शनिवार, 1 मार्च 2025

साहित्यिक असतता (Plagiarism)

साहित्यिक असतता (Plagiarism)

  

किसी दूसरे व्यक्ति के काम, ज्ञान एवं संकल्पना या विचार को बिना उचित माध्यम अथवा तरीके से सूचित किए उसे अपना कार्य बताना ही साहित्यिक असतता है । यह बौद्धिक चोरी का एक रूप है और शैक्षणिक निष्ठा का उल्लंघन है। इसे अनैतिक और बेईमानी माना जाता है । प्लैज़रिज्म (Plagiarism) हेतु साहित्यिक चोरी से अधिक साहित्यिक असतता शब्द का प्रयोग उचित प्रतीत होता है क्योंकि इसमें हर बार ‘चोर्य’ क्रिया ही संपन्न नहीं होती है

 

साहित्यिक असतता हमारे कुछ निम्नलिखित कार्यों की परिणिति हो सकती है, जैसे -

-         किसी अन्य व्यक्ति के कार्य को स्वयं का बताना ।

-         किसी के शब्दों या विचारों को बिना उनका संदर्भ दिए अपने शोधपत्र, पुस्तक या व्याख्यान में उद्धृत करना ।

-         उद्धरण चिह्न को छोड़ देना ।

-         किसी के वाक्यों को लेकर उनके शब्दों को बदल देना ।

 

इसके उपरांत हम देखेंगे कि साहित्यिक असतता के संभावित कारण क्या हैं ? कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :

-         ज्ञान एवं कौशल की कमी ।

-         आधिकारिक पहचान का असुरक्षा भाव ।

-         सांस्कृतिक विभिन्नता

-         संज्ञानात्मक परिणाम

 

साहित्यिक असतता मुख्यत: दो प्रकार की होती है  (Types of plagiarism) :

1.      साशय या इरादतन (Intentional Plagiarism)

2.      अनाशय या गैरइरादतन (Unintentional Plagiarism)

जानबूझकर एवं सोच-समझकर किया जाने वाला कार्य ‘साशय साहित्यिक असतता’ है एवं जानकारी के अभाव में या उचित तरीके से उद्धरण न दे पाना ‘अनाशय साहित्यिक असतता’ है । कई बार संक्षिप्तीकरण एवं संक्षेपण अंक सही तरीका नहीं आने से भी हम  साहित्यिक चोरी के दायरे में आ सकते हैं ।

 

अन्य आधारों पर देखा जाए तो प्लैज़रिज्म के चार प्रकार हो सकते हैं  :

1.      प्रत्यक्ष साहित्यिक असतता (Direct plagiarism)

किसी अन्य व्यक्ति के कार्य के अंश को बिना श्रेय दिए शब्दशः कॉपी करना

2.      स्व साहित्यिक असतता (Self-plagiarism)

बिना अनुमति या उल्लेख के अपना पिछला कार्य प्रस्तुत करना, या पिछले कार्य के कुछ हिस्सों को नए कार्य में शामिल करना

3.      असंगत साहित्यिक असतता (Mosaic plagiarism)

उद्धरण चिह्नों का उपयोग किए बिना किसी स्रोत से वाक्यांश उद्धृत करना

4.      अनभिप्रेत साहित्यिक असतता (Accidental plagiarism)

 

इसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं –

  • स्रोतों का उल्लेख न करना,
  • स्रोतों को गलत तरीके से उद्धृत करना, या
  • अनजाने में स्रोतों का अर्थ बदल देना

 

इसके अतिरिक्त साहित्यिक असतता के कई अन्य प्रारूपों का भी उल्लेख मिलता है, जैसे :

1.      क्लोन या हुबहू : क्लोन या हुबहू उसे कहते हैं जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के कार्य को हुबहू प्रस्तुत कर अपना कार्य बताता है ।

