाद के लिए हमें उतनी मेहनत की अवश्यकता नहीं होती है। मानव द्वारा किए जाने वाले अनुवाद में मशीन अनुवाद की तुलना में समय भी बहुत कम लगता है; या यूँ कहें कि कुछ भी नहीं लगता है। मानव अनुवाद के लिए हमें शब्दकोश, विश्वकोश, विषय विशेषज्ञ आदि संसाधनों कि अवश्यकता पड़ती है, किन्तु मशीन अनुवाद में इनकी अवश्यकता कम है या फिर पश्च-सम्पादन के समय पर कुछ जरूरत पड़ती है। एक ओर जहाँ मशीनी अनुवाद के कई लाभ हैं; वहीं दूसरी तरफ मशीनी अनुवाद कि कुछ चुनौतियाँ भी हैं। गुणवत्ता की दृष्टि से मानव अनुवाद मशीनी अनुवाद से प्राय: बेहतर होता है। मशीनी अनुवाद की गुणवत्ता सुधारने के लिए उनमें पश्च-संपादन की अवश्यकता पड़ती है। मानव यदि मशीन पर पूर्णत: निर्भर न होकर अनुवाद कार्य के लिए केवल सहायता ले तो मशीनी अनुवाद अत्यंत उपयोगी है। इससे हमें अनुवाद के दौरान लगने वाले समय, श्रम और संसाधन तीनों की बचत होती है। 

सोमवार, 26 जून 2023

दुभाषिया कर्म का महत्व

 दुभाषिया कर्म विश्व के सबसे चुनौती पूर्ण कार्यों में से एक है। विश्व के सभी देश एक-दूसरे से पहले से कहीं अधिक करीब आ चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रों के मध्य आपसी व्यापार एवं संवाद में पूर्व से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट एवं संवाद के अन्य नवाचारी साधनों से आपसी संवाद में तीव्रता आई है। पहले से कहीं अधिक एक-दूसरे पर निर्भरता हो गई है; ऊर्जा के संसाधन किसी देश के पास है तो तकनीक में कोई अन्य देश विकसित है, कृषि में कोई और राष्ट्र आगे है तो कुशल मानव संसाधन में कोई भिन्न देश समृद्ध है। इस प्रकार, हर राष्ट्र का अपना भौगोलिक-ऐतिहासिक अथवा रणनीतिक, व्यापारिक एवं सामरिक महत्व है। इस स्थिति में विश्व के सभी देशों के मध्य आपसी संवाद का होना पहले से कहीं ज्यादा आवश्यक है। विभिन्न देशों की अपनी भाषाएँ हैं अतः उनके मध्य परस्पर संवाद हेतु ‘भाषांतरण’ या ‘दुभाषिया कर्म’ आवश्यक है। यथा, भारत जैसे राष्ट्र को ऊर्जा- पेट्रोल, डीजल, गैस आदि- के लिए अन्य देशों से आयात करना पड़ता है, इस हेतु उन देशों से संवाद करने के लिए हमें दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है। राजनयिक संबंधों को भी बनाए रखने और बेहतरी के लिए दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है। यह संभव नहीं है कि एक राष्ट्र का राष्ट्राध्यक्ष – प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति – अन्य देशों की सभी भाषाओं पर महारत हासिल कर ले। राष्ट्राध्यक्षों एवं राजनयिकों को दूसरे देश के समकक्ष से बातचीत हेतु दुभाषिए की जरूरत अवश्य पड़ती है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों अथवा मंचों पर भी आपसी संवाद हेतु दुभाषिए अनिवार्य हैं।

            हम जानते हैं कि भारत एक बहुभाषिक राष्ट्र है जहाँ लगभग 2000 अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं और संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ कार्यालयी भाषा के रूप में दर्ज हैं। हिंदी और अंग्रेजी संघ की राजकीय भाषा के रूप में कार्यरत हैं तो विभिन्न राज्यों की अपनी-अपनी भाषाएँ हैं। यहाँ तक कि कई राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ है। संघ एवं राज्यों के मध्य आपसी संवाद, एक राज्य का दूसरे राज्य से संवाद हेतु भाषांतरण की आवश्यकता है। यदि उत्तर भारत का कोई राजनेता दक्षिण भारत के किसी राज्य में भाषण अथवा लोगों के बीच बोलने के लिए जाता है तो उसे दुभाषिए की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। चुनावी रैली या सभा हो या को कार्यालयी बैठक यदि यह दो भिन्न भाषा-भाषी लोगों के मध्य है तो वहाँ भाषांतरण की अनिवार्यता निःसंदेह है।  अन्य देशों की अपेक्षा भारत में दुभाषिया कर्म की आवश्यकता अधिक है क्योंकि अन्य देशों में राजकीय भाषा प्रायः एक ही होती है और उनका निर्माण भी भाषा के आधार पर हुआ है।

