कुछ लोगों का मानना है कि भाषांतरण किसी व्यक्ति के भाषण/वक्तव्य का शब्द-प्रति-शब्द मौखिक अनुवाद मात्र है। हालाँकि, वास्तविकता इससे बिलकुल इतर है। दुभाषिया के लिए अपेक्षित गुणों (तीक्ष्ण स्मरण शक्ति, वाक कला में निष्णात, नोटिंग का ज्ञान आदि) के साथ-साथ उसे कई अन्य चुनौतियों के लिए सदा तैयार रहना चाहिए। भाषांतरण एक बेहद जटिल और गतिशील प्रक्रिया है जिसके लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता, प्रशिक्षण और अभ्यास-अनुभव की आवश्यकता होती है। दुभाषिया के लिए केवल दोनों भाषाओं में पारंगत होना ही पर्याप्त नहीं है, उच्च गुणवत्ता वाली भाषांतरण सेवा प्रदान करने के लिए उसके पास व्यापक अनुभव और कौशल भी होना चाहिए। कम योग्य और अनुभवहीन दुभाषिया वक्ताओं के बीच गंभीर गलतफहमियाँ पैदा कर सकता है। उच्च-गुणवत्ता वाले दुभाषिया के पास कई प्रकार के उपकरण और तकनीकें होती हैं जिनका उपयोग वह भाषांतरण की चुनौतियों और कठिनाइयों को दूर करने के लिए करता है।
भाषांतरण
प्रक्रिया के दौरान कुछ निम्नलिखित चुनौतियाँ देखने को मिल सकती हैं :
i.
सांस्कृतिक
जागरूकता का अभाव :
भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में एक ही
चिह्न या संकेत के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं; जैसे पश्चिमी देशों में उल्लू
बुद्धिमत्ता और विवेक का प्रतीक है तो भारतीय संदर्भ में मूर्खता का द्योतक है।
यदि ‘He is as wise as an owl’ का भाषांतरण
करना हो तो हम क्या करेंगे ? इसका अनुवाद यदि हम यह करें कि ‘वह उल्लू के समान
बुद्धिमान है’ तो यह निरा मूर्खता होगी क्योंकि भारत में यह हमारे लिए विरोधाभाषी वक्तव्य
होगा। अगर हम यह करें कि ‘वह लोमड़ी की तरह बुद्धिमान है या चालाक है’ तो एक बार बात बन भी सकती है, किंतु लोमड़ी चालाकी या धूर्तता का प्रतीक
है बुद्धिमानी का कम । इसलिए यहाँ दूसरा अनुवाद भी उचित प्रतीत नहीं होता है। इसी
प्रकार, कई प्रतीक अलग-अलग हो सकते हैं। यदि दुभाषिया
समतुल्य अभिव्यक्ति से परिचित है तो वह उसका प्रयोग कर सकता है अन्यथा उसे सामान्य
अर्थ संप्रेषण का प्रयास करना चाहिए। ऊपर के उदाहरण के संदर्भ में बात की जाए तो
यहाँ ‘वह बहुत बुद्धिमान है’ कहना ही उपयुक्त होगा। कई बार
एक ही भाषा कई देशों या स्थानों पर बोली जाती है, लेकिन सांस्कृतिक
मतभेदों के कारण गलतफहमियाँ हो सकती हैं। विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों
में, एक ही शब्द नए अर्थ ग्रहण कर लेते हैं और कुछ क्षेत्रीय
बोली, मुहावरे, चुटकुले और वाक्यांश
सीधे भाषांतरित नहीं किये जा सकते, उनका उस विशेष स्थान पर प्रयोग समझना आवश्यक
होता है। दृष्टांत हेतु अंग्रेजी भाषा अमेरिका, इंग्लैंड,
भारत और ऑस्ट्रेलिया में बोली जाती है किंतु, इनमें भी स्थान
के अनुसार सांस्कृतिक एवं मूल्यगत विविधताएँ पाई जाती हैं । अतः दुभाषिया को स्रोत
भाषा और लक्ष्य भाषा की संस्कृति एवं सांस्कृतिक मूल्यों का अच्छा बोध होना चाहिए ।
ii.
