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रविवार, 8 जनवरी 2023

‘भारत में उपनिवेशवाद और अंग्रेजी भाषा नीति’

                                     भारत में उपनिवेशवाद और अंग्रेजी भाषा नीति

भारत में ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान अंग्रेजी भाषा को ही राजकीय भाषा के तौर पर प्रयोग किया जाता था। औपनिवेशिक शक्तियाँ जैसे इंग्लैंड, फ़्रांस, पुर्तगाल आदि जहाँ भी गए वे अपनी भाषा का प्रयोग करते थे तथा अपने उपनिवेश में अपनी भाषा को राजकीय भाषा के रूप में स्थापित किया। भारत में इंग्लैंड का प्रभुत्व स्थापित हुआ और इसी के साथ भारत में अंग्रेजी भाषा को मुख्य भाषा के तौर पर इस्तेमाल किया गया।

भारत में अंग्रेजी भाषा की नीति को समझने के लिए हमें औपनिवेशिक काल से प्रारंभ करना होगा। ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजी को बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया। लार्ड मैकाले का प्रसिद्ध ‘मिनट्स ऑन इंडियन एजुकेशन’ (English Education Act, 1835) में अंग्रेजी को लेकर उनकी दृष्टि एवं योजना स्पष्ट दिखती है। उसके अनुसार उन्होंने भारत में ऐसी शिक्षा व्यवस्था लागू की कि भारतीय दिखने में तो भारतीय जैसे रहे लेकिन मानसिक स्तर पर नए अंग्रेज बन गए। उसका उद्देश्य ऐसे वर्ग को तैयार करना था जो नस्ल और रंग में भारतीय हों किंतु रुचि, मत, नैतिकताओं एवं बुद्धि से अंग्रेज हों। वे ऐसा करने में बहुत हद तक सफल भी रहे। अंग्रेजों ने आरंभ अंग्रेजी को लेकर  अपनी महत्वाकांक्षी शैक्षिक नीतियाँ चलाई लेकिन वे कुछ खास कारगर साबित नहीं हुईं।   वे केवल अंग्रेजी ज्ञान पर ही बल देते थे लेकिन बाद में उन्हें अपनी नीतियों में बदलाव किया। अंग्रेजों द्वारा भारत में स्थापित शैक्षिक संस्थानों ने देश के इतिहास, साहित्य एवं भाषाओं का अध्ययन शुरू किया लेकिन अध्ययन की भाषा सदैव अंग्रेजी ही रही। उन्होंने शिक्षा का माध्यम पूर्णत: अंग्रेजी ही रखा। संस्कृत, फारसी, हिंदुस्तानी और अंग्रेजी ये चार भाषाएँ हैं जिन्होंने औपनिवेशिक काल से लेकर स्वतंत्रता तक का समय देखा है। संस्कृत शास्त्रीय पांडुलिपियों की भाषा बनकर सिमट गयी थी और फारसी धीरे-धीरे कार्यालयों की भाषा बन गयी। 1799 में कार्यालयों की भाषा के लिए फारसी के साथ-साथ हिंदुस्तानी को भी अनिवार्य कर दिया गया। 1838 में अंग्रेजी ने फारसी का स्थान ले लिया। अंग्रेजी भाषा का शिक्षण एवं अभिग्रहण ब्रिटिश भारत में भाषा और साहित्य दोनों में ही रहा। इस प्रकार, अंग्रेजी ब्रिटिश उपनिवेश काल में भारत की राजकीय भाषा बन गयी और यह स्थिति आज भी बनी हुई है।

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

 

तीसरी कसम

(फिल्म समीक्षा – हिंदी शिक्षण)

तीसरी कसम फिल्म पहली बार सन् 1966 में प्रदर्शित हुई। फिल्म का निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया है।/ फिल्म के निर्देशक बासु भट्टाचार्य हैं। यह फिल्म फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की प्रसिद्ध कहानी ‘तीसरी कसम’ पर आधारित है। इस फिल्म की पटकथा का लेखन नाबेन्दू घोष ने किया है।/ नाबेन्दू घोष ने इस फिल्म की पटकथा लिखी है। फिल्म में संगीत देने का कार्य शंकर-जयकिशन ने किया है। फिल्म के गीतकार शैलेन्द्र हैं, जो फिल्म के निर्माता भी हैं। फिल्म में मुख्य अभिनेता के तौर पर राज कपूर एवं अभिनेत्री के तौर पर वहीदा रहमान ने काम किया है। / फिल्म के मुख्य अभिनेता राज कपूर हैं एवं अभिनेत्री वहीदा रहमान हैं।

