स्कोपोस सिद्धांत (Skopos theory)
स्कोपोस (Skopos) ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ लक्ष्य या उद्देश्य होता है। इस शब्द
का प्रथम बार प्रयोग 1970 के दशक में हैन्स जे. वरमीर (Hans J. Vermeer) ने एक पारिभाषिक शब्द के तौर पर अनुवाद और अनुवाद की क्रिया के उद्देश्य
के रूप में किया। स्कोपोस वह प्रमुख सिद्धांत जो किसी भी अनुवाद के लिए कार्यनीति
या रणनीति निर्धारित करता है।
1970 एवं 1980 के दशक में अनुवाद के
भाषावैज्ञानिक अध्ययन के अतिरिक्त अन्य अभिगम भी प्रचलित हुए। जर्मनी में
प्रकार्यात्मक एवं संप्रेषणात्मक अभिगम का विकास हुआ। कैथरीना रेइस एवं वरमीर ने
अपनी पुस्तक ‘Grundlegung einer allgemeine Translationstheorie’ (English : Groundwork for a General
theory of Translation) (1984) में यह बताया है कि अनुवाद में
लक्ष्य पाठ का उद्देश्य या यूँ कहें कि अनुवाद का उद्देश्य ही निर्धारित करता है
कि अनुवाद की प्रविधि, युक्ति एवं प्रक्रिया क्या होगी। जिस प्रकार मनुष्य की हरेक
गतिविधि या क्रिया उसके निहित उद्देश्य पर निर्भर करती है, उसी प्रकार अनुवाद की
प्रक्रिया भी उसके करने के उद्देश्यों द्वारा निर्धारित होती है। अनुवाद की दिशा-दशा
एवं रणनीति भी अनुवाद करने के पीछे निहित लक्ष्यों या उद्देश्यों द्वारा ही
संचालित होती है। अनुवादक क्या छोड़ेगा या कुंद करेगा, किस पर ज्यादा बल देगा या
उभारेगा सभी कुछ अनुवाद के पीछे के उद्देश्य द्वारा ही संचालित होता है। अनूदित
पाठ का प्रकार्य एवं प्रभाव भी अनुवाद के उद्देश्यों के अनुरूप ही होता है। यदि
ऐसा न हो तो वह अनुवाद सफल नहीं माना जाता है। अंत: अनुवादक को अनुवाद का उद्देश्य
स्पष्ट होना चाहिए; यथा अनुवाद का उद्देश्य आर्थिक सफलता या वित्तीय लाभ कमाना है, अथवा इसका लक्ष्य स्रोत भाषा के पाठ के समतुल्य लक्ष्य भाषा के पाठकों पर
प्रभाव उत्पन्न करना है या अनुवाद का कोई और ही लक्ष्य है। इसमें लक्ष्य भाषा के
पाठ या अनूदित पाठ को ट्रांसलेतुम (trunslatum) कहा
गया है।
स्कोपोस सिद्धांत के मूल में यह बात
है कि किसी भी पाठ का अनुवाद उसके लक्ष्य भाषा के पाठकों द्वारा ही परोक्ष रूप से
निर्धारित होता है। अनूदित पाठ के पाठक या लक्ष्य पाठक की सांस्कृतिक आवश्यकताएँ
एवं स्थितियाँ अनुवाद को निश्चित ही प्रभावित करती हैं। इसके अनुसार हमारा यह
जानना आवश्यक है कि पाठ का क्यों और किसके लिए अनुवाद किया जा रहा है। अनुवादक को
यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अनूदित पाठ का क्या प्रकार्य होगा अर्थात अनूदित पाठ
अपने लक्ष्य भाषा के पाठकों पर किस प्रकार का प्रभाव छोड़ेगा। पुस्तक में कुछ नियम
भी बताए गए हैं –
1.
अनूदित पाठ या ट्रांसलेतुम (trunslatum) अनुवाद के स्कोपोस द्वारा निर्धारित होता है।
2.
अनूदित पाठ लक्ष्य संस्कृति और लक्ष्य भाषा के
पाठक के लिए सूचना प्रस्ताव है।
3.
अनूदित या लक्ष्य पाठ स्रोत
भाषा या मूल पाठ में विद्यमान सूचना को बिल्कुल भिन्न तरीके से प्रस्तुत नहीं कर
सकता।
4.
अनूदित पाठ आंतरिक रूप से (अपने आप में) सुसंगत
होना चाहिए।
5.
अनूदित पाठ (TT) मूल पाठ से अवश्य
सुसंगत होना चाहिए।
6.
उपर्युक्त नियम पदानुक्रम में
हैं लेकिन स्कोपोस का नियम सबसे महत्वपूर्ण है।
स्कोपोस
सिद्धांत का एक लाभ है कि इससे हम एक ही पाठ को अलग-अलग उद्देश्यों की दृष्टि से
कई बार अनुवाद कर सकते हैं ।
इसमें तीन तरह के नियम महत्वपूर्ण हैं –
1. स्कोपोस
नियम : अनूदित पाठ का उद्देश्य
2. सुसंगतता
का नियम (coherence rule) : अनूदित पाठ लक्ष्य भाषा के
पाठकों की स्थितियों के अनुकूल होना चाहिए, अर्थात् अनुवाद
ऐसा हो जो पाठकों की परिस्थितियों एवं ज्ञान के अनुकूल हो ।
3. निष्ठा
का नियम (fidelity rule) : ट्रांसलेतुम (trunslatum) और स्रोत भाषा में मध्य सुसंगतता अवश्य हो – पहले वह स्रोत भाषा की सूचना
को सही-सही समझे, फिर वह उस सूचना को सही तरीके व्याख्या कर
सके, और अंत में अनुवादक उस सूचना को उचित तरीके से लक्ष्य
भाषा में संप्रेषित करे । इन तीनों
अवस्थाओं में भी सुसंगतता होनी चाहिए, वे विरोधाभाषी न हों ।
स्कोपोस
सिद्धांत में कैथरीना रीस (Katharina Reiss) का पाठ-प्रकार
एवं भाषा-प्रकार्य (text type and language function), जुस्टा
होल्ज़-मैन्टरी (Justa Holz-Miinttiiri) का अनुवाद
क्रियान्वयन का सिद्धांत (theory of translational action), हैंस
ज़े. वरमीर (Hans J. Vermeer) का स्कोपोस सिद्धांत (skopos
theory) एवं क्रिस्टियान नोर्ड (Christiane Nord)
का पाठ-विश्लेषण प्रतिदर्श (text-analysis model) भी
शामिल हो गया ।
स्कोपोस सिद्धांत के आधार पर यूरोपीय विद्वानों द्वारा भारतीय ग्रंथों के अनुवादों का अध्ययन किया जा सकता है । इससे अनुवाद की राजनीति एवं अनुवाद पारिस्थितिकी को भी समझने में सहायता मिल सकती है । निश्चय ही स्कोपोस सिद्धांत अनुवाद प्रक्रिया एवं इसके उद्देश्यों को समझने में सहायक है ।
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