शब्दार्थ, ध्वन्यार्थ और पाठ संदर्भित अर्थ
शब्दार्थ, ध्वन्यार्थ और पाठ संदर्भित अर्थ का अन्वेषण हर अनुवादक का प्राथमिक उद्देश्य होता है। अनुवाद करते समय शब्दों के अर्थों की आवश्यकता तो होती ही है लेकिन केवल शब्दार्थ से अनुवाद का कार्य अच्छी तरह संपन्न नहीं हो सकता। अनुवाद में ध्वन्यार्थ की भी अपनी महत्ता है। ध्वन्यार्थ वह अर्थ है जिसका बोध वच्यार्थ से न होकर केवल ध्वनि य़ा व्यंजना से होता है। भाषा में अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना- तीनों शब्द शक्तियों से पोषित ध्वन्यार्थ छिपे रहते हैं। इनको अच्छी तरह से समझना तथा उसे लक्ष्य भाषा में समतुल्य ध्वन्यार्थ से संप्रेषित करना ही अनुवादक का कर्तव्य है। प्रयुक्ति के बाद शब्दों की अपनी भूमिका और स्वायत्तता गौण हो जाती है, उसका पाठ सम्मत अर्थ महत्वपूर्ण हो जाता है। पाठ संदर्भित अर्थ भी अनुवाद के लिए बहुत उपयोगी एवं जरूरी होता है। एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं, कौन-सा शब्द कहाँ प्रयोग होगा यह बिना संदर्भ को समझे-जाने नहीं बताया जा सकता। अंत: एक कुशल अनुवाद के लिए शब्दार्थ, ध्वन्यार्थ और पाठ संदर्भित अर्थ तीनों ही बहुत महत्वपूर्ण हैं।