भौगोलिक
जागरूकता का अभाव :
सांस्कृतिक जागरूकता के साथ-साथ
दुभाषिया को स्रोत एवं लक्ष्य भाषा की भौगोलिक स्थितियों का समुचित ज्ञान होना
चाहिए । यह ज्ञान भाषाई अभिव्यक्तियों के लिए सहायक तो होता ही है साथ ही इससे
भाषांतरण की तैयारी करने में भी सुगमता होती है । उदाहरण स्वरूप ‘carrying coal to Manchester’ का अनुवाद क्या होगा ? इसके लिए Manchestar के बारे में जानकारी हो तो आसानी पता चल सकता है कि इसका अर्थ बिना काम
का श्रम करना है, न कि ‘मैनचेस्टर तक कोयला ढोना’ है । मैनचेस्टर में बहुत कोयला
निकलता है, वहाँ के लिए कोई मूर्ख ही कोयला ले जाएगा । भारतीय संदर्भ में इसका
अनुवाद ‘उल्टे बाँस बरेली को’ हो सकता है ।
भौगोलिक ज्ञान से केवल भाषाई
अभिव्यक्तियों को समझने में ही आसानी नहीं होती है, बल्कि इससे कार्यक्रम स्थल की जलवायु, मौसम और अन्य आवश्यक जानकारियों का
ज्ञान हो जाता है । वहाँ पर किस प्रकार का पहनावा होगा, क्या
खान-पान हो सकता है? इसका भी अंदाजा हो जाता है और उसी के
अनुसार दुभाषिया अपनी तैयारी कर लेता है ।
iii.
भाषाई
विविधता और क्षेत्रीय अभिव्यक्तियों के ज्ञान का अभाव :
एक ही भाषा क्षेत्र में कई बार
क्षेत्रीय विविधताएँ देखने को मिलती हैं। यदि दुभाषिया को भाषाई विविधता और
क्षेत्रीय अभिव्यक्तियों के ज्ञान का अभाव हो तो उसके लिए भाषांतरण का कार्य बहुत
बड़ी चुनती होगी। उदाहरण के लिए, यदि
किसी ने 'टेक अ हाइक (take a hike)' वाक्यांश
का बिना किसी स्पष्टीकरण के सीधे दूसरी भाषा में भाषांतरण कर दिया तो इसका अर्थ शब्दानुवाद
बिलकुल नहीं है कि ‘वृद्धि लें’, बल्कि यह अभिव्यक्ति उत्तरी
अमेरिकी अंग्रेजी में ‘चले जाओ’ या ‘बाहर निकलो (get out)’ (झुंझलाहट की स्थिति में) आदि के लिए प्रयोग किया
जाता है। प्रत्येक वक्ता जो कह रहा है, उसे सटीक रूप से बताने के लिए एक अच्छे
दुभाषिया को दोनों वक्ताओं की मुहावरे-लोकोक्तियों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय
भाषाई अभिव्यक्तियों की गहरी समझ होनी चाहिए। अयोग्य या अनुभवहीन दुभाषिया को इनके
अर्थ संप्रेषण करने में कठिनाई हो सकती है जिनके शाब्दिक अनुवाद का कोई अर्थ नहीं हो।
व्यक्तिगत भाषा/वाक शैली भी भिन्न-भिन्न होती है इसलिए विविध भाषा शैली के वक्ताओं
को सुनने का पर्याप्त अभ्यास होना चाहिए। यदि किसी राजनयिक या राष्ट्राध्यक्ष के
लिए भाषांतरण करना हो तो उनके द्वारा पूर्व में दिए गए वक्तव्यों और भाषणों को
सुनना चाहिए, इससे उनकी भाषा शैली एवं भाषा प्रयोग की जानकारी मिलती है जिससे
भाषांतरण में सुगमता होगी है।
iv.
वक्ताओं
को सुनने में कठिनाई :
यह समस्या आम लग सकती है या इस तरफ
हमारा ध्यान अक्सर नहीं जाता है, किंतु भाषांतरण के दौरान वक्ता को सुनने में
कठिनाई होना एक बहुत ही सामान्य समस्या है। यह समस्या खराब तरीके से सेट किए गए
ऑडियो उपकरण (विशेष रूप से दूरस्थ सेटिंग्स में) या स्पीकर के गड़बड़ाने के कारण
हो सकती है। अनुभवी दुभाषिया भाषांतरण कार्य से पूर्व ही सुनिश्चित कर लेता है कि
सभी ऑडियो उपकरण ठीक से काम कर रहे हैं और उसे पता होता है कि वक्ताओं को यदि कुछ
कहना है तो कब निर्देश देना है ताकि उन्हें समझा जा सके। अयोग्य दुभाषिया यह नहीं
जानता कि इस चुनौती से कैसे निपटा जाए और वह ऐसे शब्दों को छोड़ सकता है जिन्हें
वह ठीक से सुन न सका हो, जिससे
गलत भाषांतरण की संभावना रहती है। कई बार श्रोताओं की आवाज़ या अन्य शोरगुल के कारण
भी श्रवण में समस्या हो सकती है, इसके लिए उसके पास हमेशा हेडफ़ोन अवश्य होना चाहिए,
उसे स्पीकर पर कभी भी निर्भर नहीं रहना चाहिए।
v.