2.      CTRL-C या कॉपी : जैसा कि हम देख सकते हैं, CTRL-C माइक्रोसॉफ्ट word का एक निर्देश (command) जिसे हम एक डॉक्यूमेंट या फ़ाइल से दूसरी में कॉपी करने के लिए प्रयोग करते हैं । यहाँ भी कहीं से कॉपी करके के अपने कार्य में शामिल कर लिया जाता है ।

3.      FIND-REPLACE : यह कॉपी से थोड़ा उन्नत किस्म का साहित्यिक असतता है । यहाँ कुछ चीजों को इरादतन बदल दिया जाता है जिससे यह आसानी से पता न चले किंतु इस प्रकार की साहित्यिक असतता भी पकड़ में आ जाती है।

4.      REMIX (मिश्रण) : इसमें प्रयोक्ता चीजों को मिला देता है, यह FIND-REPLACE से आगे की क्रिया विधि है । इसे सॉफ्टवेयर से पकड़ना थोड़ा कठिन होता है ।

5.      Hybrid (संकर) : हाइब्रिड रीमिक्स से भी उन्नत प्रकार की विधि है ।

6.      Mashup (मैशअप) : मैशअप और रीमिक्स दोनों एक से प्रतीत होने वाले शब्द हैं । रीमिक्स में मिश्रित की गई चीजों का अस्तित्व रहता है या यूँ कहें तो हम बता सकते हैं कि इसमें क्या-क्या मिश्रित है । किंतु, मैशअप में चोरी की गई चीजें आसानी से पता नहीं चलती हैं । यह प्रथम दृष्टि में नया या मौलिक प्रतीत होता है ।

7.      404 Error (एरर 404) : इसमें मूल स्रोत गैर-मौजूद होते हैं या गलत जानकारी के साथ उद्धरण शामिल होते हैं । जैसा कि हम जानते हैं कि यदि कोई वेबसाइट का पता या एड्रेस गलत होता है या वह वेबसाइट उपलब्ध नहीं होती है तो हमें यह संदेश कंप्यूटर स्क्रीन पर देखने को मिलता है । इसका अर्थ है कि यदि हम गलत संदर्भ का उल्लेख करते हैं तो वह इसी श्रेणी का साहित्यिक असतता माना जाता है ।

8.      Recycle (पुनर्चक्रण) : लेखकों द्वारा के स्वयं के पिछले कार्यों से बिना उद्धरण के सामग्री को पुनः उपयोग या उधार लेना । यह अनावश्यक प्रकाशन का एक रूप है ।

9.      Aggregator (संकलन) : इसमें लेखक स्रोतों का हवाला देता है, लेकिन इसमें अपनी ओर से उसकी कोई मूल सामग्री या तो नहीं होती है और यदि होती भी है तो बहुत कम होती है ।

10.  Re-tweet (रिट्विट) : यह कई अलग-अलग स्रोतों से स्वीकृत या अस्वीकृत अंशों से बना एक अप्रमाणिक लेखन होता है।

 

साहित्यिक असतता के परिणाम  (Consequences of plagiarism)

  • पत्रिका या पुस्तक के छपने के पश्चात यदि साहित्यिक असतता सामने आती है तो आपका शोध आलेख या पुस्तक को वापस लिया जा सकता है इसे अप्रकाशित माना जाएगा और हो सकता है कि आप पर वित्तीय जुर्माना या दंड भी लग जाए
  • इसके कारण निष्कासन सहित अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई संभव है
  • यह आपके संस्थान के मानकों और उसके द्वारा जारी की जाने वाली डिग्री या उपाधि की महत्ता को कम कर सकता है उसकी साख या प्रतिष्ठा को धूमिल कर सकता है
  • आपके भविष्य के करियर या अकादमिक उन्नयन पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं

 

साहित्यिक  से बचाव (How to avoid plagiarism ?) :

अब हमारे सामने प्रश्न उठता है कि हम प्लैज़रिज्म को कैसे टाल सकते हैं या इससे बच सकते हैं ?  जैसा कि हम जानते हैं जानकारी ही बचाव है इसलिए साहित्यिक चोरी  या असतता से बचने के लिए इससे संबंधित जानकारी होना आवश्यक है

