अनुवादक की अनुवाद दृष्टि एवं भाषिक दायित्व
अनुवाद कर्म में अनुवादक की अनुवाद दृष्टि बहुत
महत्वपूर्ण होती है। इस दृष्टि से ही अनुवादक अनुवाद के लिए पाठ का चयन करता है
तथा इसी से ही अनुवाद का उद्देश्य, अनुवाद की विधि, अनुवाद का भाषिक रूप
तय होता है। अनुवादक को प्रगतिशील साहित्य लेना है या रामायण/महाभारत से जुड़े
पाठों का अनुवाद करना है, यह सब कुछ उसकी अनुवाद दृष्टि ही तय करती है। वह इसी
आधार पर अपनी पुनर्रचना का भाषा-फलक और रूप-विधान निर्धारित करता है। इसी प्रकार
अगर कोई प्रकाशक कोई कृति का अनुवाद करना चाहता है तो उसके लिए व्यावसायिक लाभ एवं
हित सर्वोपरि होते हैं। ब्रिटिश उपनिवेश
काल के दौरान हुए अनुवादों की एक विशेष प्रकार की अनुवाद दृष्टि थी जिस अनुवाद का
उद्देश्य खुद को बेहतर और भारतीय मानसिकता को समझने का प्रयास था। ब्रिटिश
विद्वानों ने इसी अनुवाद दृष्टि से भारतीय ग्रंथों का अनुवाद किया था। बाद में
उनके विरोध में भारतीय विद्वानों ने उन्हीं ग्रंथों का भारतीय अनुवाद दृष्टि से
अनुवाद किया। अनुवाद दृष्टि अनुवाद की प्रक्रिया में अनुवादक का कदम-कदम पर दिशा
निर्देश करती रहती हैं। इस प्रकार, अनुवाद के कार्य में
‘अनुवाद-दृष्टि’ जैसा मूल्य-बोधित पद बड़ी अहम भूमिका का निर्वहन करता है। अनुवाद
दृष्टि पद अनुवादक के संपूर्ण वैचारिक अस्तित्व को रेखांकित करता है।
भाषिक दायित्व मनुष्य मात्र विशेषकर अनुवादक के लिए अत्यधिक अर्थगर्भित है। हर भाषा की अपनी प्रकृति होती है अंत: अनुवादक का दायित्व है कि स्रोत भाषा की प्रकृति के अनुसार ही अनुवाद कार्य को करें। अनुवाद की भाषा जितनी सरल एवं बोधगम्य होगी, अनुवाद उतना ही पठनीय एवं संप्रेषणीय होगा। अनुवादक का भाषिक दायित्व है कि वह स्रोत भाषा के कठिन से कठिन और लंबे वाक्यों को लक्ष्य भाषा में छोटे एवं सरल वाक्यों से व्यक्त करे। वह लक्ष्य भाषा की संस्कृति के अनुसार ही शब्दावलियों का चयन करे। उसे स्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा में कथ्य को समाना रखते हुए एक सामंजस्य बैठना पड़ता है।