            फिल्म के पात्र हिरामन और हिराबाई हैं। हिरामन एक बैलगाड़ी चालक है और हिराबाई  एक अभिनेत्री एवं नर्तकी है। फिल्म में हिरामन तीन कसम/कसमें खाता है।  पहली कसम है कि  वह अपनी बैलगाड़ी में अवैध/गैर-कानूनी सामान नहीं ढोएगा। दूसरी कसम वह लेता है कि वह भविष्य में कभी भी बाँस की लदनी नहीं लेगा। तीसरी कसम वह खाता है कि वह कभी भी नर्तकियों को अपनी गाड़ी में नहीं बैठाएगा। यह फिल्म मुख्यत: ‘तीसरी कसम’ के बारे में है।

यह फिल्म एक प्रेम कहानी है। फिल्म में हिरामन और हिराबाई एक-दूसरे को पसंद करते / चाहते हैं, किंतु वे इसका इजहार/व्यक्त नहीं कर पाते हैं। इसके पीछे का कारण उस समय का समाज भी है जहाँ नर्तकियों को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता था। हिरामन यह बात जानता था और हिराबाई को भी मालूम था कि उसे समाज एक पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। दोनों समाज के कारण मजबूर/ विवश/ लाचार/ निःसहाय / असहाय  हैं। हिराबाई बड़े शहर की एक डांस कंपनी से भागी हुई है इसलिए पुलिस उसे ढूंढ रही है। वह अंत में हिरामन एवं मेले को छोड़कर वापस शहर चली जाती है। उसी समय वह तीसरी कसम खाता है।

            मुझे यह फिल्म पसंद है क्योंकि फिल्म का संगीत और नृत्य अच्छा है। मुझे प्रेम  कहानियाँ बहुत पसंद है। फिल्म का प्रिंट पुराना है इसलिए कई चीजें स्पष्ट नहीं दिखती हैं। फिल्म यदि रंगीन होती तो और अच्छा लगता।


 

प्रस्तुत है हिंदी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार-कहानीकार जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कहानी ‘पुरस्कार का संक्षेप एवं सरल संस्करण । आशा है यह संस्करण हिंदी को विदेशी भाषा के रूप में सीखने वाले शिक्षार्थियों के लिए उपयोगी होगी ।

पुरस्कार

-         जयशंकर प्रसाद

उन्हें एक-दूसरे से प्यार/प्रेम हो जाता है। अरुण (मधुलिका के राज्य) कोशल पर अधिकार करना चाहता है। आरंभ/शुरू में मधुलिका अरुण का साथ देना/की सहायता करना चाहती है। लेकिन, बाद में उसे कोशल के लिए अपने पिता के कार्य याद आ जाते  हैं । उसे पछतावा होने लगता है।  

उसे अपने देश के लिए प्रेम उमड़ने लगता है।  तभी वह सेनापति को सैनिकों के साथ गुजरते हुए देखती है। वह सेनापति को रोककर सारी बातें कहती है। पहले तो उसे पागल समझता है किंतु जब वह विस्तार से सारी बात उसे बताती है, वह समझ जाता है। वह मधुलिका को तुरंत गिरफ्तार/कैद कर लेता है। उसके बाद अरुण भी पकड़ा जाता है। इस प्रकार, कोशल राज्य शत्रुओं/दुश्मनों से बच जाता है।

राजा/नरेश  मधुलिका से बहुत प्रसन्न/खुश होते हैं। वह उसे पुरस्कार देने की बात करते हैं और पूछते हैं कि तुम्हें क्या चाहिए । परंतु, मधुलिका कुछ नहीं माँगती है। महाराज स्वयं की सारी निजी जमीन/भूमि पुरस्कार स्वरूप देने के लिए तैयार हैं, मगर मधुलिका कुछ भी लेने से मना करती है। राजा के बार-बार आग्रह करने पर मधुलिका अरुण के समीप/नजदीक/पास जाकर प्राणदंड/मृत्युदंड  पुरस्कार में देने के लिए कहती है।