  •  दूसरों के विचार, शब्द, डेटा या कोई भी जानकारी का उचित संदर्भ उद्धृत करें 
  • किसी अन्य व्यक्ति के पाठ या वाक्यांशों को दर्शाने के लिए उद्धरण चिह्नों और/या इंडेंटेड पाठ (फॉर्मेट) का उपयोग करें यदि सामान्यत: 20 शब्दों से अधिक का उद्धरण है तो इसके लिए अलग से इंडेंटेड पाठ (फॉर्मेट) तैयार करें और इसकी फॉण्ट के आकार को छोटा रखें ताकि स्पष्ट रूप से पता चले कि यह उद्धरण किसी अन्य स्रोत से है
  • किसी अन्य व्यक्ति के विचारों का उद्धरण के साथ उनका उचित श्रेय देते हुए संक्षिप्त विवरण दें 

 

 इसके साथ ही हमें ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (UGC) द्वारा जारी ‘उच्च शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक निष्ठा का संवर्धन और साहित्यिक असतता की रोकथाम’ विनियम, 2018’ (Promotion of Academic Integrity and Prevention of Plagiarism in Higher Educational Institutions) Regulations, 2018 ) को हम देख सकते हैं इससे हमें मार्गदर्शन मिलता है इसके साथ ही ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (UGC) ने ‘श्रेष्ठ अकादमिक अनुसंधान अभ्यास’ भी अपलोड किया है इससे भी हमें इस संबंध में  कुछ सीखने को मिल सकता है इसके साथ ही हमें क्रिएटिव कॉमन्स अथवा सृजनशीलता संबंधी अधिकार (cc) का ज्ञान भी सहायक सिद्ध हो सकता है

 

संदर्भ (References) :

·         Promotion of Academic Integrity and Prevention of Plagiarism in Higher Educational Institutions) Regulations, 2018  https://www.ugc.ac.in/pdfnews/7771545_academic-integrity-Regulation2018.pdf

·         Patwardhan B., Desai A., Chourasia A, Nag S., Bhatnagar R. 2020. Guidance Document: Good Academic Research Practices. New Delhi: University Grants Commission. (https://www.ugc.gov.in/e-book/UGC_GARP_2020_Good%20Academic%20Research%20Practices.pdf )

·         https://sriniket.blogspot.com/2023/12/creative-commons.html


© डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र

    सहायक प्रोफेसर,

    अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ,

    म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons) क्या हैं ?

 क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons)

क्रिएटिव कॉमन्स (Creative Commons) एक निर्लाभ अमेरिकी संगठन है। यह एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है जो शिक्षा या ज्ञान संबंधी उपलब्ध संसाधनों की शैक्षिक पहुँच और दूसरों के लिए कानूनी रूप से सृजन-पुनर्सृजन एवं संशोधन करने और इसे साझा करने की सीमा को परिभाषित एवं विस्तारित करने हेतु समर्पित है। क्रिएटिव कॉमन्स ने कई सत्वाधिकार अनुज्ञा अर्थात् कॉपीराइट लाइसेंस  जारी किए हैं, जिन्हें क्रिएटिव कॉमन्स (CC) लाइसेंस के रूप में जाना जाता है ये लाइसेंस आम लोगों के लिए सुपरिभाषित हैं एवं इनका प्रयोग भी निशुल्क हैं इन लाइसेंस से रचनात्मक कार्यों के लेखकों को यह बताने में सुविधा होती है कि वे कौन से अधिकार अपने लिए सुरक्षित रख रहे हैं और उपभोक्ताओं या अन्य रचनाकारों के लाभ के लिए वे कौन से अधिकार सौंपना चाहते हैं। एक लेखक, कलाकार या रचनाकार को कॉपीराइट के तहत अपने द्वारा सृजित कार्यों से संबंधित बहुत सारे अधिकार प्राप्त होते हैं। एक तरफ तो ये अधिकार, सृजनकर्ता के लिए बेहद लाभकारी होते हैं, पर दूसरी तरफ इनके कारण ज्ञान या शिक्षा का व्यापक प्रसार एवं आमजन तक इसकी पहुँच बाधित होती है। क्रिएटिव कॉमन्स (CC) रचनाकार के इन्हीं विभिन्न अधिकारों को वर्गीकृत कर उन्हें विशेष चिह्नों द्वारा परिभाषित करता है। रचनाकार या लेखक चाहे तो इनमें से कुछ अधिकार स्वेच्छा से अन्य लोगों या रचनाकारों को रचनात्मक कार्यों एवं शिक्षा के गैर-लाभकारी प्रसार हेतु सौंप सकता है या उक्त अधिकारों को छोड़ सकता है। इससे सृजनधर्मिता एवं ज्ञान के प्रसार-विस्तार में सहायता मिलती है।

