लोकोक्तियों एवं मुहावरों के अनुवाद में आने वाली समस्या
भाषा में प्रभाव और चारुता उत्पन्न करने की
मंशा से लोकोक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग होता है। लोकोक्तियों का संबंध हमारे
लोक-जीवन से होता है। ये लोगों के दैनिक जीवन में व्यवहार में लाई जाती हैं। इसलिए
लोकोक्तियों के शब्द और अर्थ में भेद नहीं होता है। लेकिन ये लोक जीवन के अनुभवों
एवं उनकी संस्कृति से जुड़ी होती हैं। मुहावरों की मुख्य रूप से दो विशेषताएँ होती
हैं; पहली विशेषता यह है कि उनमें चित्रात्मकता होती है एवं दूसरी कि उनका शाब्दिक
अर्थ से भिन्न अर्थ होता है। कई बार मुहावरों एवं लोकोक्तियों में भेद करना
मुश्किल होता है।
लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे भाषा के अनुभव मूलक प्रयोग पर आधारित होते हैं। इसलिए इनका प्रयोग औपचारिक भाषा की अपेक्षा संवेदनापरक भाषा अधिक होता है। साहित्य एवं पत्रकारिता में इनका प्रयोग अधिक होता है। लोकोक्तियों एवं मुहावरों के शब्दश: अनुवाद करने से मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। इसके लिए अनुवादक को दो भाषाओं (स्रोत एवं लक्ष्य भाषा) का उचित ज्ञान होना चाहिए। शब्दश: अनुवाद अनुवाद के बदले भावानुवाद को स्थान देना चाहिए। भावानुवाद की प्रक्रिया में अर्थ के अनुरूप मुहावरों की तलाश की जाती है। इसमें शब्द हूबहू समान नहीं होते लेकिन व्यंजना समान भावों की होती है। अगर स्रोत भाषा की लोकोक्ति या मुहावरे का समतुल्य कोई लोकोक्ति या मुहावरा लक्ष्य भाषा में हो तो उसका प्रयोग अनुवाद कर्म के लिए करना चाहिए। कई बार एक मुहावरे के लिए लक्ष्य भाषा में कई मुहावरे होते हैं; जैसे ‘To leave no stone unturned’ का हिंदी में कई अनुवाद संभव है जैसे – एड़ी चोटी का जोर लगाना, खून पसीना एक करना, जमीन आसमान एक करना, आकाश पाताल एक करना आदि। इस स्थिति में संदर्भ के अनुसार मुहावरों का चयन जरूरी है। इससे अनुवाद में स्रोत भाषा की भांति लक्ष्य भाषा में भी चित्रात्मकता का बोध होता है तथा अनुवाद सजीव एवं संप्रेषणीय बन जाता है। यह कार्य उतना सरल नहीं है क्योंकि इसके लिए अनुवादक को दोनों भाषाओं पर महारत हासिल करनी होती है एवं दोनों संस्कृतियों के लोक जीवन एवं साहित्य से परिचय अपरिहार्य है। इनके अनुवाद में अनुवादक को लोकोक्तियों एवं मुहावरों के शब्दार्थ, ध्वन्यार्थ और पाठ संदर्भित अर्थ को भी ध्यान में रखकर अनुवाद करना होता है।