गुरुवार, 31 मार्च 2022

अनुवाद की परिभाषाएँ

 

अनुवाद की परिभाषाएँ

(Definitions of Translation)

अनुवाद एक प्राचीन कर्म है और इसका इतिहास लगभग भाषा के इतिहास जितना ही पुराना है। परंतु, अपवाद स्वरूप कुछ पुस्तकों को छोड़ दिया जाए तो अनुवाद संबंधी सिद्धांतों पर स्वतंत्र ग्रंथों के लेखन का कार्य वस्तुतः बीसवीं शताब्दी में आरंभ हुआ। बीसवीं सदी में ही साहित्यिक और भाषा वैज्ञानिक पत्रिकाओं में अनुवाद संबंधी लेखों का प्रकाशन शुरू हुआ। इन्हीं भाषा वैज्ञानिक एवं साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं ने अनुवाद की कई परिभाषाओं को जन्म दिया। कुछ परिभाषाओं को मान्यताएँ मिलीं तो कुछ परिभाषाओं पर प्रश्न भी उठाए गए। अनुवाद की परिभाषा का मूल संदेश सदा समान रहा है, लेकिन उनमें कुछ बारीक-सूक्ष्म अंतर भी देखने को मिलता है। परिभाषाओं पर विचार किया जाए तो अनुवाद की परिभाषा भाषा वैज्ञानिकों के साथ-साथ, साहित्यकारों, मानव विज्ञान के विद्वानों आदि ने भी दी है। पश्चिम के विद्वानों के साथ-साथ भारतीय विद्वानों ने भी अपने अनुसार ‘अनुवाद को परिभाषित-व्याख्यायित करने का प्रयास किया है। ‘अनुवाद’ की कुछ परिभाषाएँ आगे दी गयी हैं, जिससे अनुवाद को समझने में सहायता मिल सकती है :

E. A. Nida: “Translation consists in producing in the receptor language the close natural equivalent to the massage of the source language first in meaning and secondly in style.”

(अनुवाद स्रोत भाषा के संदेश को लक्ष्य भाषा में संप्रेषित करता है। लक्ष्य भाषा का संदेश मूल भाषा या स्रोत भाषा के संदेश का निकटम, स्वाभाविक तथा समतुल्य संदेश होता है। यह समतुल्यता पहले अर्थ और फिर शैली के स्तर पर होती है।”अनुवाद : श्रीनिकेत कुमार मिश्र)

J. C. Catford:  Translation is an operation performed on languages: a process of substituting a text in one language for a text in another.

(अनुवाद ऐसी शल्य-क्रिया है जो भाषाओं पर की जाती है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक भाषा के पाठ को दूसरी भाषा के पाठ से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। – अनुवाद : श्रीनिकेत कुमार मिश्र)

“The replacement of textual material in one language (SL) by equivalent textual material in another language (TL).”

(अनुवाद एक भाषा (स्रोत भाषा) के पाठ/संदेश को दूसरी भाषा (लक्ष्य भाषा) के समानार्थक पाठ/संदेश में प्रतिस्थापन है। – अनुवाद  : श्रीनिकेत कुमार मिश्र)

Dr. Samuel Johnson: “To translate is to change into another language retaining the sense.”

(अर्थ को अक्षुण्ण रखते हुए उसे दूसरी भाषा में अंतरित करना ही अनुवाद है।– अनुवाद : श्रीनिकेत कुमार मिश्र)

MATHEW ARNOLD: “A translation should affect as in the same way as the original may be supposed to have affected its first hearers.” (प्रभावसमता)

(“अनुवाद का प्रभाव लक्ष्य भाषा के पाठक पर वैसा ही होना चाहिए जिस प्रकार मूलपाठ का प्रभाव उसके पाठक पर पड़ा हो।” - अनुवाद : श्रीनिकेत कुमार मिश्र)

ए. एच. स्मिथ : - अनुवाद का तात्पर्य अर्थ को यथासंभव बनाए रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण से है।

 रोमन याकोब्सन :- समस्त प्रकार का अनुवाद कार्य आलोचनात्मक व्याख्या है।

न्यूमार्क : - अनुवाद एक शिल्प है जिसमें एक भाषा में लिखित संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा के उसी संदेश को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जाता है।

हैलिडे :  अनुवाद एक संबंध है जो दो या दो से अधिक पाठों के बीच होता है; ये पाठ समान स्थिति में समान प्रकार्य संपादित करते हैं (दोनों पाठों का संदर्भ समान होता है और उनसे व्यंजित होनेवाला संदेश भी समान है।)

