भाषा के दो पक्ष होते हैं – पहला अभिव्यक्ति पक्ष और दूसरा कथ्य पक्ष । कथ्य पक्ष को हम भाषा का व्याकरण भी कहते हैं और इसके अंतर्गत हम रूपविज्ञान, पदविज्ञान एवं अर्थविज्ञान का अध्ययन करते हैं। अभिव्यक्ति पक्ष में हम मौखिक एवं लिखित भाषा का अध्ययन करते हैं। मौखिक एवं लिखित भाषा की भी अपनी व्यवस्था होती है। हम जानते हैं कि भाषा मानव द्वारा उच्चारित ध्वनि का प्रयोग करती है एवं भाषा की ध्वनि भौतिक तत्व है।  

जब हम भाषा की परिभाषा देखते हैं तो पाते हैं कि भाषा में उच्चारण अवयवों से निसृत ध्वनि प्रतीक होते हैं जिनके माध्यम से आपस में विचार-विमर्श किया जाता है।  इससे दो बातें हमारे सामने स्पष्ट होती हैं- पहला भाषा में ध्वनियाँ होती हैं और दूसरा इन्हीं ध्वनियों के माध्यम से संप्रेषण भी होता है । स्वनिम ध्वनि व्यवस्था या ध्वनि संरचना की लघुतम आधारभूत इकाई है । स्वनिम भाषा की ऐसी लघुतम इकाई है जो स्वयं अर्थवान नहीं है पर रूपभेद करने में सक्षम है । ध्वनि और स्वनिम में बहुत अंतर है । ध्वनि के वैज्ञानिक अध्ययन करनेवाले विज्ञान को ध्वनिविज्ञान कहते हैं एवं स्वनिमों का अध्ययन स्वनिमविज्ञान के अंतर्गत होता है । ध्वनियों के माध्यम से विचार-विमर्श तभी संभव है अगर वे ध्वनियाँ श्रोता तक आयें और श्रोता अपने श्रवणों के माध्यम से उन्हें ग्रहण कर फिर उनका जवाब अपने उच्चारण अवयवों से उच्चारित करे ।

ध्वनि का उच्चारण मुख से किया जाता है । मानव मुख में अनेक अंग हैं जो आवश्यकतानुसार अपनी स्थिति बदलकर आवश्यक ध्वनि उत्पन्न करते हैं । ध्वनि के उच्चारण में मनुष्य जिन अवयवों की मदद लेता है उसे ध्वनि यंत्र कहा जाता है । ध्वनि के लिखित रूप को वर्ण कहा गया है ।

ध्वनि भाषा की वह लघुतम इकाई है जो सार्थक नहीं है पर आपस में संयुक्त होकर सार्थकता प्रदान करती है । यह शब्द में एक-दूसरे के स्थान पर प्रयुक्त होने की और अर्थभेद करने की क्षमता रखती है ।

जैसे:-

काम  = क् + आ + म्

नाम =  न् + आ + म्

ठीक इसी प्रकार ध्वनियों से ही शब्द बनते हैं, शब्द से पदबंध और पदबंध से उपवाक्य एवं वाक्य बनते हैं ।

ध्वनियों का वर्गीकरण

हिंदी में ध्वनियों का वर्गीकरण दो भागों में किया गया है :-

i. स्वर

ii. व्यंजन

i. स्वर(vowel) ध्वनियाँ :  पतंजलि ने स्वरों के बारे में कहा है - “स्वतो राजन्ते इति स्वरा:” अर्थात जो स्वत: उच्चारित हो वो स्वर है । उनका कथन स्वर को बखूबी व्याख्यायित करता है कि जिन ध्वनियों का उच्चारण अन्य किसी ध्वनियों की सहायता के बिना किया जाए, वे ही स्वर हैं । जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय साँस, कंठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए हवा निकलती है, उन्हें ‘स्वर’ कहा जाता है । स्वर की वैज्ञानिक परिभाषा इस प्रकार से है – “जिन ध्वनियों के उच्चारण में  मुख विवरण में कोई अवरोध न हो, उसे स्वर कहते हैं।”

स्वर मात्रा के प्रतीक होते हैं। हिंदी में कुल मूल स्वरों की संख्या 10 है:-

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ और औ

अ / ə /

आ / ɑ: /

इ / i /

ई / i: /

उ / u /

ऊ / u: /

ए / ei /

ऐ / æ: /

ओ / o: /

औ / ɔ: /

संस्कृत में इन स्वरों के आलावा ऋ, एवं लृ स्वरों की उपस्थिति थी और है भी पर इन ध्वनियों में स्वर एवं व्यंजन संयुक्त रूप से विद्यमान है। इसी प्रकार अं, अ: को भी स्वर माना गया है पर ‘अं’ ध्वनि को अनुनासिक ध्वनि के अंतर्गत माना जाता है। ‘अ:’ में ह की उपस्थिति है अत: यह ध्वनि भी स्वर की श्रेणी में नहीं आती।

स्वर ध्वनियों का वर्गीकरण :-

स्वर ध्वनियों के वर्गीकरण के मुख्यत: चार आधार हैं :-

1. जिह्वा की ऊँचाई

2. जिह्वा की स्थिति

3. होंठों की आकृति

4. मात्रा की दृष्टि से

1. जिह्वा की ऊँचाई : जिह्वा की ऊँचाई के आधार पर हम स्वरों को पांच निम्नलिखित  वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-

i. विवृत (open) : 

ii. अर्धविवृत (half-open): ऐ, औ

iii. बीच का (विवृत और अर्धविवृत के बीच का) (between open and half-open): 

iv. अर्धसंवृत (half-closed): ए, ओ

v. संवृत (closed): इ, ई, उ और ऊ

2. जिह्वा की स्थिति :  जिह्वा की स्थिति या भाग में हम देखते हैं कि जिह्वा का कौन सा भाग उठा हुआ है । जिह्वा की स्थिति के आधार पर हम स्वरों को तीन वर्गों में विभाजित करते हैं-

i. अग्रस्वर (front vowel): किसी स्वर के उच्चारण में यदि जिह्वा आगे की ओर होती है तब अग्रस्वर कहलाता है । जैसे-  इ, ई, ए, ऐ

ii. मध्यस्वर (mid vowel): किसी स्वर के उच्चारण में यदि जिह्वा मध्य में होती है तब मध्यस्वर कहलाता है । जैसे-  

iii. पश्च या पश्व स्वर (back vowel): किसी स्वर के उच्चारण में यदि जिह्वा पीछे के भाग में जाती है तब वह स्वर पश्च या पश्व स्वर कहलाता है ।

जैसे-  उ, ऊ, औ, आ

3. होंठों की आकृति : होंठों की आकृति के आधार पर हम स्वरों को निम्लिखित वर्गों में विभाजित करते हैं-

i. अगोलीय या प्रसृत (खुले होंठ) (unrounded): इ, ई, ए, ऐ

ii. गोलीय या वर्तुल (rounded): उ, ऊ, ओ, औ

iii. अर्ध-वर्तुल (semi-rounded): अ, आ

4. मात्रा की दृष्टि से : मात्रा की दृष्टि से हम स्वरों को मुख्य भागों में बांटते हैं:

i. ह्रस्व स्वर – अ, इ, उ

ii. दीर्घ स्वर – आ, ई, ऊ,  , ऐ,   और 

हिंदी की सभी स्वर ध्वनियाँ आक्षरिक होती हैं।

सभी भाषाओं के स्वरों का वैज्ञानिक वर्गीकरण और उनके IPA वर्णाक्षर निम्नलिखित सारणी में दर्शाया गया है-

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