मंगलवार, 27 जून 2023

मशीनी अनुवाद की आवश्यकता

         वैसे तो देखा जाए तो अनुवाद की परंपरा बहुत पुरानी है। शुरूआती दौर में अनुवाद कार्य व्यक्तिगत रुचि के लिए किया जाता था, परंतु बाद में धार्मिक ग्रंथो का अनुवाद बहुत तेजी से किया जाने लगा। चूँकि ज्ञान अर्जन के संबंध में मनुष्य की अपनी सीमाएँ हैं क्योंकि हर समाज की अपनी भाषा एवं संस्कृति होती है। लेकिन, समाज के विकास, सांस्कृतिक,  व्यापरिक एवं राजनैतिक उद्देश्यों हेतु अनुवाद आवश्यक हो जाता है। आज के इस आधुनिक दौर में अनुवाद को विज्ञान के रूप में देखा जाने लगा है।

            प्रत्येक देश अपने विकास के लिए ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में हुए शोध, सामाजिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक एवं प्रशासकीय ज्ञान को अपनी भाषा में चाहता है जिसके लिए अन्य भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान को अपनी भाषा में अनूदित करता है। आज विश्व के सभी देश एक-दूसरे से पहले से कहीं अधिक करीब आ चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रों के मध्य आपसी व्यापार एवं संवाद में पूर्व से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट एवं संवाद के अन्य नवाचारी साधनों से आपसी संवाद में तीव्रता आई है। पहले से कहीं अधिक एक-दूसरे पर निर्भरता हो गई है; ऊर्जा के संसाधन किसी देश के पास है तो तकनीक में कोई अन्य देश विकसित है, कृषि में कोई और राष्ट्र आगे है तो कुशल मानव संसाधन की दृष्टि से कोई भिन्न देश समृद्ध है। इस प्रकार, हर राष्ट्र का अपना भौगोलिक-ऐतिहासिक, रणनीतिक, व्यापारिक एवं सामरिक महत्व है। इस स्थिति में विश्व के सभी देशों के मध्य आपसी संवाद का होना पहले से कहीं ज्यादा आवश्यक है। इसी कारण से अनुवाद की माँग तेजी से बढ़ रही है। हर राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की सूचनाओं एवं ज्ञान सामग्री को अपनी भाषा में जानना-समझना चाहता है। मानव अनुवाद एक धीमी एवं अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है, अनुवाद की इस बढ़ती माँग को मानव अनुवाद पूरा करने में सक्षम नहीं है। इसलिए आज के इस तकनीकी दौर में लोग संगणक की ओर उन्मुख हुए हैं। अनुवाद कार्य मशीन द्वारा किए जाने लगा है क्योंकि मशीन द्वारा सैकड़ों पृष्ठ का अनुवाद कुछ ही समय में किया जा सकता है; जबकि मानव अनुवाद द्वारा यह संभव नहीं है। हालाँकि शुरूआती दौर में मशीनी अनुवाद का विकास विशेष उद्देश्य के लिए किया गया था, किंतु अब मशीनी अनुवाद का प्रयोग हर क्षेत्र में किया जाने लगा है। कृत्रिम मेधा (AI) के क्षेत्र में क्रांति आने के बाद मशीनी अनुवाद की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है और मशीनी अनुवाद को हर क्षेत्र जैसे – शिक्षा, व्यापार, राजनीति, राजनय आदि क्षेत्रों से जोड़े जाने लगा है। 

मशीनी अनुवाद क्या है?

 किसी एक प्राकृतिक भाषा (जैसे – हिंदी ) के पाठ को किसी दूसरी प्राकृतिक भाषा (जैसे – मराठी)  में  मशीन द्वारा स्वचालित रूप से अनूदित करने की प्रक्रिया मशीनी अनुवाद कहलाती है। यहाँ मशीन का तात्पर्य संगणक एवं उसके समतुल्य इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों से है। मशीनी अनुवाद प्रक्रिया में जिस भाषा के पाठ को अनूदित किया जाता है उसे स्रोत भाषा तथा जिस भाषा में अनूदित किया जाता है उसे लक्ष्य भाषा कहा जाता है।

जैसे –    Ram eats a mango. (स्रोत भाषा)

            राम आम खाता है (लक्ष्य भाषा)