जी.गोपीनाथन : - अनुवाद वह द्वंद्वात्मक प्रक्रिया है जिसमें स्रोत पाठ की अर्थ संरचना (आत्मा) का लक्ष्य पाठ की शैलीगत संरचना (शरीर) द्वारा प्रतिस्थापन होता है।

डॉ. सुरेश कुमार : एक भाषा के विशिष्ट भाषाभेद के विशिष्ट पाठ को दूसरी भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत करना अनुवाद है जिसमें वह मूल के भाषिक अर्थ, प्रयोग के वैशिष्ट्य से निष्पन्न अर्थ, प्रयुक्ति और शिल्प की विशिष्टता,  विषयवस्तु, तथा संबद्ध सांस्कृतिक वैशिष्ट्य को यथासंभव संरक्षित रखते हुए दूसरी भाषा के पाठक को स्वाभाविक रूप से ग्राह्य प्रतीत हो।

डॉ. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव : - एक भाषा (स्रोत भाषा) की पाठ सामग्री में अंतर्निहित तथ्य का समतुल्यता के सिद्धांत के आधार पर दूसरी भाषा (लक्ष्य) में संगठनात्मक रूपांतरण अथवा सर्जनात्मक पुनर्गठन को ही अनुवाद कहा जाता है।

डॉ. भोलानाथ तिवारी : भाषा ध्वन्यात्मक प्रतीकों की व्यवस्था है और अनुवाद उन्हीं प्रतीकों का प्रतिस्थापन, अर्थात एक भाषा के स्थान पर दूसरी भाषा के निकटतम ( कथनत: और कथ्यत:) समतुल्य और सहज प्रतीकों का प्रयोग। इस प्रकार अनुवाद निकटतम, समतुल्य और सहज प्रतिप्रतीकनया ‘यथासाध्य समानक प्रतिप्रतीकन है।

संक्षेप में – “अनुवाद कथनत: और कथ्यत: निकटतम सहज प्रतिप्रतीकन है”

इस प्रकार, अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में किसी भी संदेश को संप्रेषित करने का माध्यम है। अनुवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक भाषा में विद्यमान संदेश/ज्ञान को दूसरी भाषा के लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। अनुवाद एक ऐसी प्रक्रिया, कला है जिसके माध्यम से एक भाषा (स्रोत भाषा) में कही गई बात को दूसरी भाषा (लक्ष्य भाषा) में संप्रेषित किया जा सकता है। 

अनुवाद के विभिन्न चरण

                                                 अनुवाद के विभिन्न चरण (विभिन्न अनुवाद प्रक्रिया)

                                                          (Different Stages of Translating)

अनुवाद प्रक्रिया अनुवाद को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अनुवाद प्रक्रिया के कई विभिन्न प्रारूप हैं; लेकिन इनमें से नाइडा, न्यूमार्क एवं बाथगेट के अनुवाद प्रारूप प्रमुख हैं, जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे।

1. नाइडा द्वारा प्रतिपादित अनुवाद की प्रक्रिया

सर्वप्रथम हम यूजीन नाइडा द्वारा दिए गए प्रारूप को देखेंगे। नाइडा (1974) अनुवाद प्रक्रिया के तीन चरण/सोपान मानते हैं :

i)        विश्लेषण (Analysis) 

ii)      अंतरण (Transfer), और

iii)    पुनर्गठन (Restructuring) 

नाइडा द्वारा प्रतिपादित इन तीनों चरणों को निम्नलिखित चित्र/आरेख द्वारा समझा जा सकता है :

 