सोमवार, 17 जुलाई 2023

दुभाषिया कर्म की चुनौतियाँ

 कुछ लोगों का मानना है कि भाषांतरण किसी व्यक्ति के भाषण/वक्तव्य का शब्द-प्रति-शब्द मौखिक अनुवाद मात्र है। हालाँकि, वास्तविकता इससे बिलकुल इतर है। दुभाषिया के लिए अपेक्षित गुणों (तीक्ष्ण स्मरण शक्ति, वाक कला में निष्णात, नोटिंग का ज्ञान आदि) के साथ-साथ उसे कई अन्य चुनौतियों के लिए सदा तैयार रहना चाहिए।  भाषांतरण एक बेहद जटिल और गतिशील प्रक्रिया है जिसके लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता, प्रशिक्षण और अभ्यास-अनुभव की आवश्यकता होती है। दुभाषिया के लिए केवल दोनों भाषाओं में पारंगत होना ही पर्याप्त नहीं है, उच्च गुणवत्ता वाली भाषांतरण सेवा प्रदान करने के लिए उसके पास व्यापक अनुभव और कौशल भी होना चाहिए। कम योग्य और अनुभवहीन दुभाषिया वक्ताओं के बीच गंभीर गलतफहमियाँ पैदा कर सकता है। उच्च-गुणवत्ता वाले दुभाषिया के पास कई प्रकार के उपकरण और तकनीकें होती हैं जिनका उपयोग वह भाषांतरण की चुनौतियों और कठिनाइयों को दूर करने के लिए करता है।

            भाषांतरण प्रक्रिया के दौरान कुछ निम्नलिखित चुनौतियाँ देखने को मिल सकती हैं :         

        i.            सांस्कृतिक जागरूकता का अभाव :

            भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में एक ही चिह्न या संकेत के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं; जैसे पश्चिमी देशों में उल्लू बुद्धिमत्ता और विवेक का प्रतीक है तो भारतीय संदर्भ में मूर्खता का द्योतक है। यदि ‘He is as wise as an owl’ का भाषांतरण करना हो तो हम क्या करेंगे ? इसका अनुवाद यदि हम यह करें कि ‘वह उल्लू के समान बुद्धिमान है’ तो यह निरा मूर्खता होगी क्योंकि भारत में यह हमारे लिए विरोधाभाषी वक्तव्य होगा। अगर हम यह करें कि ‘वह लोमड़ी की तरह बुद्धिमान है या चालाक है तो एक बार बात बन भी सकती है, किंतु लोमड़ी चालाकी या धूर्तता का प्रतीक है बुद्धिमानी का कम । इसलिए यहाँ दूसरा अनुवाद भी उचित प्रतीत नहीं होता है। इसी प्रकार, कई प्रतीक अलग-अलग हो सकते हैं। यदि दुभाषिया समतुल्य अभिव्यक्ति से परिचित है तो वह उसका प्रयोग कर सकता है अन्यथा उसे सामान्य अर्थ संप्रेषण का प्रयास करना चाहिए। ऊपर के उदाहरण के संदर्भ में बात की जाए तो यहाँ ‘वह बहुत बुद्धिमान है कहना ही उपयुक्त होगा। कई बार एक ही भाषा कई देशों या स्थानों पर बोली जाती है, लेकिन सांस्कृतिक मतभेदों के कारण गलतफहमियाँ हो सकती हैं। विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में, एक ही शब्द नए अर्थ ग्रहण कर लेते हैं और कुछ क्षेत्रीय बोली, मुहावरे, चुटकुले और वाक्यांश सीधे भाषांतरित नहीं किये जा सकते, उनका उस विशेष स्थान पर प्रयोग समझना आवश्यक होता है। दृष्टांत हेतु अंग्रेजी भाषा अमेरिका, इंग्लैंड, भारत और ऑस्ट्रेलिया में बोली जाती है किंतु, इनमें भी स्थान के अनुसार सांस्कृतिक एवं मूल्यगत विविधताएँ पाई जाती हैं । अतः दुभाषिया को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की संस्कृति एवं सांस्कृतिक मूल्यों का अच्छा बोध होना चाहिए ।