            उपर्युक्त उदाहरण में, अंग्रेजी भाषा में लिखा गया वाक्य स्रोत भाषा का है, इसलिए यहाँ स्रोत भाषा अंग्रेजी है एवं स्रोत भाषा के वाक्य को हिंदी भाषा में अनूदित किया गया है, इसलिए हिंदी यहाँ लक्ष्य भाषा है।

            मशीनी अनुवाद को ‘यांत्रिक अनुवाद’ या ‘स्वचालित अनुवाद’ के नाम से भी जाना जाता है

            ऐसा माना जाता है कि मशीनी अनुवाद में भी नाइडा (1964) द्वारा बताई गयी अनुवाद की तीनों प्रक्रियाएँ – विश्लेषण, अंतरण, पुनर्गठन प्रक्रियाएँ मशीनी अनुवाद में भी संपादित होती हैं जिसे संगणक प्रोग्राम द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में सर्वप्रथम  स्रोत भाषा के पाठ को निविष्ट (input) के रूप में प्रविष्ट किया जाता है और पहले से तैयार की गयी विश्लेषण प्रक्रिया द्वारा पाठ को विश्लेषित किया जाता है ततपश्चात, अंतरण प्रक्रिया द्वारा स्रोत भाषा के पाठ के पदों, पदबंधों एवं वाक्यों को लक्ष्य भाषा के पाठ के पदों, पदबंधों एवं वाक्यों में स्थानांतरित किया जाता है इसके बाद पुनर्गठन प्रक्रिया द्वारा लक्ष्य पाठ को उत्तपादित किया जाता है।



इस प्रकार, मशीनी अनुवाद या यांत्रिक अनुवाद ऐसा अनुवाद है जो मानव नहीं बल्कि मशीन अर्थात कम्प्युटर, मोबाइल आदि यंत्रों द्वारा संपादित किया जाता है। यह मानव अनुवाद की तुलना में समय, श्रम एवं संसाधन तीनों को बचाने वाला होता है। एक ओर जहाँ मानव अनुवाद श्रमसाध्य होता है, मशीनी अनुवाद के लिए हमें उतनी मेहनत की अवश्यकता नहीं होती है। मानव द्वारा किए जाने वाले अनुवाद में मशीन अनुवाद की तुलना में समय भी बहुत कम लगता है; या यूँ कहें कि कुछ भी नहीं लगता है। मानव अनुवाद के लिए हमें शब्दकोश, विश्वकोश, विषय विशेषज्ञ आदि संसाधनों कि अवश्यकता पड़ती है, किन्तु मशीन अनुवाद में इनकी अवश्यकता कम है या फिर पश्च-सम्पादन के समय पर कुछ जरूरत पड़ती है। एक ओर जहाँ मशीनी अनुवाद के कई लाभ हैं; वहीं दूसरी तरफ मशीनी अनुवाद कि कुछ चुनौतियाँ भी हैं। गुणवत्ता की दृष्टि से मानव अनुवाद मशीनी अनुवाद से प्राय: बेहतर होता है। मशीनी अनुवाद की गुणवत्ता सुधारने के लिए उनमें पश्च-संपादन की अवश्यकता पड़ती है। मानव यदि मशीन पर पूर्णत: निर्भर न होकर अनुवाद कार्य के लिए केवल सहायता ले तो मशीनी अनुवाद अत्यंत उपयोगी है। इससे हमें अनुवाद के दौरान लगने वाले समय, श्रम और संसाधन तीनों की बचत होती है। 

सोमवार, 26 जून 2023

दुभाषिया कर्म का महत्व

 दुभाषिया कर्म विश्व के सबसे चुनौती पूर्ण कार्यों में से एक है। विश्व के सभी देश एक-दूसरे से पहले से कहीं अधिक करीब आ चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रों के मध्य आपसी व्यापार एवं संवाद में पूर्व से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट एवं संवाद के अन्य नवाचारी साधनों से आपसी संवाद में तीव्रता आई है। पहले से कहीं अधिक एक-दूसरे पर निर्भरता हो गई है; ऊर्जा के संसाधन किसी देश के पास है तो तकनीक में कोई अन्य देश विकसित है, कृषि में कोई और राष्ट्र आगे है तो कुशल मानव संसाधन में कोई भिन्न देश समृद्ध है। इस प्रकार, हर राष्ट्र का अपना भौगोलिक-ऐतिहासिक अथवा रणनीतिक, व्यापारिक एवं सामरिक महत्व है। इस स्थिति में विश्व के सभी देशों के मध्य आपसी संवाद का होना पहले से कहीं ज्यादा आवश्यक है। विभिन्न देशों की अपनी भाषाएँ हैं अतः उनके मध्य परस्पर संवाद हेतु ‘भाषांतरण’ या ‘दुभाषिया कर्म’ आवश्यक है। यथा, भारत जैसे राष्ट्र को ऊर्जा- पेट्रोल, डीजल, गैस आदि- के लिए अन्य देशों से आयात करना पड़ता है, इस हेतु उन देशों से संवाद करने के लिए हमें दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है। राजनयिक संबंधों को भी बनाए रखने और बेहतरी के लिए दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है। यह संभव नहीं है कि एक राष्ट्र का राष्ट्राध्यक्ष – प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति – अन्य देशों की सभी भाषाओं पर महारत हासिल कर ले। राष्ट्राध्यक्षों एवं राजनयिकों को दूसरे देश के समकक्ष से बातचीत हेतु दुभाषिए की जरूरत अवश्य पड़ती है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों अथवा मंचों पर भी आपसी संवाद हेतु दुभाषिए अनिवार्य हैं।

