दुभाषिया कर्म विश्व के सबसे चुनौती पूर्ण कार्यों में से एक है। विश्व के सभी देश एक-दूसरे से पहले से कहीं अधिक करीब आ चुके हैं। विभिन्न राष्ट्रों के मध्य आपसी व्यापार एवं संवाद में पूर्व से कहीं ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट एवं संवाद के अन्य नवाचारी साधनों से आपसी संवाद में तीव्रता आई है। पहले से कहीं अधिक एक-दूसरे पर निर्भरता हो गई है; ऊर्जा के संसाधन किसी देश के पास है तो तकनीक में कोई अन्य देश विकसित है, कृषि में कोई और राष्ट्र आगे है तो कुशल मानव संसाधन में कोई भिन्न देश समृद्ध है। इस प्रकार, हर राष्ट्र का अपना भौगोलिक-ऐतिहासिक अथवा रणनीतिक, व्यापारिक एवं सामरिक महत्व है। इस स्थिति में विश्व के सभी देशों के मध्य आपसी संवाद का होना पहले से कहीं ज्यादा आवश्यक है। विभिन्न देशों की अपनी भाषाएँ हैं अतः उनके मध्य परस्पर संवाद हेतु ‘भाषांतरण’ या ‘दुभाषिया कर्म’ आवश्यक है। यथा, भारत जैसे राष्ट्र को ऊर्जा- पेट्रोल, डीजल, गैस आदि- के लिए अन्य देशों से आयात करना पड़ता है, इस हेतु उन देशों से संवाद करने के लिए हमें दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है। राजनयिक संबंधों को भी बनाए रखने और बेहतरी के लिए दुभाषिए की आवश्यकता पड़ती है। यह संभव नहीं है कि एक राष्ट्र का राष्ट्राध्यक्ष – प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति – अन्य देशों की सभी भाषाओं पर महारत हासिल कर ले। राष्ट्राध्यक्षों एवं राजनयिकों को दूसरे देश के समकक्ष से बातचीत हेतु दुभाषिए की जरूरत अवश्य पड़ती है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों अथवा मंचों पर भी आपसी संवाद हेतु दुभाषिए अनिवार्य हैं।
हम
जानते हैं कि भारत एक बहुभाषिक राष्ट्र है जहाँ लगभग 2000 अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं और
संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ कार्यालयी भाषा के रूप में दर्ज हैं।
हिंदी और अंग्रेजी संघ की राजकीय भाषा के रूप में कार्यरत हैं तो विभिन्न राज्यों
की अपनी-अपनी भाषाएँ हैं। यहाँ तक कि कई राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ है।
संघ एवं राज्यों के मध्य आपसी संवाद, एक
राज्य का दूसरे राज्य से संवाद हेतु भाषांतरण की आवश्यकता है। यदि उत्तर भारत का
कोई राजनेता दक्षिण भारत के किसी राज्य में भाषण अथवा लोगों के बीच बोलने के लिए
जाता है तो उसे दुभाषिए की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। चुनावी रैली या सभा हो या को
कार्यालयी बैठक यदि यह दो भिन्न भाषा-भाषी लोगों के मध्य है तो वहाँ भाषांतरण की
अनिवार्यता निःसंदेह है। अन्य देशों की
अपेक्षा भारत में दुभाषिया कर्म की आवश्यकता अधिक है क्योंकि अन्य देशों में
राजकीय भाषा प्रायः एक ही होती है और उनका निर्माण भी भाषा के आधार पर हुआ है।