      ii.            भौगोलिक जागरूकता का अभाव :

            सांस्कृतिक जागरूकता के साथ-साथ दुभाषिया को स्रोत एवं लक्ष्य भाषा की भौगोलिक स्थितियों का समुचित ज्ञान होना चाहिए । यह ज्ञान भाषाई अभिव्यक्तियों के लिए सहायक तो होता ही है साथ ही इससे भाषांतरण की तैयारी करने में भी सुगमता होती है । उदाहरण स्वरूप ‘carrying coal to Manchester’ का अनुवाद क्या होगा ? इसके लिए Manchestar के बारे में जानकारी हो तो आसानी पता चल सकता है कि इसका अर्थ बिना काम का श्रम करना है, न कि ‘मैनचेस्टर तक कोयला ढोना’ है । मैनचेस्टर में बहुत कोयला निकलता है, वहाँ के लिए कोई मूर्ख ही कोयला ले जाएगा । भारतीय संदर्भ में इसका अनुवाद ‘उल्टे बाँस बरेली को हो सकता है ।

            भौगोलिक ज्ञान से केवल भाषाई अभिव्यक्तियों को समझने में ही आसानी नहीं होती है, बल्कि इससे कार्यक्रम स्थल की जलवायु, मौसम और अन्य आवश्यक जानकारियों का ज्ञान हो जाता है । वहाँ पर किस प्रकार का पहनावा होगा, क्या खान-पान हो सकता है? इसका भी अंदाजा हो जाता है और उसी के अनुसार दुभाषिया अपनी तैयारी कर लेता है ।

   iii.            भाषाई विविधता और क्षेत्रीय अभिव्यक्तियों के ज्ञान का अभाव :

            एक ही भाषा क्षेत्र में कई बार क्षेत्रीय विविधताएँ देखने को मिलती हैं। यदि दुभाषिया को भाषाई विविधता और क्षेत्रीय अभिव्यक्तियों के ज्ञान का अभाव हो तो उसके लिए भाषांतरण का कार्य बहुत बड़ी चुनती होगी। उदाहरण के लिए, यदि किसी ने 'टेक अ हाइक (take a hike)' वाक्यांश का बिना किसी स्पष्टीकरण के सीधे दूसरी भाषा में भाषांतरण कर दिया तो इसका अर्थ शब्दानुवाद बिलकुल नहीं है कि ‘वृद्धि लें’, बल्कि यह अभिव्यक्ति उत्तरी अमेरिकी अंग्रेजी में ‘चले जाओ’ या ‘बाहर निकलो (get out) (झुंझलाहट की स्थिति में) आदि के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक वक्ता जो कह रहा है, उसे सटीक रूप से बताने के लिए एक अच्छे दुभाषिया को दोनों वक्ताओं की मुहावरे-लोकोक्तियों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाई अभिव्यक्तियों की गहरी समझ होनी चाहिए। अयोग्य या अनुभवहीन दुभाषिया को इनके अर्थ संप्रेषण करने में कठिनाई हो सकती है जिनके शाब्दिक अनुवाद का कोई अर्थ नहीं हो। व्यक्तिगत भाषा/वाक शैली भी भिन्न-भिन्न होती है इसलिए विविध भाषा शैली के वक्ताओं को सुनने का पर्याप्त अभ्यास होना चाहिए। यदि किसी राजनयिक या राष्ट्राध्यक्ष के लिए भाषांतरण करना हो तो उनके द्वारा पूर्व में दिए गए वक्तव्यों और भाषणों को सुनना चाहिए, इससे उनकी भाषा शैली एवं भाषा प्रयोग की जानकारी मिलती है जिससे भाषांतरण में सुगमता होगी है।