बुधवार, 28 सितंबर 2022

 

मेरा परिवार (कुटुंब)

My family

मेरा नाम ______ है मेरा परिवार एक संयुक्त / एकल परिवार है मेरे परिवार में ______ सदस्य (लोग) हैं मेरे पिता जी / पापा का नाम श्री __________________ है वे ______________हैं उनकी आयु ____ वर्ष है मेरी माता जी का नाम श्रीमती ________________ है वे  _____________ हैं उनकी उम्र __________ साल है मेरे ____ भाई और ____ बहन हैं मेरा बड़ा भाई _______ वर्ष का है वह _______ कक्षा में पढ़ता है उसे क्रिकेट खेलने पसंद है मेरा छोटा भाई कक्षा ____ में पढ़ता है वह थोड़ा नटखट और शरारती है वह पूरे दिन /दिन भर इधर से उधर भागता रहता है  मेरी बहन का नाम __________ है वह बहुत शालीन एवं मेधावी है वह कक्षा _______ में पढ़ती है उसे चिड़ियों एवं जानवरों के साथ खेलना पसंद है हमारे पास एक कुत्ता एवं दो बिल्लियाँ भी हैं मेरे कुत्ते का नाम ______ है तथा बिल्लियों का नाम ____________ एवं ___________ है मेरा कुत्ता बड़ा ही प्यारा है मेरी बिल्लियाँ बड़ी ही चालाक हैं एवं वे दिन भर हमारे आगे-पीछे घूमती रहती हैं मेरे दादा-दादी दूसरे शहर में रहते हैं हम सप्ताहांत (वीक-एंड) में उनसे प्राय: / अकसर (अक्सर) मिलने जाते/ जाया करते हैं मेरे चाचा और चाची भी वहीं दादा-दादी के साथ रहते हैं ... हम एक-दूसरे का ध्यान / खयाल रखते हैं   ...मेरा परिवार एक सुखी परिवार है मुझे अपना परिवार बहुत प्रिय/प्यारा है

 

अपना परिचय / स्वयं का परिचय

Self-Introduction

नमस्ते ! नमस्कार !

1.                 मेरा नाम _________________ है (नाम)

2.                 मैं ______________ हूँ  (व्यवसाय, नागरिकता )

3.                 मैं ______________ हूँ  (व्यवसाय, नागरिकता )

4.                 मेरी उम्र / आयु ________ वर्ष/साल है  (आयु)

5.                 मैं ________ वर्ष / साल का हूँ  (आयु)

6.                 मैं __________ से आया / आई हूँ  -- मैं ___________ का रहने वाला/वाली हूँ

7.                 मैं ____________ में रहती हूँ (निवास)

8.                 मैं _________, ___________ और __________ भाषाएँ बोल सकता / सकती हूँ

9.                 मैं वर्तमान / आजकल में _________ सीख रहा / रही हूँ

10.           मुझे फुटबॉल खेलना / देखना पसंद है

11.           मुझे संगीत सुनना अच्छा लगता है

12.           भारतीय संगीत एवं चित्रकला में मेरी गहरी रुचि है

13.           हिंदी फ़िल्में भी मुझे अच्छी लगती हैं

14.           मुझे समय काटना या बर्बाद करना पसंद नहीं है

15.           भारतीय व्यंजन/भोजन _____________ पसंद नहीं हैं/है

16.           मैं हिंदी __________ के लिए सीख रहा / रही हूँ

मंगलवार, 13 सितंबर 2022

 

व्यक्ति बोली (idiolect) एवं क्षेत्रीय बोली (dialect)

