भारत में अनुवाद प्रशिक्षण की आवश्यकता
भारत में अनुवाद प्रशिक्षण की अपरिहार्य आवश्यकता है।
भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है और जब पूरी दुनिया आधुनिकता के इस दौर में एक-दूसरे के
और करीब आ चुकी है और आपस में भाषाई लेन-देन बढ़ चुका है। इन परिस्थितियों में
अनुवाद की महत्ता पहले से कहीं अधिक बढ़ गयी है और इसीलिए अनुवाद प्रशिक्षण
अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है। अनुवाद प्रशिक्षण की आवश्यकता एवं व्यवस्था पर
विस्तृत चर्चा करने से पहले हमारा यह जानना भी अपरिहार्य है कि अनुवाद प्रशिक्षण
क्या है।
‘शिक्षण’ शब्द में
‘प्र’ उपसर्ग लगने से ‘प्रशिक्षण’ शब्द बना है। ‘प्र’ उपसर्ग उत्कर्ष, उत्कृष्ट, अतिशय, आगे, अधिक, गति, या, उत्पत्ति, व्यवहार
आदि अर्थों में प्रयोग होता है। इस प्रकार, व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘प्रशिक्षण’ शब्द ‘अधिक या अतिशय शिक्षण’ को दर्शाता है। वास्तव में यह शिक्षण की उत्कृष्टता को
प्रदर्शित करता है। ‘प्रशिक्षण’ का सामान्य एवं व्यवहारिक अर्थ है – किसी कार्य को करने से संबंधित ज्ञान, अभ्यास, निपुणता/योग्यता
को व्यवस्थित ढंग से एवं क्रमबद्ध तरीके से सीखना-सिखाना। अर्थात प्रशिक्षण का
अर्थ ज्ञान एवं कौशल अर्जित करने से है। इस तरह प्रशिक्षण को किसी निश्चित
उद्देश्य की पूर्ति के लिए ज्ञान, कौशल एवं
उसका व्यावहारिक प्रयोग सीखने की एक संगठित एवं सुव्यवस्थित प्रक्रिया कहा जा सकता
है। अनुवाद प्रशिक्षण से तात्पर्य अनुवाद क्या है एवं इसकी क्या-क्या संकल्पनाएँ
हैं सीखना नहीं है बल्कि विभिन्न अनुवाद किस प्रकार संपादित होते हैं उनका
व्यावहारिक ज्ञान अर्जित करना है। अनुवाद प्रशिक्षण से अनुवादक की अनुवाद क्षमता
एवं कौशल में उन्नयन होता है।
अनुवाद प्रशिक्षण की आवश्यकता इसलिए है कि व्यक्ति कम
समय एवं उचित प्रयास से प्रशिक्षण के माध्यम से कुशल अनुवादक बन सकता है। आज भारत
ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में दुभाषिये एवं अनुवादकों की मांग बहुत अधिक है। कार्य
करने से कुशलता आती है अर्थात कुछ लोग मानते हैं कि अनुवाद करते-करते व्यक्ति कुशल
अनुवादक अपने अनुवाद अनुभव से बन ही जाता है लेकिन इस प्रक्रिया में काफी समय लगता
है। अनुवाद प्रशिक्षण अनुभवी विशेषज्ञों की मदद से संपन्न कराया जाता है। जो
समस्या अनुवादक कई वर्षों में देखेगा वह विशेषज्ञों के अनुभव से सीख सकता है तथा उन
समस्याओं का निस्तारण कैसे हो इसका भी संभव उत्तर जान पाता है। मनुष्य दूसरों
अर्थात पूर्व के अनुभवों से सीखता है। अनुवादक भी पूर्व के अनुवादकों से सीख सकता
है और कार्य कुशल बन सकता है। इससे उसके जीवन के कई वर्ष बच जाएँगे और वह
पूर्ववर्ती कार्य को आगे बढ़ा सकता है।
भारत में अनुवाद प्रशिक्षण 20वीं सदी के अंतिम वर्षों में शुरू हुआ है। केंद्रीय
अनुवाद ब्यूरो अपने कई अनुवाद प्रशिक्षण कार्यशाला संचालित करता है। इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) का इस
दिशा में काफी सराहनीय प्रयास रहा है। अनुवाद को स्वतंत्र अध्ययन का क्षेत्र मानते
हुए विश्वविद्यालय ने सन् 2007 में ‘अनुवाद अध्ययन एवं प्रशिक्षण विद्यापीठ’ की स्थापना की। सन् 2009 से विद्यापीठ में पूर्णकालिक अनुवाद प्रशिक्षण एवं ‘अनुवाद अध्ययन में एम। ए।’ की पढ़ाई शुरू हुई और अब दूर शिक्षा से भी इस कार्यक्रम
का संचालन होता है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (MGAHV), वर्धा का भी इसमें उल्लेखनीय योगदान रहा है
तथा अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ सन् 2003 से ही अनुवाद में प्रशिक्षण एवं अनुवाद में एम.ए. कार्यक्रम का सफल संचालन
कर रहा है। भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages) के अंतर्गत भारतीय अनुवाद मिशन का भी अहम
योगदान है तथा इसके अंतर्गत सन् 3013 से
अनुवाद प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न
विश्वविद्यालयों के कई पाठ्यक्रमों जैसे एम. ए. हिंदी, अंग्रेजी, भाषाविज्ञान
आदि में अनुवाद एक पाठ्यचर्या के रूप में शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त
विभिन्न विश्विद्यालयों में इसके सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी चलाये जा
रहे हैं। हालाँकि वर्तमान व्यवस्था मांग एवं गुणवत्ता के अनुसार पर्याप्त नहीं है।
इस दिशा में और कार्य करने की जरूरत है।
नई शिक्षा नीति 2019 के अंतर्गत भी अनुवाद को बढ़ावा देने की
सिफ़ारिश की गयी है तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की तर्ज पर ‘भारतीय अनुवाद एवं निर्वचन संस्थान’ (Indian Institute of Translation and
Interpretation) की स्थापना
की बात करता है (P.4.8.4)। नई शिक्षा नीति में अनुवाद के प्रशिक्षण
पर बहुत महत्व दिया गया है और हम आशा करते हैं कि भविष्य में अनुवाद प्रशिक्षण
हेतु अन्य कई विश्वविद्यालय एवं संस्थान स्थापित किये जाएँगे तथा अन्य
विश्वविद्यालयों में भी अलग से इसके लिए पाठ्यक्रम शुरू किये जाएँगे।