      इस प्रकार विश्व में और भारत में दुभाषिया कर्म महत्वपूर्ण है। जहाँ एक ओर अंतरराष्ट्रीय मंचों अथवा संगठनों में यथा – संयुक्त राष्ट्र संघ, यूरोपीय संघ आदि में दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है; वहीं दूसरी तरफ, भारत की संसद में भी भारतीय भाषाओं के मध्य संवाद हेतु दुभाषिए की जरूरत होती है। 

आशु अनुवाद एवं निर्वचन

             आशु अनुवाद और निर्वचन दोनों के लिए अंग्रेजी भाषा में ‘interpretation’ शब्द का ही प्रयोग होता है। ‘Interpretation’ शब्द के लिए हिंदी भाषा में कई अन्य शब्द भी प्रचलित हैं, जैसे- व्याख्या, भावार्थ, मौखिक अनुवाद इत्यादि। किंतु, किन्हीं दो भाषाओं के मध्य मौखिक अनुवाद के लिए ‘भाषांतरण’ अथवा ‘आशु अनुवाद शब्द का ही प्रयोग होता है।  सामान्य अर्थों में, Interpretation’ हेतु ‘निर्वचन’ शब्द ही अधिक चलन में है।

आशु अनुवाद शुद्ध रूप से एक मौखिक प्रक्रिया है जबकि निर्वचन मौखिक या लिखित दोनों माध्यम से हो सकता है। आशु अनुवाद में दुभाषिए के पास व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं होती है, किंतु निर्वचन में निर्वचनकार पाठ या उक्ति का अपने विवेक एवं शास्त्रों के आधार पर व्याख्या कर सकता है। आशु अनुवाद की प्रक्रिया अनिवार्यतः एक भाषा से दूसरी भाषा के मध्य होती है, लेकिन निर्वचन में यह आवश्यक नहीं है। निर्वचन ‘अन्तरभाषिक’ और ‘अंत:भाषिक’ दोनों प्रकार का हो सकता है।

निर्वचन या व्याख्या संदर्भ या क्षेत्र के अनुसार कई प्रकार का हो सकता है; जैसे भाषिक निर्वचन, साहित्यिक निर्वचन, सांस्कृतिक निर्वचन, विधिक निर्वचन या क़ानूनी व्याख्या, कलात्मक व्याख्या, स्वप्न व्याख्या इत्यादि। उदाहरण के लिए, विधि के क्षेत्र में निर्वचन से तात्पर्य न्यायालयों द्वारा संविधियों की भाषा, शब्दों एवं अभिव्यक्तियों के अर्थ- निर्धारण की प्रक्रिया है। निर्वचन के माध्यम से न्यायालयों द्वारा संविधि में प्रयुक्त भाषा या शब्दों का अर्थान्वयन या अर्थ-निर्धारण किया जाता है। निर्वचन में दर्शनशास्त्र का भी समावेश हो जाता है। किंतु, दो भाषाओं के मध्य मौखिक रूप से संप्रेषण हेतु ‘भाषांतरण शब्द का प्रयोग ही ज्यादा उचित प्रतीत होता है। 