            हम जानते हैं कि भारत एक बहुभाषिक राष्ट्र है जहाँ लगभग 2000 अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं और संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ कार्यालयी भाषा के रूप में दर्ज हैं। हिंदी और अंग्रेजी संघ की राजकीय भाषा के रूप में कार्यरत हैं तो विभिन्न राज्यों की अपनी-अपनी भाषाएँ हैं। यहाँ तक कि कई राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ है। संघ एवं राज्यों के मध्य आपसी संवाद, एक राज्य का दूसरे राज्य से संवाद हेतु भाषांतरण की आवश्यकता है। यदि उत्तर भारत का कोई राजनेता दक्षिण भारत के किसी राज्य में भाषण अथवा लोगों के बीच बोलने के लिए जाता है तो उसे दुभाषिए की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। चुनावी रैली या सभा हो या को कार्यालयी बैठक यदि यह दो भिन्न भाषा-भाषी लोगों के मध्य है तो वहाँ भाषांतरण की अनिवार्यता निःसंदेह है।  अन्य देशों की अपेक्षा भारत में दुभाषिया कर्म की आवश्यकता अधिक है क्योंकि अन्य देशों में राजकीय भाषा प्रायः एक ही होती है और उनका निर्माण भी भाषा के आधार पर हुआ है।

      इस प्रकार विश्व में और भारत में दुभाषिया कर्म महत्वपूर्ण है। जहाँ एक ओर अंतरराष्ट्रीय मंचों अथवा संगठनों में यथा – संयुक्त राष्ट्र संघ, यूरोपीय संघ आदि में दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है; वहीं दूसरी तरफ, भारत की संसद में भी भारतीय भाषाओं के मध्य संवाद हेतु दुभाषिए की जरूरत होती है। 

आशु अनुवाद एवं निर्वचन

             आशु अनुवाद और निर्वचन दोनों के लिए अंग्रेजी भाषा में ‘interpretation’ शब्द का ही प्रयोग होता है। ‘Interpretation’ शब्द के लिए हिंदी भाषा में कई अन्य शब्द भी प्रचलित हैं, जैसे- व्याख्या, भावार्थ, मौखिक अनुवाद इत्यादि। किंतु, किन्हीं दो भाषाओं के मध्य मौखिक अनुवाद के लिए ‘भाषांतरण’ अथवा ‘आशु अनुवाद शब्द का ही प्रयोग होता है।  सामान्य अर्थों में, Interpretation’ हेतु ‘निर्वचन’ शब्द ही अधिक चलन में है।

आशु अनुवाद शुद्ध रूप से एक मौखिक प्रक्रिया है जबकि निर्वचन मौखिक या लिखित दोनों माध्यम से हो सकता है। आशु अनुवाद में दुभाषिए के पास व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं होती है, किंतु निर्वचन में निर्वचनकार पाठ या उक्ति का अपने विवेक एवं शास्त्रों के आधार पर व्याख्या कर सकता है। आशु अनुवाद की प्रक्रिया अनिवार्यतः एक भाषा से दूसरी भाषा के मध्य होती है, लेकिन निर्वचन में यह आवश्यक नहीं है। निर्वचन ‘अन्तरभाषिक’ और ‘अंत:भाषिक’ दोनों प्रकार का हो सकता है।