भाषा प्रमुखतया वाचिक या मौखिक होती है लेखन का विकास भाषा के लिए बाद की घटना है तथा लिपि भाषा के लिए प्रौद्योगिकी के सामान है। भाषा-व्यवहार के अंतर्गत हम व्यक्ति बोली (idiolect) एवं क्षेत्रीय बोली (dialect) का अध्ययन करते हैं भाषा का प्रयोग एवं व्यवहार परिवेश, भूगोल, क्षेत्र, आदि के अनुसार अलग-अलग होता है। हम जिस प्रकार से अपने परिवार के लोगों से बात करते हैं, उसी प्रकार से कार्यालय, विद्यालय आदि औपचारिक स्थलों पर बात नहीं करते। हम जिस प्रकार से अपने घनिष्ठ या करीबी मित्रों से बात करते हैं, उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग किसी अनजान या अपरिचित व्यक्ति से बात करते समय नहीं करते हैं । हम यह भी देखते हैं कि एक ही भाषा भिन्न-भिन्न भौगोलिक स्थानों पर भिन्न-भिन्न तरीके से बोली जाती है। औपचारिक परिवेश में हम औपचारिक भाषा का प्रयोग करते हैं, किंतु अनौपचारिक परिवेश में हम दूसरे तरीके से बात करते हैं। अलग-अलग समाज का वर्ग अपनी शिक्षा-दीक्षा, सामाजिक स्थिति के कारण भिन्न-भिन्न तरीके से भाषा का प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए, जिस प्रकार की हिंदी लखनऊ में बोली जाती है उसी प्रकार की हिंदी मुंबई में नहीं बोली जाती। इस प्रकार, भाषा व्यवहार भाषा की विविध और विषमरूपी प्रकृति है।

प्रत्येक व्यक्ति की किसी भाषा में अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने की अपनी एक अलग शैली होती है। व्यक्ति बोली (idiolect) किसी व्यक्ति के द्वारा भाषा का वह अनूठा प्रयोग है, जिसमें शब्दावली का चयन और प्रयोग, व्याकरण, उच्चारण, तान-अनुतान आदि शामिल है। हर व्यक्ति एक ही भाषा को अलग-अलग तरीके से बोलता है। हम लेखकों, नेताओं-अभिनेताओं आदि के भाषा प्रयोग में भी अंतर देख सकते हैं। इस प्रकार, व्यक्ति विशेष के द्वारा बोली जाने वाली अनूठा प्रयोग को ही व्यक्ति बोली (idiolect) कहा जाता है। किसी व्यक्ति की भाषा की व्यक्तिगत विशेषताएं व्यक्ति बोली के अंतर्गत रखी जा सकती हैं।

जैसा कि ऊपर हमने देखा है विभिन्न क्षेत्रों में एक ही भाषा अपने भूगोल के अनुसार अलग-अलग तरीके से बोली जाती है। उस पर क्षेत्रीयता का प्रभाव देखने को अवश्य मिलता है; यथा हैदराबादी हिंदी, मुम्बइया हिंदी, लखनऊ की हिंदी आदि। इस प्रकार, किसी भाषा के क्षेत्रीय प्रकारों को हम क्षेत्रीय बोली (dialect) के नाम से जानते हैं। भाषा में क्षेत्रीय विशेषताओं को हम क्षेत्रीय बोली (dialect) के अंतर्गत रखते हैं।

भाषा व्यवस्था (Langue) एवं भाषा व्यवहार (Parole)

भाषा व्यवस्था (Langue system) एवं भाषा व्यवहार (Language use) की अवधारणा फ़र्दिनौंद द सोस्युर (Ferdinand de Saussure) द्वारा प्रतिपादित ‘लौंग’ (Langue) एवं ‘पारोल’ (Parole) की संकल्पना में निहित है। इस संकल्पना का उल्लेख उनकी पुस्तक ‘cours de linguistique générale’ (कोर्स इन जनरल लिंग्विस्टिक्स) में किया गया है। फ्रांसीसी भाषा का शब्द ‘लौंग’ (Langue) किसी भाषा विशेष को सूचित करता है। भाषा-व्यवस्था अर्थात ‘लौंग’ किसी भाषा विशेष की संरचना के निश्चित नियमों का निर्धारण करती है जो अमूर्त होते हैं। ‘लौंग’  अपनी प्रकृति में निश्चित, निर्धारित, परिगणनीय एवं समरूपी (homogenous) होती है। भाषा-व्यवस्था अर्थात ‘लौंग’ समष्टिगत सत्ता है। उदाहरण के लिए, हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच आदि अलग-अलग भाषा-व्यवस्थाएँ (Langue) हैं।