(आरेख : 1


नाइडा द्वारा सुझाए गए अनुवाद प्रक्रिया के इन तीनों सोपानों में एक निश्चित क्रमबद्धता देखने को मिलती है। अनुवादक सर्वप्रथम स्रोत भाषा के पाठ का विश्लेषण करता है। वह मूलपाठ का विषयगत अर्थगत तथा भाषागत अर्थग्रहण करता है। इसके लिए वह भाषा-सिद्धांत पर आधारित भाषा-विश्लेषण की तकनीकों का सही प्रयोग करता है। मूलपाठ के संदेश का विषयगत एवं भाषागत/शैलीगत विश्लेषण के द्वारा अर्थबोध/अर्थग्रहण हो जाने के बाद संदेश का लक्ष्य भाषा में संक्रमण/अंतरण होता है जिसके अंतर्गत दोनों भाषाओं के बीच विभिन्न स्तरों पर परस्पर समन्वय स्थापित किया जाता है। तीसरे चरण में, अनुवादक मूल संदेश का लक्ष्य भाषा में पुनर्गठन/समायोजन करता है। यह इसलिए किया जाता है ताकि मूल संदेश लक्ष्य भाषा  के पाठक के लिए बोधगम्य, रोचक एवं सुस्पष्ट बन सके। संदेश का पुनर्गठन हेतु लक्ष्य-भाषा की अभिव्यक्ति प्रणाली और कथन रीति का ध्यान रखा जाता है तथा उसी के अनुसार अनूदित पाठ का निर्माण किया जाता है। नाइडा के मतानुसार अनुवादक को ‘स्रोत-भाषा पाठ में निहित अर्थ या संदेश के विश्लेषण तथा लक्ष्य-भाषा में उसके पुनर्गठन’ दो ध्रुवों के मध्य निरंतर सम्यक् और सटीक सामंजस्य स्थापित करना होता है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही स्रोत भाषा की कोई मूल रचना अनूदित रचना के रूप में सफल अनुवाद की श्रेणी में रखी जा सकती है।

                                                                

 स्रोत-भाषा ---------अनुवादक------------लक्ष्य-भाषा 

विश्लेषण.....................................अंतरण........................................पुनर्गठन 

(आरेख : 2

 

2. न्यूमार्क द्वारा प्रतिपादित अनुवाद की प्रक्रिया

पीटर न्यूमार्क की अनुवाद प्रक्रिया नाइडा की अनुवाद प्रक्रिया से अलग एवं विस्तृत है। यद्यपि नाइडा एवं न्यूमार्क के चिंतन-काल में कुछ अंतर है, फिर भी उनमें काफी समानता देखने को मिलती है। चूँकि नाइडा के समय में बाइबिल के ऐसे अनुवादों की अधिकता थी जो अर्थग्रहण के उद्देश्य से भाषा की व्याकरणिक संरचना से संबंधित थे। इसलिए उनकी दृष्टि वहीं तक प्रभावित एवं सीमित रही।  न्यूमार्क ने अनुवाद प्रक्रिया की दो स्थितियों पर प्रकाश डालते हुए मूल पाठ और अनूदित पाठ के सह संबंध को दो स्तरों पर विभाजित करने का प्रयास किया है :

I) मूल पाठ और अनूदित पाठ का अंतरक्रमिक अनुवाद, अर्थात् शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद, और

II) मूल पाठ का अर्थबोधन और अनूदित पाठ में उसका अभिव्यक्तीकरण

इन दोनों स्थितियों को निम्न आरेख से समझा जा सकता है :

आरेख-3

नाइडा ने जिस सोपान को ‘विश्लेषण’ कहा है, न्यूमार्क ने उसे ‘बोधन’ की संज्ञा दी है। न्यूमार्क द्वारा ‘बोधन’ की संकल्पना नाइडा की ‘विश्लेषण’ संकल्पना से इस अर्थ में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि इसमें मूल पाठ के विश्लेषण से प्राप्त अर्थ के साथ-साथ अनुवादक द्वारा मूल पाठ की व्याख्या का अंश भी शामिल है। नाइडा की तुलना में न्यूमार्क की अनुवाद प्रक्रिया संबंधी संकल्पना आधुनिक, व्यापक एवं व्यावहारिक प्रतीत होती है। इसमें न्यूमार्क स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के पाठों में अनुवाद संबंध स्पष्ट करना चाहते हैं जो कि तुलना एवं व्यतिरेकी के संदर्भ में संभव हो पाता है।

इसके बाद अंत में हम रोनाल्ड एच. बाथगेट (1983) की अनुवाद प्रक्रिया के प्रारूप को देखेंगे।

3. बाथगेट  द्वारा प्रतिस्थापित अनुवाद की प्रक्रिया

नाइडा ने जहाँ अनुवाद प्रक्रिया के तीन सोपान और न्यूमार्क ने दो चरण सुझाए हैं, वहीं बाथगेट ने अनुवाद प्रक्रिया के सात सोपानों की चर्चा की है। इससे स्पष्ट होता है कि बाथगेट अनुवाद प्रक्रिया को एक अधिक व्यावहारिक एवं व्यापक आयाम देना चाहते हैं। उन्होंने अपने सोपानों में नाइडा एवं न्यूमार्क के सोपानों (विश्लेषण- संक्रमण, अंतरण-पुर्नगठन, तथा बोधन - अभिव्यक्तीकरण)  का भी समावेश कर लिया है। बाथगेट ने अनुवाद प्रक्रिया के विभिन्न सोपान इस प्रकार दर्शाए हैं :