    iv.            वक्ताओं को सुनने में कठिनाई :

            यह समस्या आम लग सकती है या इस तरफ हमारा ध्यान अक्सर नहीं जाता है, किंतु भाषांतरण के दौरान वक्ता को सुनने में कठिनाई होना एक बहुत ही सामान्य समस्या है। यह समस्या खराब तरीके से सेट किए गए ऑडियो उपकरण (विशेष रूप से दूरस्थ सेटिंग्स में) या स्पीकर के गड़बड़ाने के कारण हो सकती है। अनुभवी दुभाषिया भाषांतरण कार्य से पूर्व ही सुनिश्चित कर लेता है कि सभी ऑडियो उपकरण ठीक से काम कर रहे हैं और उसे पता होता है कि वक्ताओं को यदि कुछ कहना है तो कब निर्देश देना है ताकि उन्हें समझा जा सके। अयोग्य दुभाषिया यह नहीं जानता कि इस चुनौती से कैसे निपटा जाए और वह ऐसे शब्दों को छोड़ सकता है जिन्हें वह ठीक से सुन न सका हो, जिससे गलत भाषांतरण की संभावना रहती है। कई बार श्रोताओं की आवाज़ या अन्य शोरगुल के कारण भी श्रवण में समस्या हो सकती है, इसके लिए उसके पास हमेशा हेडफ़ोन अवश्य होना चाहिए, उसे स्पीकर पर कभी भी निर्भर नहीं रहना चाहिए।

      v.            तकनीकी विषयों का भाषांतरण:

            व्याख्या अक्सर किसी विषय-विशिष्ट के संदर्भ में होती है जैसे कानूनी, चिकित्सा, व्यवसाय और विज्ञान आदि। दुभाषिया को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह इस विशिष्ट क्षेत्र की शब्दावली से अच्छी तरह से स्वयं परिचित हो। उदाहरण के लिए, कुछ लोग बिना किसी तैयारी के चिकित्सा-विशिष्ट शब्दावली जैसे ‘Gallstones’ का भाषांतरण ‘पित्त की थैली में पथरी’ करने में सक्षम होंगे, लेकिन सभी लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार ‘पित्त की थैली (gallbladder)’ का अंग्रेजी में क्या अनुवाद होगा यह भी आम दुभाषिया के लिए चुनौती है, जब तक कि वह इस क्षेत्र विशेष के लिए पूरी तरह से तैयार हो। हालाँकि, यदि विषय वस्तु बहुत विशिष्ट हो, तो दुभाषिया को विषय पर पहले से जानकारी देने की आवश्यकता हो सकती है ताकि वह तैयारी कर सके। एक अयोग्य दुभाषिया ऐसा भाषांतरण करेगा जो भ्रामक और अस्पष्ट होगा।

    vi.            मूल वक्ता के लहजे का अनुकरण:

            मूल वक्ता, जिसका हमें भाषांतरण करना होता है, के लहजे का अनुकरण एक कौशल संबंधी विशेषता है। किसी के लहजे का अनुकरण आसान कार्य नहीं होता है, बल्कि इसके लिए अभ्यास के साथ-साथ प्रतिभा की भी आवश्यकता होती है। कल्पना कीजिए कि कोई वक्ता व्यंग्यात्मक स्वर में कह रहा हो 'ओह, यह तो बहुत बढ़िया है!' यह वाक्य सामान्य स्वर में अनुमोदन की अभिव्यक्ति है तो व्यंग्यात्मक स्वर  अत्यधिक असंतोष व्यक्त करने का एक तरीका है। यदि दुभाषिया इसे समझ नहीं सकता है तो वह अर्थ का अनर्थ कर सकता है। इस उदाहरण से हमें वक्ता के स्वर को समझने की दुभाषिया की क्षमता के महत्व का पता चलता है। चूँकि अर्थ केवल बोले गए शब्दों से ही व्यक्त नहीं होता, बल्कि उसके उच्चारण की शैली या लहजे से भी व्यक्त होता है इसलिए व्यंग्य और हास्य को ठीक से समझने में विफलता गंभीर गलत भाषांतरण में परिणत हो सकती है। अतः भाषांतरण का अनुभवी होना बहुत आवश्यक होता है।

 vii.            मनोयोग की कमी :

            दुभाषिया कभी-कभी स्वास्थ्य या अन्य किसी व्यक्तिगत समस्या के कारण मानसिक तनाव की स्थिति के कारण दुभाषिया कर्म में ध्यान नहीं दे पाता है। मानसिक तनाव से दुभाषिया कर्म हेतु आवश्यक पूर्ण मनोयोग की स्थिति नहीं आ पाती, इस स्थिति में दुभाषिया सही से वक्ता की बातों को समझने में सक्षम नहीं होता है और परिणामतः भाषांतरण के दौरान त्रुटियाँ होने की संभावना बनी रहती है। इस स्थिति में, दुभाषिया को पूर्व में ही भाषांतरण के लिए मना कर देना चाहिए। सामान्यतः यदि संवाद बहुत महत्वपूर्ण हो तो बैकअप (backup) दुभाषिया रखे जाते हैं, उनका प्रयोग बेहतर होता है।

 

इन चुनौतियों /कठिनाइयों पर कैसे विजय प्राप्त किया जा सकता है ?

            दुभाषियों के लिए इन चुनौतियों पर काबू पाने की केवल एक ही कुंजी है और वह है अभ्यास एवं अनुभव। दुभाषिए के लिए प्रतिदिन अभ्यास करना अपरिहार्य है। उसे दोनों भाषाओं की सांस्कृतिक पहलुओं की अच्छी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। क्षेत्र विशेष की शब्दावलियों एवं अभिव्यक्तियों का अभ्यास होना चाहिए। इसके लिए उसे प्रतिदिन विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न पाठों एवं भाषणों के भाषांतरण एवं अनुवाद का अभ्यास करना चाहिए। प्रत्येक दिन, उसे दोनों भाषाओं के समाचार-पत्रों का गहन अध्ययन करना चाहिए। जैसे-जैसे दुभाषिए अधिक अनुभव प्राप्त करते हैं, उनकी सांस्कृतिक संदर्भों की समझ गहरी होती जाती है और आवाज के तान-अनुतान, लहजे की सटीक भाषांतरण करने की क्षमता भी अभ्यास से विकसित हो जाती है। जब भाषांतरण की बात आती है, तो अनुभव का कोई विकल्प नहीं है और एक अयोग्य दुभाषिया को कार्य सौंपने से सभी पक्षों के बीच भ्रम पैदा होने की संभावना रहती है।

      भाषांतरण निश्चय ही चुनौती भरा कार्य है जिसके लिए व्यापक प्रशिक्षण और अनुभव की आवश्यकता होती है। केवल दोनों भाषाओं में पारंगत या निष्णात होना ही पर्याप्त नहीं होता है। उच्च-गुणवत्ता के भाषांतरण के लिए, ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो सामान्य भाषांतरण की चुनौतियों से अच्छी तरह परिचित हो और प्रशिक्षित हो तथा उसे इस कार्य का लंबा अनुभव हो।