भाषा व्यवहार या ‘पारोल’ (Parole) किसी प्रयोक्ता या व्यक्ति द्वारा व्यवहृत भाषा प्रयोग है। ‘पारोल’ (Parole) वक्ता का विशिष्ट वाक्-व्यवहार है। यह विषमरूपी होती है तथा इसमें व्यवहार करने का स्थान, व्यक्ति, वातावरण आदि से इसमें विविधता देखी जा सकती है। दृष्टांत के लिए, हिंदी एक भाषा व्यवस्था है लेकिन सभी लोग एक ही प्रकार की हिंदी का प्रयोग नहीं करते हैं । व्यवहृत हिंदी समय, स्थान, परिवेश एवं व्यक्ति के कारण अलग-अलग प्रकार से प्रयोग में लाई जाती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुसार भाषा का प्रयोग करता है, यह भाषा प्रयोग या व्यवहार ही ‘पारोल’ है। किसी भी भाषा में स्वनिमों (phoneme) की संख्या निश्चित है लेकिन स्वनों (phones) की संख्या असंख्य है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी में स्वनिमों की संख्या मात्र 44 है लेकिन इन्हीं स्वनिमों से अनेकों सार्थक ध्वनियाँ अर्थात स्वन बनाए जा सकते हैं। स्वनिम (phoneme) भाषा व्यवस्था के अंतर्गत आता है जबकि स्वनों का प्रयोग भाषा व्यवहार के अंतर्गत आता है। भाषा व्यवस्था एवं भाषा व्यवहार को हम संगीत के उदाहरण से समझ सकते हैं। भारतीय संगीत में प्रत्येक राग का एक निश्चित एवं निर्धारित रूप होता है, लेकिन एक ही राग पर कई भिन्न-भिन्न गाने या संगीत तैयार किये जा सकते हैं। इसी प्रकार भाषा-व्यवस्था एक निश्चित व्यवस्था है जिसके कुछ निश्चित नियम होते हैं लेकिन इन्हीं नियमों से भाषा का प्रयोक्ता असंख्य रूप में इसे व्यवहृत करता है ।

भाषा-व्यवस्था अमूर्त एवं रूपपरक अधिक है जबकि भाषा-व्यवहार मूर्त एवं अभिव्यक्तिपरक अधिक है। किसी भाषा के व्याकरण में उस भाषा की व्यवस्थाओं एवं संरचनाओं के नियमों का निर्धारण होता है। भाषा का प्रयोक्ता व्याकरणिक नियमों का भले ही जानकार नहीं होता किंतु वह अपनी भाषा का प्रयोग करता है। 

शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

हिंदी की वर्णमाला : वर्गीकरण (Types and Arrangements of Alphabets in Hindi)

                             हिंदी की वर्णमाला : वर्गीकरण (Types and Arrangements of Alphabets in Hindi)

                                                    स्वर (Vowels in Hindi)

                                                    व्यंजन (Consonants  in Hindi)



हिंदी व्यंजन (Consonants in Hindi) एवं Place and Manner of Articulation of Hindi consonants (उच्चारण स्थान एवं उच्चारण प्रयत्न)

                                                     हिंदी व्यंजन (Consonants in Hindi) 

                                 व्यंजनों का वर्गीकरण (Classification of Consonants)

                Place and Manner of Articulation of Hindi consonants (उच्चारण स्थान एवं उच्चारण प्रयत्न)




हिंदी में स्वर और उनका आइपीए चिह्न, उच्चारण

                                 

                                           हिंदी में स्वर और उनका आइपीए चिह्न, उच्चारण 

                                (Vowels in Hindi, pronunciation and their IPA symbols)




हिंदी भाषा में व्यंजन ध्वनियाँ (Consonant sounds in Hindi)

                            हिंदी भाषा में व्यंजन ध्वनियाँ (Consonant sounds in Hindi) 