निर्वचन या व्याख्या संदर्भ या क्षेत्र के अनुसार कई प्रकार का हो सकता है; जैसे भाषिक निर्वचन, साहित्यिक निर्वचन, सांस्कृतिक निर्वचन, विधिक निर्वचन या क़ानूनी व्याख्या, कलात्मक व्याख्या, स्वप्न व्याख्या इत्यादि। उदाहरण के लिए, विधि के क्षेत्र में निर्वचन से तात्पर्य न्यायालयों द्वारा संविधियों की भाषा, शब्दों एवं अभिव्यक्तियों के अर्थ- निर्धारण की प्रक्रिया है। निर्वचन के माध्यम से न्यायालयों द्वारा संविधि में प्रयुक्त भाषा या शब्दों का अर्थान्वयन या अर्थ-निर्धारण किया जाता है। निर्वचन में दर्शनशास्त्र का भी समावेश हो जाता है। किंतु, दो भाषाओं के मध्य मौखिक रूप से संप्रेषण हेतु ‘भाषांतरण शब्द का प्रयोग ही ज्यादा उचित प्रतीत होता है। 

आशु अनुवाद एवं अनुवाद

 ‘आशु अनुवाद विशिष्ट अनुवाद है जो मौखिक रूप से संपन्न होता है । ‘आशु अनुवाद का प्रयोग मौखिक अनुवाद की तीव्र गति के आधार पर किया गया है क्योंकि आशु का अर्थ हिंदी में तीव्र, तेज गति होता है। हम सभी जानते हैं कि सामान्य अनुवाद करने  के लिए हमारे पास पर्याप्त समय होता और संसाधन भी। संसाधन से हमारा यहाँ तात्पर्य शब्दकोश, कंप्यूटर, मोबाइल, सॉफ्टवेयर एवं अन्य संसाधन आदि से है। किंतु, ‘भाषांतरण के लिए हमारे पास सोचने के लिए और कोश या अन्य संसाधनों के उपयोग करने के लिए समय नहीं होता है। अनुवाद के दौरान हमारे पास स्रोत पाठ को जानने-समझने के लिए अवसर होता है, हम इसके लिए क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों से विचार-विमर्श कर सकते हैं किंतु आशु अनुवाद में हमारे पास इतना समय नहीं होता है। ‘आशु अनुवादएक मौखिक प्रक्रिया है जबकि अनुवाद शुद्ध रूप से लिखित/मुद्रित पाठों का होता है। आशु अनुवाद या भाषांतरण के दौरान दुभाषिए को स्रोत भाषा के वक्ता के लहजे, तान-अनुतान, बोलने की शैली और उच्चारण को लक्ष्य भाषा के श्रोताओं तक प्रदर्शित करना होता है। अनुवाद में भी अनुवाद को स्रोत भाषा के पाठ की प्रकृति एवं शैली के समतुल्य ही अनुवाद करना होता है, लेकिन यहाँ दुभाषिए को एक अभिनेता का अतिरिक्त दायित्व भी निर्वहन करना होता है। उसके अन्दर एक कुशल वक्ता के साथ-साथ एक अच्छे अभिनेता के गुण भी होने चाहिए। यह अनिवार्यता अनुवाद पर लागू नहीं होती है। ‘आशु अनुवाद के दौरान पुनरीक्षण की सुविधा और अवसर नहीं होता है जबकि पुनरीक्षण अनुवाद का एक अपरिहार्य अंग है। दुभाषिए को क्षेत्र विशेष की आधारभूत शब्दावलियाँ अच्छी तरह से कंठस्थ होनी चाहिए लेकिन अनुवाद के लिए यह आवश्यक नहीं, वह कोश का प्रयोग कर सकता है। दुभाषिए को क्षेत्र विशेष के प्रोटोकॉल शिष्टाचार एवं व्यावसायिक कोड-नैतिकता आदि से संबंधित ज्ञान भी होना चाहिए क्योंकि उसे संसदीय कार्यवाही में, राजनीतिक एवं राजनयिक परिवेश में, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, विदेशी राजनयिक अथवा प्रतिनिधियों के मध्य, अंतरराष्ट्रीय संवादों-संगोष्ठियों में ‘भाषांतरण अथवा ‘आशु अनुवाद’ का कार्य करना पड़ता है; पर अनुवादक के लिए यह आवश्यक नहीं है। दुभाषिए को एक ही भाषा के विभिन्न डायलेक्ट, इडियोलेक्ट आदि अथवा वक्ता पर क्षेत्रीय/व्यक्तिगत प्रभाव को समझने की क्षमता होनी चाहिए अतः दुभाषिए को स्रोत भाषा में विविध वक्ताओं को सुनने का अभ्यास होना चाहिए; किंतु ऐसी चुनौती अनुवाद में प्राय: कम ही देखने को मिलती है। दुभाषिए को लक्ष्य भाषा में विभिन्न तान-अनुतान एवं शैलियों में बोलने का निरंतर अभ्यास करना चाहिए, उसे विश्व के स्रोत भाषा के प्रमुख नेताओं के बोलने के लहजे की लक्ष्य भाषा में मिमिक्री अथवा नक़ल/अनुकरण करने की भी कोशिश करनी चाहिए। अनुवाद में भी अभ्यास का महत्व है लेकिन  ऐसी आवश्यकता अनुवाद में नहीं होती है। भाषांतरण के लिए ‘नोट करना (note taking) या महत्वपूर्ण तथ्यों को लिखना बहुत ही आवश्यक है तथा इसके लिए भाषांतरण के प्रशिक्षण के दौरान अभ्यास कराया जाता है, पर अनुवाद के लिए यह अपरिहार्य नहीं है।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि भाषांतरण अथवा आशु अनुवाद एवं अनुवाद दोनों ही एक भाषा से दूसरी भाषा में संदेश को संप्रेषित करने की प्रक्रिया हैं; किंतु इनका माध्यम अलग-अलग है। पहला मौखिक है तो दूसरा लिखित अथवा मुद्रित। किंतु, इसके अतिरिक्त भी आशु अनुवाद की कई विशेष चुनौतियाँ हैं जो अनुवाद के दौरान प्रायः नहीं होती हैं। यदि भाषांतरण अथवा आशु अनुवाद को विश्व का सबसे कठिन कार्य कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं जान पड़ती। 

