रविवार, 8 जनवरी 2023

बहुभाषिक समाज में निर्वचन की भूमिका और प्रक्रिया

                                        बहुभाषिक समाज में निर्वचन की भूमिका और प्रक्रिया

भारत सरकार की विधि शब्दावली में निर्वचन (Interpretation) को एक प्रक्रिया बतलाया गया है जिसका उद्देश्य किसी पाठ के अर्थ को जानना है। सामान्यत: जो व्यवस्था एक भाषा को बोलने-समझने वाले व्यक्ति और किसी दूसरी अन्य भाषा को बोलने-समझने वाले व्यक्ति के बीच मौखिक संवाद को संभव बनती है, वही निर्वचन है। इस प्रकार निर्वचन आशु अनुवाद, भाषांतर, अर्थ-निर्णय, व्याख्या, भाष्य-टीका (मौखिक), अनुवचन, वर्तानुवाद, आदि के बहुत समीपस्थ अर्थ रखता है। निर्वचन का मूल उद्देश्य है :

1.        किसी सार्वजानिक समारोह, सम्मलेन, आयोजन, आदि की गतिविधि, व्याख्यान आदि का उसी समय लक्ष्य स्रोता वर्ग के समझने के लिए तुरंत निर्वचित रूप प्रस्तुत करना, एवं

2.        दो व्यक्तियों के बीच होने वाले वार्तालाप को क्रमश: कथन के तुरंत बाद क्रमागत रूप में प्रस्तुत करना।

निर्वचन और अनुवाद में फर्क है क्योंकि निर्वचन मौखिक होता है और अनुवाद लिखित होता है। बहुभाषिक समाज में निर्वचन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। निर्वचन किसी भी बहुभाषी समाज में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं सक्रिय रूप से घटित होता है। भारत में कहा जाता है कि ‘चार कोस पर पानी बदले आठ कोस पर बानी’। यहाँ निर्वचन के बिना कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता है चाहे हो वो यात्रा हो संगोष्ठी हो या कोई अन्य गतिविधि। यहाँ की बहुसंख्यक लोग भी बहु भाषी होते हैं अंत: निर्वचन की अप्रत्यक्ष रूप ज्यादा दीखता है। यहाँ यात्रा-पर्यटन, धार्मिक कार्य, सम्मलेन, चुनावी रैलियाँ, संसद भवन, राजनीतिक गतिविधियाँ आदि सभी के लिए निर्वचन की आवश्यकता पड़ती है।

निर्वचन में दोनों भाषाओं पर समान अधिकार होना चाहिए। साथ ही दोनों भाषाओं के संकेतार्थ एवं व्युत्पत्तिपरक अर्थ का ज्ञान भी अपेक्षित होता है। वह एक भाषा में व्यक्त विचारों को दूसरी भाषा की कोड व्यवस्था का इस्तेमाल करते हुए उस भाषा में अभिव्यक्त करता है। यह अनुवाद से कई गुना कठिन होता है तथा इसके लिए अभ्यास एवं अनुभव अपेक्षित होता है। इसमें निर्वाचक के पास अति अल्प समय होता है जिसमें उसे सारी प्रक्रियाएँ करनी पड़ती हैं। इसके लिए निर्वाचक को अपनी कई क्षमताएँ विकसित एवं बढ़ानी पड़ती हैं जिसके लिए निम्न अभ्यास एवं प्रयास करने पड़ते हैं :

1.        श्रवण क्षमता का विकास

2.        अल्प अवधि के स्मरण का अभ्यास

3.        अंतरण का प्रयास

4.        बोलने का प्रयास

इस प्रकार, निर्वचन के लिए कई गुण अपेक्षित हैं एवं इसके लिए काफी अभ्यास की जरूरत पड़ती है।

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