आशु अनुवाद एवं अनुवाद

 ‘आशु अनुवाद विशिष्ट अनुवाद है जो मौखिक रूप से संपन्न होता है । ‘आशु अनुवाद का प्रयोग मौखिक अनुवाद की तीव्र गति के आधार पर किया गया है क्योंकि आशु का अर्थ हिंदी में तीव्र, तेज गति होता है। हम सभी जानते हैं कि सामान्य अनुवाद करने  के लिए हमारे पास पर्याप्त समय होता और संसाधन भी। संसाधन से हमारा यहाँ तात्पर्य शब्दकोश, कंप्यूटर, मोबाइल, सॉफ्टवेयर एवं अन्य संसाधन आदि से है। किंतु, ‘भाषांतरण के लिए हमारे पास सोचने के लिए और कोश या अन्य संसाधनों के उपयोग करने के लिए समय नहीं होता है। अनुवाद के दौरान हमारे पास स्रोत पाठ को जानने-समझने के लिए अवसर होता है, हम इसके लिए क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों से विचार-विमर्श कर सकते हैं किंतु आशु अनुवाद में हमारे पास इतना समय नहीं होता है। ‘आशु अनुवादएक मौखिक प्रक्रिया है जबकि अनुवाद शुद्ध रूप से लिखित/मुद्रित पाठों का होता है। आशु अनुवाद या भाषांतरण के दौरान दुभाषिए को स्रोत भाषा के वक्ता के लहजे, तान-अनुतान, बोलने की शैली और उच्चारण को लक्ष्य भाषा के श्रोताओं तक प्रदर्शित करना होता है। अनुवाद में भी अनुवाद को स्रोत भाषा के पाठ की प्रकृति एवं शैली के समतुल्य ही अनुवाद करना होता है, लेकिन यहाँ दुभाषिए को एक अभिनेता का अतिरिक्त दायित्व भी निर्वहन करना होता है। उसके अन्दर एक कुशल वक्ता के साथ-साथ एक अच्छे अभिनेता के गुण भी होने चाहिए। यह अनिवार्यता अनुवाद पर लागू नहीं होती है। ‘आशु अनुवाद के दौरान पुनरीक्षण की सुविधा और अवसर नहीं होता है जबकि पुनरीक्षण अनुवाद का एक अपरिहार्य अंग है। दुभाषिए को क्षेत्र विशेष की आधारभूत शब्दावलियाँ अच्छी तरह से कंठस्थ होनी चाहिए लेकिन अनुवाद के लिए यह आवश्यक नहीं, वह कोश का प्रयोग कर सकता है। दुभाषिए को क्षेत्र विशेष के प्रोटोकॉल शिष्टाचार एवं व्यावसायिक कोड-नैतिकता आदि से संबंधित ज्ञान भी होना चाहिए क्योंकि उसे संसदीय कार्यवाही में, राजनीतिक एवं राजनयिक परिवेश में, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, विदेशी राजनयिक अथवा प्रतिनिधियों के मध्य, अंतरराष्ट्रीय संवादों-संगोष्ठियों में ‘भाषांतरण अथवा ‘आशु अनुवाद’ का कार्य करना पड़ता है; पर अनुवादक के लिए यह आवश्यक नहीं है। दुभाषिए को एक ही भाषा के विभिन्न डायलेक्ट, इडियोलेक्ट आदि अथवा वक्ता पर क्षेत्रीय/व्यक्तिगत प्रभाव को समझने की क्षमता होनी चाहिए अतः दुभाषिए को स्रोत भाषा में विविध वक्ताओं को सुनने का अभ्यास होना चाहिए; किंतु ऐसी चुनौती अनुवाद में प्राय: कम ही देखने को मिलती है। दुभाषिए को लक्ष्य भाषा में विभिन्न तान-अनुतान एवं शैलियों में बोलने का निरंतर अभ्यास करना चाहिए, उसे विश्व के स्रोत भाषा के प्रमुख नेताओं के बोलने के लहजे की लक्ष्य भाषा में मिमिक्री अथवा नक़ल/अनुकरण करने की भी कोशिश करनी चाहिए। अनुवाद में भी अभ्यास का महत्व है लेकिन  ऐसी आवश्यकता अनुवाद में नहीं होती है। भाषांतरण के लिए ‘नोट करना (note taking) या महत्वपूर्ण तथ्यों को लिखना बहुत ही आवश्यक है तथा इसके लिए भाषांतरण के प्रशिक्षण के दौरान अभ्यास कराया जाता है, पर अनुवाद के लिए यह अपरिहार्य नहीं है।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि भाषांतरण अथवा आशु अनुवाद एवं अनुवाद दोनों ही एक भाषा से दूसरी भाषा में संदेश को संप्रेषित करने की प्रक्रिया हैं; किंतु इनका माध्यम अलग-अलग है। पहला मौखिक है तो दूसरा लिखित अथवा मुद्रित। किंतु, इसके अतिरिक्त भी आशु अनुवाद की कई विशेष चुनौतियाँ हैं जो अनुवाद के दौरान प्रायः नहीं होती हैं। यदि भाषांतरण अथवा आशु अनुवाद को विश्व का सबसे कठिन कार्य कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं जान पड़ती।