दुभाषिया कर्म से तात्पर्य ‘भाषांतरण’ है। दुभाषिया का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जो कम-से-कम दो भाषाएँ जनता हो। दुभाषिया एक भाषा के संदेश को दूसरी भाषा में मौखिक रूप से संप्रेषित करने में कुशल होता है। वैसे तो दुभाषिए के लिए दोनों भाषाओं – स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा- का ज्ञान एवं संप्रेषण क्षमता बराबर होनी चाहिए ताकि वह उन दोनों भाषाओं में परस्पर भाषांतरण का कार्य कर सके। किंतु, हम जानते हैं कि व्यक्ति किसी भी संदेश को सबसे बेहतर तरीके से अपनी मातृभाषा या प्रथम भाषा में व्यक्त कर सकता है, इसलिए दुभाषिए के लिए अधिमानित या मुख्य (preferred) लक्ष्य भाषा हमेशा उसकी मातृ भाषा या प्रथम भाषा होती है। स्रोत भाषा पर यदि थोडा कम भी अधिकार हो तो शायद बहुत कठिन नहीं होगा लेकिन लक्ष्य भाषा पर उसका पूरा अधिकार होना चाहिए। स्रोत भाषा वह भाषा होती है जिस भाषा से भाषांतरण अथवा मौखिक अनुवाद का कार्य किया जाता है एवं लक्ष्य भाषा से हमारा तात्पर्य उस भाषा से है जिस भाषा में हम भाषांतरण का कार्य करते हैं।
दृष्टांत के लिए, यदि ‘I am
going to market’ का भाषांतरण ‘मैं बाज़ार जा रहा/रही हूँ।’ हो तो
यहाँ स्रोत भाषा अंग्रेजी है और जिस भाषा में भाषांतरण का कार्य संपन्न हो रहा है
अर्थात लक्ष्य भाषा हिंदी है।
चूँकि भाषांतरण का कार्य दुभाषिए द्वारा संपन्न
होता है इसलिए ‘भाषांतरण’ को ‘दुभाषिया कर्म’ भी कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में भाषांतरण के लिए ‘interpretation’ शब्द का प्रयोग होता है।
‘interpretation’ शब्द के लिए हिंदी भाषा
में कई शब्द प्रचलित हैं, यथा- निर्वचन, व्याख्या, टीका,
भावार्थ, भाष्य, आशु अनुवाद, मौखिक अनुवाद इत्यादि।
किंतु, किन्हीं दो भाषाओं के मध्य मौखिक अनुवाद के लिए ‘भाषांतरण’ एवं ‘आशु अनुवाद’
शब्द ही प्रचलित हैं।