तकनीकी
विषयों का भाषांतरण:
व्याख्या अक्सर किसी विषय-विशिष्ट के
संदर्भ में होती है जैसे कानूनी, चिकित्सा,
व्यवसाय और विज्ञान आदि। दुभाषिया को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह
इस विशिष्ट क्षेत्र की शब्दावली से अच्छी तरह से स्वयं परिचित हो। उदाहरण के लिए,
कुछ लोग बिना किसी तैयारी के चिकित्सा-विशिष्ट शब्दावली जैसे ‘Gallstones’ का भाषांतरण ‘पित्त की थैली में पथरी’ करने में सक्षम होंगे, लेकिन सभी
लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार ‘पित्त की थैली (gallbladder)’ का अंग्रेजी में क्या अनुवाद होगा यह भी आम दुभाषिया के लिए चुनौती है,
जब तक कि वह इस क्षेत्र विशेष के लिए पूरी तरह से तैयार हो। हालाँकि, यदि विषय वस्तु बहुत विशिष्ट हो, तो दुभाषिया को
विषय पर पहले से जानकारी देने की आवश्यकता हो सकती है ताकि वह तैयारी कर सके। एक
अयोग्य दुभाषिया ऐसा भाषांतरण करेगा जो भ्रामक और अस्पष्ट होगा।
vi.
मूल
वक्ता के लहजे का अनुकरण:
मूल वक्ता, जिसका हमें भाषांतरण करना
होता है, के लहजे का अनुकरण एक कौशल संबंधी विशेषता है। किसी के लहजे का अनुकरण
आसान कार्य नहीं होता है, बल्कि इसके लिए अभ्यास के साथ-साथ प्रतिभा की भी
आवश्यकता होती है। कल्पना कीजिए कि कोई वक्ता व्यंग्यात्मक स्वर में कह रहा हो 'ओह, यह तो बहुत
बढ़िया है!' यह वाक्य सामान्य स्वर में अनुमोदन की
अभिव्यक्ति है तो व्यंग्यात्मक स्वर अत्यधिक
असंतोष व्यक्त करने का एक तरीका है। यदि दुभाषिया इसे समझ नहीं सकता है तो वह अर्थ
का अनर्थ कर सकता है। इस उदाहरण से हमें वक्ता के स्वर को समझने की दुभाषिया की
क्षमता के महत्व का पता चलता है। चूँकि अर्थ केवल बोले गए शब्दों से ही व्यक्त
नहीं होता, बल्कि उसके उच्चारण की शैली या लहजे से भी व्यक्त
होता है इसलिए व्यंग्य और हास्य को ठीक से समझने में विफलता गंभीर गलत भाषांतरण में
परिणत हो सकती है। अतः भाषांतरण का अनुभवी होना बहुत आवश्यक होता है।
vii.
मनोयोग
की कमी :
दुभाषिया
कभी-कभी स्वास्थ्य या अन्य किसी व्यक्तिगत समस्या के कारण मानसिक तनाव की स्थिति
के कारण दुभाषिया कर्म में ध्यान नहीं दे पाता है। मानसिक तनाव से दुभाषिया कर्म
हेतु आवश्यक पूर्ण मनोयोग की स्थिति नहीं आ पाती, इस स्थिति में दुभाषिया सही से वक्ता की बातों को समझने में सक्षम नहीं
होता है और परिणामतः भाषांतरण के दौरान त्रुटियाँ होने की संभावना बनी रहती है। इस
स्थिति में, दुभाषिया को पूर्व में ही भाषांतरण के लिए मना कर देना चाहिए।
सामान्यतः यदि संवाद बहुत महत्वपूर्ण हो तो बैकअप (backup)
दुभाषिया रखे जाते हैं, उनका प्रयोग बेहतर होता है।
इन चुनौतियों /कठिनाइयों
पर कैसे विजय प्राप्त किया जा सकता है ?
दुभाषियों के लिए इन चुनौतियों पर
काबू पाने की केवल एक ही कुंजी है और वह है अभ्यास एवं अनुभव। दुभाषिए के लिए
प्रतिदिन अभ्यास करना अपरिहार्य है। उसे दोनों भाषाओं की सांस्कृतिक पहलुओं की
अच्छी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। क्षेत्र विशेष की शब्दावलियों एवं
अभिव्यक्तियों का अभ्यास होना चाहिए। इसके लिए उसे प्रतिदिन विभिन्न क्षेत्रों के
विभिन्न पाठों एवं भाषणों के भाषांतरण एवं अनुवाद का अभ्यास करना चाहिए। प्रत्येक
दिन, उसे दोनों भाषाओं के समाचार-पत्रों का
गहन अध्ययन करना चाहिए। जैसे-जैसे दुभाषिए अधिक अनुभव प्राप्त करते हैं, उनकी सांस्कृतिक संदर्भों की समझ गहरी होती जाती है और आवाज के तान-अनुतान,
लहजे की सटीक भाषांतरण करने की क्षमता भी अभ्यास से विकसित हो जाती है। जब भाषांतरण
की बात आती है, तो अनुभव का कोई विकल्प नहीं है और एक अयोग्य
दुभाषिया को कार्य सौंपने से सभी पक्षों के बीच भ्रम पैदा होने की संभावना रहती
है।
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