तीसरी कसम
(फिल्म समीक्षा – हिंदी शिक्षण)
तीसरी कसम फिल्म पहली बार सन्
1966 में प्रदर्शित हुई। फिल्म का निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया है।/ फिल्म के निर्देशक बासु भट्टाचार्य हैं। यह फिल्म
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की प्रसिद्ध कहानी ‘तीसरी कसम’ पर आधारित है। इस फिल्म की पटकथा का लेखन नाबेन्दू घोष ने किया है।/ नाबेन्दू
घोष ने इस फिल्म की पटकथा लिखी है। फिल्म में संगीत देने का कार्य शंकर-जयकिशन ने किया है। फिल्म के
गीतकार शैलेन्द्र हैं, जो फिल्म के निर्माता भी हैं। फिल्म
में मुख्य अभिनेता के तौर पर राज कपूर एवं अभिनेत्री के तौर पर वहीदा रहमान ने काम
किया है। / फिल्म के मुख्य अभिनेता राज कपूर हैं एवं अभिनेत्री वहीदा रहमान
हैं।
फिल्म
के पात्र हिरामन और हिराबाई हैं। हिरामन एक बैलगाड़ी चालक है और हिराबाई एक अभिनेत्री एवं नर्तकी है। फिल्म में हिरामन
तीन कसम/कसमें खाता है। पहली कसम है
कि वह अपनी बैलगाड़ी में अवैध/गैर-कानूनी
सामान नहीं ढोएगा। दूसरी कसम वह लेता है कि वह भविष्य में कभी भी बाँस की लदनी
नहीं लेगा। तीसरी कसम वह खाता है कि वह कभी भी नर्तकियों को अपनी गाड़ी में नहीं
बैठाएगा। यह फिल्म मुख्यत: ‘तीसरी कसम’ के बारे में है।
यह फिल्म एक प्रेम कहानी है। फिल्म
में हिरामन और हिराबाई एक-दूसरे को पसंद करते /
चाहते हैं, किंतु वे इसका इजहार/व्यक्त नहीं कर
पाते हैं। इसके पीछे का कारण उस समय का समाज भी है जहाँ नर्तकियों को सम्मान की
नजर से नहीं देखा जाता था। हिरामन यह बात जानता था और हिराबाई को भी मालूम था कि
उसे समाज एक पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। दोनों समाज के कारण मजबूर/ विवश/ लाचार/ निःसहाय / असहाय हैं। हिराबाई बड़े
शहर की एक डांस कंपनी से भागी हुई है इसलिए पुलिस उसे ढूंढ रही है। वह अंत में
हिरामन एवं मेले को छोड़कर वापस शहर चली जाती है। उसी समय वह तीसरी कसम खाता है।
मुझे
यह फिल्म पसंद है क्योंकि फिल्म का संगीत और नृत्य अच्छा है। मुझे प्रेम कहानियाँ बहुत पसंद है। फिल्म का प्रिंट पुराना
है इसलिए कई चीजें स्पष्ट नहीं दिखती हैं। फिल्म यदि रंगीन होती तो और अच्छा लगता।