रविवार, 8 जनवरी 2023

भक्ति साहित्य का अस्मिता-विमर्शमूलक अनुकूलन

                                                         भक्ति साहित्य का अस्मिता-विमर्शमूलक अनुकूलन


भक्ति साहित्य ने स्वदेशी भाषा में रचनाओं को बढ़ावा दिया। भक्ति साहित्य के दौरान सभी जगह संतो एवं कवियों ने लोगों की आम भाषा में साहित्य की रचना की एवं आमजन की भावनाओं एवं उनकी अस्मिता का खयाल रखा। भक्ति साहित्य के दौरान संतों, कवियों ने संस्कृत के भागवत, रामायण, महाभारत एवं पुराणों को लोगों की आम भाषा में अनूदित किया। लोगों की अस्मिता का मान रखा एवं उनके लोक संस्कृति एवं सभ्यता के अनुसार महान काव्यों का अनुवाद-अनुसृजन किया। इससे इन भाषाओं का मान-सम्मान बढ़ा और उनमें साहित्य संपदा भी बढ़ी। इस तरह से देखा जय तो भक्ति साहित्य अस्मिता-विमर्शमूलक अनुकूलन था। संस्कृत ही केवल समृद्ध भाषा न रही तथा धर्म अभिजात्य वर्ग से सामान्य वर्ग तक इसी भक्ति साहित्य के बदौलत पहुँच पाया।

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