मध्यकालीन भारत में उभरते धार्मिक आंदोलनों में अनुवाद की भूमिका
हिंदू
धर्म मध्यकालीन भारत में बहुत बड़े परिवर्तन के दौर से गुजरा। मध्यकालीन भारत में बहुत सारे
धार्मिक आंदोलन हुए जिससे धार्मिक साहित्य संभ्रांत लोगों से आम जनता तक पहुँचा। महान देवों और जटिल प्रथाएँ भावुक और
उत्साहपूर्ण भक्ति के माध्यम से एक भगवान वाली प्रथा में बदली। कीर्तन से भरा हुआ
भक्तिपूर्ण धर्म, आत्म समर्पण और ईश्वर के प्रति परमानंद के गीत के रूपों में नई भक्ति ने
लोगों के बीच समानता और भाईचारे के विचारों को बढ़ावा दिया। वास्तव में, आधुनिक भारतीय देशी भाषाओं के साहित्य का विकास इस धार्मिक-सह-सामाजिक
आंदोलन से काफी प्रभावित था। ई अवधि के दौरान ग्रंथों के अनुवाद में काफी तेजी आई
एवं देशी भारतीय भाषाओं में कई गीतों एवं ग्रंथों की रचना हुई। भक्ति आंदोलन के
परिणामस्वरूप, संस्कृत भगवत पुराण पूरे भारत में फैल गया और बाद में लोगों के
रोजमर्रा की भाषाओं में उसका अनुवाद किया गया। मराठी में ज्ञानेश्वर भागवत एक
स्वतंत्र रचना की तरह हो गयी। इस समय कई हिंदू ग्रंथों एवं महाकाव्यों को कई
आधुनिक भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया।
मध्यकालीन भारत में उभरते धार्मिक आंदोलनों के
परिणामस्वरूप भारतीय भाषाओं में अनुवाद की एक बहुत समृद्ध परंपरा शुरू हुई। तमिल
में महाभारत का अनुवाद 10वीं शताब्दी, तेलुगु में 11वीं शताब्दी में अनुवाद हुआ। तेलुगु में
रामायण का अनुवाद 11वीं शताब्दी और तमिल में 12वीं शताब्दी में की गई। भक्ति
आंदोलन के परिणामस्वरूप भागवत पुराण का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया। यह
तेलुगु और बांग्ला में 15वीं शताब्दी, ब्रज, मराठी और फारसी में 16वीं शताब्दी,
गुजराती और मलयालम में 17वीं और हिंदी में 19वीं शताब्दी में अनुवाद हुआ।
इन अनुवादों के चलते धार्मिक ग्रंथ एवं उनके संदेश आम जनमानस तक पहुँचा। संतों एवं कवियों ने अनुवाद के द्वारा न केवल भारतीय भाषाओं को समृद्ध किया बल्कि धर्म का भी प्रचार किया। मध्यकाल में तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस भी अनुवाद ही था जिसने भारतीय मानस को पुन: संचरित किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें