रविवार, 8 जनवरी 2023

उपाश्रित साहित्य के अनुवाद के संबंध में अनुवाद में प्रतिरोध की राजनीति

                              उपाश्रित साहित्य के अनुवाद के संबंध में अनुवाद में प्रतिरोध की राजनीति 


1970 के दशक तक आते-आते ब्रिटेन में बसे युवा इतिहासकारों के एक समूह ने दक्षिण एशिया , उसके समाज और इतिहास लेखन पर विमर्श की एक श्रृंखला प्रारंभ की। इस समूह का नेतृत्व ‘सबअल्टर्न स्टडीज’ के संस्थापक रणजीत गुहा ने किया। इस समूह में इतिहास एवं विभिन्न ज्ञानानुशासनों के विद्वान थे जैसे ज्ञान प्रकाश, दीपेश चक्रवर्ती, सुमित सरकार, डेविड अर्नोल्ड, डेविड हार्डीमान, गौतम भद्र, पार्थ चटर्जी, ज्ञानेंद्र पांडेय, सुमित सरकार, शाहिद अमीन आदि। यह समूह ससेक्स विश्वविद्यालय से शुरू हुआ और इसमें मुख्यतः रणजीत गुहा के शिष्य ही थे। सबअल्टर्न का ही हिंदी अनुवाद उपाश्रित है।

उपाश्रित साहित्य भारतीय एवं गैर भारतीय लेखकों के द्वारा भारत की उपेक्षित आबादी के बारे में लिखा गया साहित्य है। उपाश्रित समूह में दलित, आदिवासी, और हाशिये पर पड़े अन्य लोग आते हैं। इसे हाशिये का साहित्य या उपेक्षितों का साहित्य भी कहते हैं। दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य और अल्पसंख्यक समुदाय अध्ययन जैसे क्षेत्र उपाश्रित अध्ययन से ही निकले हैं। उपाश्रित साहित्य को दो भागों में बांटा जा सकता है : 1. एक उन लोगों का साहित्य जो स्वयं उपाश्रित समुदाय से आते हैं, और  2. बाह्य लोगों द्वारा लिखा गया उपाश्रितों की स्थिति पर साहित्य। उपाश्रित समुदाय से आने वाले लोगों का साहित्य उनका खुद का जिया हुआ साहित्य होता है और दुसरे वर्ग जो उपाश्रित समुदाय से नहीं आते, उनका साहित्य देखा हुआ साहित्य होता है।

उपाश्रित साहित्य का अनुवाद बहुत महत्वपूर्ण है तथा इसी से यह अध्ययन एक भाषा की परिधि से बाहर अन्य लोगों तक पहुँच पाया है। महाश्वेता देवी का साहित्य आज विश्व में चर्चित है तो उसके पीछे गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक का बहुत योगदान है। अपश्रित साहित्य के अनुवाद के संबंध में अनुवाद में प्रतिरोध की राजनीति भी होती है। उपश्रितों को बोलने ही नहीं दिया जाता क्योंकि यह आवाज मुख्य धारा की शक्ति को हिला सकती है। उनके पास मुख्यधारा द्वारा उपभोग की जाने वाली प्रसन्नता एवं सुख-साधन का कोई अधिकार नहीं है। स्पीवाक का 1988 में प्रकाशित निबंध “कैन दि सबअल्टर्न स्पीक ?” ने कई प्रश्न उठाये हैं। ये प्रश्न आज उपाश्रितों के बोलने के अधिकारों और स्वतंत्रता के संबंध में संस्थापक प्रश्न माने जाते हैं। उपाश्रित साहित्य जितने भी अनूदित हुए हैं उनमें मुख्य धारा या शक्तिशाली वर्ग के प्रति प्रतिरोध का भाव अवश्य दिखता है।

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