आरेख-4

 

i) समन्वय (Tuning) विश्लेषण और बोधन से पहले का सोपान है जिसमें अनुवादक स्रोत भाषा के पाठ को जाँचता-परखता है और उसके विषय, भाषा एवं शिल्प की जानकारी प्राप्त करता है ताकि उसका विश्लेषण करने में सुविधा रहे।  

ii) विश्लेषण (Analysis) के अंतर्गत अनुवादक मूल स्रोत का भाषा एवं विषय-वस्तु के स्तर पर विश्लेषण करता है।

iii) बोधन (Comprehension) का उद्देश्य भी विश्लेषण जैसा ही है। इसमें विश्लेषण के साथ-साथ अनुवादक द्वारा मूल पाठ की व्याख्या का अंश भी सम्मिलित रहता है।

iv) पारिभाषिक अभिव्यक्तीकरण (Terminology) के अंतर्गत दो उद्देश्य दिखाई देते हैं। प्रथम मूल पाठ में निहित संदेश का अर्थ ग्रहण करने और उसे स्पष्ट करने के लिए महत्वपूर्ण अंशों पर ध्यान देना, और दूसरे, इन अंशों के अनुवाद पर्यायों के निर्धारण में विशेष सतर्कता बरतना।

v) पुनर्गठन (Restructuring) में स्रोत भाषा की सामग्री को लक्ष्य भाषा में संप्रेषित करने के लिए उसका पुनर्गठन किया जाता है। यह पुनर्गठन लक्ष्य भाषा की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए और लक्ष्य भाषा पाठक को ध्यान में रखते हुए किया जाता है ताकि पाठक को किसी भी स्तर पर समस्या का सामना न करना पड़े।

vi) पुनरीक्षण (Proofreading) के सोपान पर पहुँचने के बाद अनूदित पाठ की पूर्णरूपेण जाँच-पड़ताल की जाती है और विभिन्न प्रकार की अशुद्धियों को दूर किया जाता है।

vii) पर्यालोचन (Discussion) अंतिम सोपान है जिसमें विषयगत प्रमाणिकता को परखा जाता है। यह अनुवाद का प्रक्रियात्मक चरण न होकर अनुवाद विमर्श का चरण है। इसके लिए अनुवादक उस विषय के विशेषज्ञ से परामर्श कर सकता है।

   इस प्रकार, बाथगेट ने विस्तारपूर्वक से अनुवाद प्रक्रिया की अवधारणा प्रस्तुत की।

© डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र / Dr. Sriniket Kumar Mishra

सहायक प्रोफेसर / Assistant Professor

अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ, / School of Translation and Interpretation

 म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा / MGAHV, Wardha


रविवार, 13 मार्च 2022

अनुवाद क्या है ? (What is Translation?)

                                   


                                            
अनुवाद क्या है ? (What is Translation?)

एक भाषा में कही या लिखी बात अथवा संदेश को दूसरी भाषा में संप्रेषित करना ही अनुवाद कहलाता है। अनुवाद मूलतः एक भाषिक प्रक्रिया है जिसमें एक भाषा में अभिव्यक्त संदेश या कथ्य को दूसरी भाषा में संप्रेषित किया जाता है। जिस भाषा से किसी संदेश या बात को अनूदित किया जाता है, उस भाषा को स्रोत भाषा (Source Language) या मूल भाषा कहते हैं एवं जिस भाषा में अनुवाद प्रक्रिया संपन्न होती है, उसे लक्ष्य भाषा (Target Language) कहते हैं। जैसे, यदि ‘रोहित विद्यालय जाता है।’ का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद ‘Rohit goes to School.’ होता है तो यहाँ ‘हिंदी’ स्रोत भाषा हुई जिसमें मूल वाक्य या पाठ है जिसका अनुवाद होना है तथा ‘अंग्रेजी’ लक्ष्य भाषा हुई, जिसमें अनुवाद का कार्य संपन्न हुआ।