व्यंजन वैसी ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण के लिए किसी स्वर की जरुरत होती है । ऐसी ध्वनियों का उच्चारण करते समय हमारे मुख के भीतर किसी न किसी अंग विशेष द्वारा वायु का अवरोध होता है । परम्परागत वैयाकरणों के अनुसार “जो स्वर की सहायता से उच्चारित हो वह व्यंजन है ।” भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से व्यंजन की परिभाषा इस प्रकार है – “जिन ध्वनियों के उच्चारण में कहीं न कहीं कोई अवरोध हो, उसे व्यंजन ध्वनि कहते हैं ।” स्वर स्वत: उच्चारित होते हैं और व्यंजन स्वर की सहायता से ।

हिंदी में 25 व्यंजन (वर्गीय) ध्वनियाँ हैं जो स्पर्श हैं ।

क वर्ग – क  ख  ग  घ  ड.

च वर्ग – च  छ  ज  झ  ञ

ट वर्ग – ट  ठ   ड  ढ  ण

त वर्ग – त  थ  द  ध  न

प वर्ग – प  फ  ब  भ  म

उपरोक्त ध्वनियों में प्रत्येक वर्ग की पंचों ध्वनियाँ एक ही स्थान से निकलती हैं अर्थात् उच्चारित होती हैं; इसीलिए इन्हें वर्गीय ध्वनि कहा गया है । इन वर्गीय ध्वनियों में प्रत्येक पंचम ध्वनि (ड., ञ, ण, न, म) नासिक्य ध्वनियाँ हैं । इन्हें पंचमाक्षर भी कहा जाता है ।

व्यंजनों ध्वनियों का वर्गीकरण :

व्यंजन ध्वनियों के वर्गीकरण के मुख्यत: चार आधार हैं :-

1. उच्चारण स्थान(place) के आधार पर

2. प्रयत्न(manner) के आधार पर

3. घोष(voiced) – अघोष(voiceless) के आधार पर

4. प्राणत्व के आधार पर (aspirated-unaspirated)

1. उच्चारण स्थान(place) के आधार पर

इन्हें आठ वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- काकल्य, कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, वर्त्स, दंत्य, दंतोष्ठय, द्योष्ठ । इस वर्ग की व्यंजन ध्वनियाँ या तो अल्पप्राण होंगी या महाप्राण ।

2. प्रयत्न(manner) के आधार पर :

प्रयत्न के आधार पर भी व्यंजनों को आठ वर्गों में विभाजित किया जाता है – स्पर्श, संघर्षी, स्पर्श-संघर्षी, पार्श्विक, लुंठित, उत्क्षिप्त, नासिक्य एवं अर्ध स्वर ।

i. स्पर्श: स्पर्श व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा उच्चारण स्थान को स्पर्श करती है । जिह्वा के स्पर्श के समय वायु मुख विवर में अवरुद्ध हो जाती है और फिर झटके से बाहर निकलती है ।

क  ख  ग  घ च  छ  ज  झ  ट  ठ   ड  ढ  त  थ  द  ध  प  फ  ब  भ  स्पर्शी हैं ।

ii. संघर्षी: जिन ध्वनियों का उच्चारण मुख विवर में घर्षण के साथ होता है, उसे संघर्षी ध्वनि कहते हैं; जैसे- स, श, ष ।

iii. स्पर्श-संघर्षी: जिन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा उच्चारण स्थान को स्पर्श करती है और वायु मुख विवर से घर्षण करते हुए बहार निकलती है उन्हें स्पर्श-संघर्षी व्यंजन कहते हैं; जैसे- च, छ, ज, झ।

iv. पार्श्विक: जिन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा उच्चारण स्थान को छूती है, उस समय वायु जिह्वा के दोनों ओर से बहार निकलती है; जैसे- ल ।

v. लुंठित: जिन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा उच्चारण स्थान पर कम्पन के साथ आघात करती है उन्हें लुंठित कहते हैं; जैसे- र ।

vi. उत्क्षिप्त: जिन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा कुछ ऊपर की ओर उठकर उच्चारण स्थान को थोड़े समय के लिए कम्पित करती है; जैसे- ड़, ढ़ ।

vii. नासिक्य: जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु मुख्विवर में अवरुद्ध होकर मुख और नासिका दोनों से एक साथ निकलती है; जैसे- ड., ञ, ण, न, म ।

viii. अर्धस्वर: जिनका उच्चारण करते समय जिह्वा एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर सरकती है और वायु मुख्विवर को किंचित संकरा बना देती है, उन्हें अर्धस्वर कहते हैं; जैसे- य, व ।

