साहित्येतर विषयों की अनुवाद समीक्षा
विश्व के संपूर्ण साहित्य में सर्जनात्मक
साहित्य अर्थात उपन्यास, कहानी, कविता एवं नाटक आदि की मात्रा अत्यल्प है।
साहित्यिक पाठ कुल संपदा का केवल 10% ही है। ज्यादातर पाठ या कार्य भाषा के
साहित्येतर विषयों में संपादित होते हैं अर्थात साहित्येतर विषयों का अनुपात कुल
साहित्य का 90% है। सारे व्यापार, विज्ञान, सामाजिक विज्ञानं की भाषा साहित्येतर विषय के अंतर्गत ही अति है। आज हम
खुद को केवल साहित्यिक अनुवाद तक सीमित रखेंगे तो भाषिक,
सामाजिक एवं प्रकार्यगत उन स्थितियों से अलग हो जाएँगे जिनमें भाषा अपनी विभिन्न
भूमिकाओं के साथ अलग-अलग रंग और तेवर में हमारे बीच स्थित है।
आधुनिक समाज उपभोक्ता सापेक्ष है इसलिए आज
अनुवाद भावपरक (emotive text) से तथ्यपरक (factual or informative text) की ओर
उन्मुख हुआ है। साहित्येतर विषय तथ्यात्मकता की बात पर ज्यादा ध्यान देते हैं। फिर
भी इन कथ्यों एवं तथ्यों को लक्ष्य भाषा में संप्रेषित करने का कार्य उतना आसान
नहीं है। साहित्येतर अनुवाद समीक्षा की दो दिशाएँ होती हैं :
1.
पाठपरक
2.
प्रक्रियापरक
इन्हीं दो दिशाओं को ध्यान में रखकर साहित्येतर
अनुवाद की समीक्षा की जाती है। इसमें समीक्षक देखता है कि पारिभाषिक शब्दावली का
प्रयोग हुआ है या नहीं। कई बार एक बहस में तथ्यात्मक चीजों को प्रदर्शित करने का
ढंग दूसरी या लक्ष्य भाषा से भिन्न होता है; जैसे फ्रेंच भाषा में आंकड़ों में अल्प
विराम (,) दशमलव का प्रदर्शित करता है। ऐसी चीजों का भी ध्यान रखना होता है।
दिलीप सिंह अनुवाद समीक्षा के अंतर्गत
साहित्येतर पाठ की अनुवाद समीक्षा करने के लिए कुछ सोपान निर्धारित किये हैं। ये
सोपान निम्लिखित हैं :
1.
पारिभाषिक शब्दावली की अनुवाद समीक्षा
2.
अभिव्यक्ति क्षमता की दृष्टि से अनुवाद समीक्षा
3.
अंग्रेजी प्रभाव की अनुवाद समीक्षा
4.
साहित्येतर अनुवाद की दो दिशाएँ (सरकारी एवं गैर सरकारी) एवं अनुवाद
समीक्षा
5.
साहित्येतर अनुवाद की पाठपरक समीक्षा
6.
साहित्येतर अनुवाद की प्रकियापरक समीक्षा
7.
संप्रेषण और अनुवाद
इस
प्रकार, दिलीप सिंह द्वारा सुझाएँ गए सोपानों के आधार पर हम सहित्य या साहित्येतर
अनुवाद की समीक्षा करते हैं।
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