व्युत्पत्ति की दृष्टि से देखा जाए तो ‘अनुवाद’ दो शब्दों के मेल से बना है; ‘अनु एवं ‘वाद। ‘अनु’ एक उपसर्ग है जो सामान्यतः पीछे या बाद आदि का अर्थ देता है एवं ‘वद्’ एक धातु है जिसका अर्थ बोलना या कहना है। ‘वद्’ धातु के साथ घञ्प्रत्यय जुड़ने से यह भाववाचक संज्ञा ‘वाद बन जाता है। इस प्रकार देखा जाए तो ‘अनुवाद का अर्थ ‘बोलने या कहने के बाद या पश्चात् बोलना या कहना’ है या दूसरे शब्दों में कहें तो इसका अर्थ ‘किसी कही हुई बात को पुन: कहना या दुहराना’ है।

भारत की परंपरा प्रधानतः मौखिक (oral) ही रही है। यहाँ प्राचीन काल से शिक्षा, गायन, लोक कथा आदि सभी मुख्यतः मौखिक रूप में ही विद्यमान रहे हैं। पहले शिक्षा गुरुकुलों में मौखिक परंपरा से ही प्रदान की जाती थी तथा तान-अनुतान, लय अथवा ध्वनियों के उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया जाता था। गुरु (आचार्य) या शिक्षक प्रायः जो कुछ बोलते या उच्चरित करते, शिष्य या छात्र/विद्यार्थी उन्हीं बातों या कथनों को पीछे-पीछे दुहराते या कहते। प्रायः ये वचन कोई मंत्र, संदेश, स्तुति या गान आदि होते। इसी को पारंपरिक दृष्टि से ‘अनुवाद या ‘अनुवचन कहा जाता था।

प्राचीन ग्रंथों में भी ‘अनुवाद शब्द का प्रयोग मिलता है। कुछ उद्धरण आगे दिए गए हैं :

  1. “अनुवादे चरणाम्” (पाणिनि, अष्टाध्यायी) : इसका अर्थ ‘सिद्ध बात का प्रतिपादन अथवा ‘कही हुई बात का कथन से लिए जाता है। (“anuvāde caraānām | (Aṣṭādhyāyī;, II.4.3))
  2. “आवृत्तिरनुवादो वा” (भर्तृहरि, वाक्पदीयम, दुहराना/पुनर्कथन)
  3. “ज्ञातस्य कथनमनुवाद” (ज्ञात का पुनर्कथन, जैमिनीय न्यायमाला)
  4. “प्राप्तस्य पुन: कथने” और “ज्ञातार्थस्य प्रतिपादने” अर्थात् (शब्दार्थ चिंतामणि कोश) (जो प्राप्त या ज्ञात है, उसे पुन: कहना)।

इसी प्रकार, अनुवाद के संबंध में वात्स्यायन भाष्य में  “प्रयोजवान् पुनः कथनम् मिलता है तो भट्टोजी दीक्षित (1550-1630) के पाणिनि सूत्र में (सिद्धांत कौमुदी, 17वीं शताब्दी) अनुवाद को अवगतार्थ प्रतिपादनम्” (‘ज्ञात तथ्य की प्रस्तुति’) कहा गया है ।

संस्कृत में ‘अनुवाद शब्द का प्रयोग वर्तमान हिंदी में प्रयुक्त अर्थ से भिन्न था। आज हिंदी भाषा में इसका अर्थ है – एक भाषा में व्यक्त संदेश को दूसरी भाषा में कहना। अनुवाद इस प्रकार भाषांतरण की प्रक्रिया है। ‘अनुवाद को वर्तमान में अंग्रेजी भाषा के ‘ट्रांसलेशन शब्द के पर्याय के रूप में लिया जाता है। ‘Translation’ के पर्याय के रूप में ‘अनुवाद’ शब्द का पहली बार प्रयोग का श्रेय मोनियर विलियम्स को जाता है। अंग्रेजी का ‘ट्रांसलेशन शब्द लैटिन भाषा के ‘translatio’ शब्द से आया है। लैटिन में यह ‘trans’ एवं ‘ferre’ शब्द से मिलकर बना है। ‘trans’ का अर्थ ‘across’ या पार है तथा ‘ferre’ का अर्थ ‘to carry या to bring’ है। ‘ferre’ शब्द का भूतकालिक कृदंत (Past Participle) ‘lātus’ होता है। इसप्रकार, ‘ट्रांसलेशन का अर्थ ‘पार ले जाना’ है। अतः भाषा की दृष्टि से देखा जाए तो इसका अर्थ ‘किसी पाठ को एक भाषा से दूसरी भाषा में ले जाना’ है।