3. घोष(voiced) – अघोष(voiceless) के आधार पर:

i. घोष(voiced): जिन ध्वनियों के उच्चारण से स्वरग्रंथि में कम्पन होता है उन्हें घोष कहते हैं; जैसे- ग, घ, ड., ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, स, श, ष, ह ।

ii. अघोष(voiceless): जिन ध्वनियों के उच्चारण से स्वरग्रंथि में कम्पन न हो, वे अघोष कहलाती हैं; जैसे- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, य, र, ल, व, ड़, ढ़ विसर्ग ह् ।

4. प्राणत्व के आधार पर (aspirated-unaspirated):

प्राणत्व के आधार पर हूँ व्यंजन ध्वनियों को दो भागों में बांटते हैं-

i. अल्पप्राण (unaspirated)

ii. महाप्राण (aspirated)

i. अल्पप्राण: वे व्यंजन होतें हैं जिन्हें बहुत कम वायु-प्रवाह से बोला जाता है जैसे कि '', '', '' और ''

प्रत्येक वर्ग की पहली, तीसरी एवं पांचवी ध्वनि अल्पप्राण होती हैं; जैसे- क, ग, ड., च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, य, र, ल, व ।

ii. महाप्राण: वह व्यंजन होतें हैं जिन्हें मुख से वायु-प्रवाह के साथ बोला जाता है, जैसे की '', '', '' और ''

प्रत्येक वर्ग की दूसरी  एवं चौथी ध्वनि महाप्राण होती हैं; जैसे- ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ ।



व्यंजनों का वैज्ञानिक वर्गीकरण और उनके IPA वर्णाक्षर निम्नलिखित सारणी में दर्शाया गया है ।

स्पर्श (Plosives)

अल्पप्राण
अघोष

महाप्राण
अघोष

अल्पप्राण
घोष

महाप्राण
घोष

नासिक्य

कण्ठ्य

/ kə /
k; English: skip

/ khə /
kh; English: cat

/ gə /
g; English: game

/ ghə /
gh; Aspirated /g/

/ ŋə /
n; English: ring

तालव्य

/ cə / or / tʃə /
ch; English: chat

/ chə / or /tʃhə/
chh; Aspirated /c/

/ ɟə / or / dʒə /
j; English: jam

/ ɟhə / or / dʒɦə /
jh; Aspirated
/ɟ/

/ ɲə /
n; English: finch

मूर्धन्य

/ ʈə /
t; American Eng: hurting

/ ʈhə /
th; Aspirated
/ʈ/

/ ɖə /
d; American Eng: murder

/ ɖhə /
dh; Aspirated
/ɖ/

/ ɳə /
n; American Eng: hunter

दन्त्य

/ t̪ə /
t; Spanish: tomate

/ t̪hə /
th; Aspirated
/t̪/

/ d̪ə /
d; Spanish: donde

/ d̪hə /
dh; Aspirated
/d̪/

/ nə /
n; English: name

ओष्ठ्य

/ pə /
p; English: spin

/ phə /
ph; English: pit

/ bə /
b; English: bone

/ bhə /
bh; Aspirated /b/

/ mə /
m; English: mine

 

स्पर्शरहित (Non-Plosives)

तालव्य

मूर्धन्य

दन्त्य/
वर्त्स्य

कण्ठोष्ठ्य/
काकल्य

अन्तस्थ

/ jə /
y; English: you

/ rə /
r; Scottish Eng: trip

/ lə /
l; English: love

/ ʋə /
v; English: vase

ऊष्म/
संघर्षी

/ ʃə /
sh; English: ship

/ ʂə /
sh; Retroflex
/ʃ/

/ sə /
s; English: same

/ ɦə / or / hə /
h; English behind

 

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि स्वरों का उच्चारण स्वतंत्ररूप से किया जाता है जबकि व्यंजनों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है ।