दुभाषिया कर्म से परिचय

 दुभाषिया कर्म से तात्पर्य ‘भाषांतरण’ है। दुभाषिया का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जो कम-से-कम दो भाषाएँ जनता हो। दुभाषिया एक भाषा के संदेश को दूसरी भाषा में मौखिक रूप से संप्रेषित करने में कुशल होता है। वैसे तो दुभाषिए के लिए दोनों भाषाओं – स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा- का ज्ञान एवं संप्रेषण क्षमता बराबर होनी चाहिए ताकि वह उन दोनों भाषाओं में परस्पर भाषांतरण का कार्य कर सके। किंतु, हम जानते हैं कि व्यक्ति किसी भी संदेश को सबसे बेहतर तरीके से अपनी मातृभाषा या प्रथम भाषा में व्यक्त कर सकता है, इसलिए दुभाषिए के लिए अधिमानित या मुख्य (preferred) लक्ष्य भाषा हमेशा उसकी मातृ भाषा या प्रथम भाषा होती है। स्रोत भाषा पर यदि थोडा कम भी अधिकार हो तो शायद बहुत कठिन नहीं होगा लेकिन लक्ष्य भाषा पर उसका पूरा अधिकार होना चाहिए। स्रोत भाषा वह भाषा होती है जिस भाषा से भाषांतरण अथवा मौखिक अनुवाद का कार्य किया जाता है  एवं लक्ष्य भाषा से हमारा तात्पर्य उस भाषा से है जिस भाषा में हम भाषांतरण का कार्य करते हैं।

दृष्टांत के लिए, यदि ‘I am going to market’ का भाषांतरण ‘मैं बाज़ार जा रहा/रही हूँ।’ हो तो यहाँ स्रोत भाषा अंग्रेजी है और जिस भाषा में भाषांतरण का कार्य संपन्न हो रहा है अर्थात लक्ष्य भाषा हिंदी है।

चूँकि भाषांतरण का कार्य दुभाषिए द्वारा संपन्न होता है इसलिए ‘भाषांतरण’ को ‘दुभाषिया कर्म’ भी कहते हैं।  अंग्रेजी भाषा में भाषांतरण के लिए ‘interpretation’ शब्द का प्रयोग होता है। ‘interpretation’ शब्द के लिए हिंदी भाषा में कई शब्द प्रचलित हैं, यथा- निर्वचन, व्याख्या, टीका, भावार्थ, भाष्य, आशु अनुवाद, मौखिक अनुवाद इत्यादि। किंतु, किन्हीं दो भाषाओं के मध्य मौखिक अनुवाद के लिए ‘भाषांतरण’ एवं ‘आशु अनुवाद शब्द ही प्रचलित हैं।