अन्य यूरोपीय भाषाओं में ‘अनुवाद’ के लिए अलग-अलग शब्द प्रयुक्त होते हैं; यथा – फ्रांसीसी में ‘त्रादुक्सियों’ (traduction), स्पेनिश में ‘त्रादुक्सिओन’ (traducción), जर्मन में ‘उबरजेतजुंग’ (Übersetzung), पुर्तगाली में ‘त्रादुसाओ’ (tradução), इतालवी में ‘त्रादुक्सिओने’ (traduzione), रूमानियन में ‘त्रादुचेरे’ (traducere), हंगेरियन में ‘फोर्दितास’ (fordítás), रूसी में ‘पेरेवोथ’ (перевод) तुर्की में ‘तर्जुमे’ (tercüme) आदि। चीनी में अनुवाद को ‘फाँ-ई’ ( - Fānyì), जापानी में ‘हो-याक’ (翻訳 - Hon'yaku ), कोरियाई भाषा में ‘फ़ोन-याओ’ (번역 -beon-yeog), अरबी में ‘तर्जमतु’ (ترجمة), फारसी में ‘तर्जमा’ (ترجمه) एवं पश्तो में ‘’ (ژباړه) कहते हैं। ग्रीक भाषा में ‘अनुवाद को ‘मेटाफ्रेज’ () कहा जाता है, जो मूलतः शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद के लिए प्रयुक्त होता था।


भारत में ‘अनुवाद’ के लिए अधिकतर शब्द इससे मिलते-जुलते प्रयुक्त होते हैं। असमिया, बांग्ला एवं ओडिया में ‘अनुबाद शब्द का प्रयोग होता है। तेलुगु में ‘अनुवदर’ या अनुवादम (అనువాదం)’ शब्द मिलता है तो कन्नड में अनुवादा (ಅನುವಾದ) शब्द प्रयुक्त होता है। गुजराती में ‘अनुवाद (અનુવાદ)’, ‘भाषांतर एवं ‘तर्जम शब्द प्रचलित हैं। मराठी में ‘भाषांतर’ तो कश्मीरी में ‘तरजमु’ एवं सिंधी में ‘तर्जम’ शब्द का प्रयोग होता है। अनुवाद के लिए तमिळ में ‘मोळि-पेयरप्पू’ (மொழிபெயர்ப்பு) और मलयाळम में ‘विवर्तनम’ (വിവർത്തനം) शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं।  हिंदी में अनुवाद हेतु अन्य प्रयुक्त शब्द ‘छाया’, ‘टीका’, ‘उलथा’, ‘रूपांतर’, ‘भाषांतर’ एवं ‘तर्जुमा आदि हैं।

इस प्रकार, अनुवाद एक प्रक्रिया, एक कला है जिसके माध्यम से एक भाषा (स्रोत भाषा) में कही गई बात को दूसरी भाषा (लक्ष्य भाषा) में संप्रेषित किया जा सकता है। इसके लिए अनुवादक को दोनों भाषाओं (स्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा) का समुचित ज्ञान होना चाहिए। कुशल अनुवाद हेतु अनुवादक को दोनों भाषाओं की भाषिक संरचना, प्रकृति, समाज एवं संस्कृति से परिचित होना आवश्यक है। सामान्यतः अनुवादक को यह सलाह दी जाती है कि अनुवाद हेतु अपनी मातृ भाषा या प्रथम भाषा को लक्ष्य भाषा के रूप में चुनना चाहिए अर्थात उसे दूसरी भाषा से अपनी मातृ भाषा या प्रथम भाषा में अनुवाद को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति या अनुवादक अपनी मातृ भाषा या प्रथम भाषा में अन्य भाषाओं की अपेक्षा अधिक दक्ष एवं जानकार होता है; वह अपने समाज एवं भाषाई संस्कृति से भलीभांति परिचित होता है। इसी कारण से, यदि अनुवादक अपनी मातृ भाषा या प्रथम भाषा में अनुवाद कर्म करता है तो उसकी भाषाई सृजनशीलता उत्कृष्ट होती है तथा अनुवाद में त्रुटियों की संभावना कम रहती है। अतः अनुवादक को अपनी मातृ भाषा अथवा प्रथम भाषा में अनुवाद को प्राथमिकता देनी चाहिए।

© डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र / Dr. Sriniket Kumar Mishra

सहायक प्रोफेसर / Assistant Professor

अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ, / School of Translation and Interpretation

म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा / MGAHV, Wardha