अनुवाद के विभिन्न चरण (विभिन्न अनुवाद प्रक्रिया)
(Different Stages of Translating)
अनुवाद प्रक्रिया अनुवाद को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
अनुवाद प्रक्रिया के कई विभिन्न प्रारूप हैं; लेकिन इनमें से नाइडा, न्यूमार्क एवं बाथगेट के अनुवाद प्रारूप प्रमुख हैं, जिनकी चर्चा हम आगे
करेंगे।
1. नाइडा द्वारा प्रतिपादित अनुवाद की प्रक्रिया
सर्वप्रथम हम यूजीन नाइडा द्वारा दिए गए प्रारूप को देखेंगे। नाइडा
(1974) अनुवाद प्रक्रिया के तीन चरण/सोपान मानते हैं
:
i)
विश्लेषण (Analysis)
ii)
अंतरण (Transfer), और
iii)
पुनर्गठन (Restructuring)
नाइडा द्वारा प्रतिपादित इन तीनों चरणों को निम्नलिखित चित्र/आरेख
द्वारा समझा जा सकता है :
(आरेख : 1)
नाइडा द्वारा सुझाए गए अनुवाद प्रक्रिया के इन तीनों सोपानों में
एक निश्चित क्रमबद्धता देखने को मिलती है। अनुवादक सर्वप्रथम स्रोत भाषा के पाठ का
विश्लेषण करता है। वह मूलपाठ का विषयगत अर्थगत तथा भाषागत अर्थग्रहण करता है। इसके
लिए वह भाषा-सिद्धांत पर आधारित भाषा-विश्लेषण की तकनीकों का सही प्रयोग करता है।
मूलपाठ के संदेश का विषयगत एवं भाषागत/शैलीगत विश्लेषण के द्वारा
अर्थबोध/अर्थग्रहण हो जाने के बाद संदेश का लक्ष्य भाषा में संक्रमण/अंतरण होता है
जिसके अंतर्गत दोनों भाषाओं के बीच विभिन्न स्तरों पर परस्पर समन्वय स्थापित किया
जाता है। तीसरे चरण में, अनुवादक मूल संदेश का लक्ष्य भाषा में
पुनर्गठन/समायोजन करता है। यह इसलिए किया जाता है ताकि मूल संदेश लक्ष्य भाषा
के पाठक के लिए बोधगम्य, रोचक एवं सुस्पष्ट बन सके। संदेश
का पुनर्गठन हेतु लक्ष्य-भाषा की अभिव्यक्ति प्रणाली और कथन रीति का ध्यान रखा
जाता है तथा उसी के अनुसार अनूदित पाठ का निर्माण किया जाता है। नाइडा के मतानुसार
अनुवादक को ‘स्रोत-भाषा पाठ में निहित अर्थ या संदेश के विश्लेषण तथा लक्ष्य-भाषा
में उसके पुनर्गठन’ दो ध्रुवों के मध्य निरंतर सम्यक् और सटीक सामंजस्य स्थापित
करना होता है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही स्रोत भाषा की कोई मूल रचना
अनूदित रचना के रूप में सफल अनुवाद की श्रेणी में रखी जा सकती है।
क
ख
स्रोत-भाषा ---------अनुवादक------------लक्ष्य-भाषा
विश्लेषण.....................................अंतरण........................................पुनर्गठन
(आरेख : 2)
2. न्यूमार्क
द्वारा प्रतिपादित अनुवाद की प्रक्रिया
पीटर
न्यूमार्क की अनुवाद प्रक्रिया नाइडा की अनुवाद प्रक्रिया से अलग एवं विस्तृत है। यद्यपि नाइडा एवं न्यूमार्क
के चिंतन-काल में कुछ अंतर है, फिर भी उनमें काफी समानता देखने को मिलती है। चूँकि नाइडा
के समय में बाइबिल के ऐसे अनुवादों की अधिकता थी जो अर्थग्रहण के उद्देश्य से भाषा
की व्याकरणिक संरचना से संबंधित थे। इसलिए उनकी दृष्टि वहीं तक प्रभावित एवं सीमित
रही। न्यूमार्क ने अनुवाद
प्रक्रिया की दो स्थितियों पर प्रकाश डालते हुए मूल पाठ और अनूदित पाठ के सह संबंध
को दो स्तरों पर विभाजित करने का प्रयास किया है :
I) मूल पाठ और अनूदित पाठ का अंतरक्रमिक अनुवाद,
अर्थात् शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद, और
II) मूल पाठ का अर्थबोधन और अनूदित पाठ में उसका
अभिव्यक्तीकरण
इन दोनों
स्थितियों को निम्न आरेख से समझा जा सकता है :
आरेख-3
नाइडा ने जिस सोपान को ‘विश्लेषण’ कहा है, न्यूमार्क ने उसे ‘बोधन’ की संज्ञा दी है। न्यूमार्क द्वारा ‘बोधन’ की
संकल्पना नाइडा की ‘विश्लेषण’ संकल्पना से इस अर्थ में ज्यादा महत्वपूर्ण है कि
इसमें मूल पाठ के विश्लेषण से प्राप्त अर्थ के साथ-साथ अनुवादक द्वारा मूल पाठ की
व्याख्या का अंश भी शामिल है। नाइडा की तुलना में न्यूमार्क की अनुवाद
प्रक्रिया संबंधी संकल्पना आधुनिक, व्यापक एवं व्यावहारिक
प्रतीत होती है। इसमें न्यूमार्क स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के पाठों में अनुवाद
संबंध स्पष्ट करना चाहते हैं जो कि तुलना एवं व्यतिरेकी के संदर्भ में संभव हो
पाता है।
इसके बाद अंत में हम रोनाल्ड एच. बाथगेट (1983)
की अनुवाद प्रक्रिया के प्रारूप को देखेंगे।
3. बाथगेट
द्वारा प्रतिस्थापित अनुवाद की प्रक्रिया
नाइडा ने जहाँ अनुवाद प्रक्रिया के तीन सोपान और न्यूमार्क ने दो
चरण सुझाए हैं, वहीं बाथगेट ने अनुवाद प्रक्रिया के सात सोपानों
की चर्चा की है। इससे स्पष्ट होता है कि बाथगेट अनुवाद प्रक्रिया को एक अधिक
व्यावहारिक एवं व्यापक आयाम देना चाहते हैं। उन्होंने अपने सोपानों में नाइडा एवं
न्यूमार्क के सोपानों (विश्लेषण- संक्रमण, अंतरण-पुर्नगठन,
तथा बोधन - अभिव्यक्तीकरण) का भी समावेश कर लिया है। बाथगेट
ने अनुवाद प्रक्रिया के विभिन्न सोपान इस प्रकार दर्शाए हैं :
आरेख-4
i) समन्वय (Tuning) विश्लेषण और बोधन से पहले का सोपान है जिसमें अनुवादक स्रोत भाषा के पाठ
को जाँचता-परखता है और उसके विषय, भाषा एवं शिल्प की जानकारी
प्राप्त करता है ताकि उसका विश्लेषण करने में सुविधा रहे।
ii) विश्लेषण (Analysis) के अंतर्गत अनुवादक मूल स्रोत का भाषा एवं
विषय-वस्तु के स्तर पर विश्लेषण करता है।
iii) बोधन (Comprehension) का उद्देश्य भी विश्लेषण जैसा ही है। इसमें
विश्लेषण के साथ-साथ अनुवादक द्वारा मूल पाठ की व्याख्या का अंश भी सम्मिलित रहता
है।
iv) पारिभाषिक अभिव्यक्तीकरण (Terminology) के अंतर्गत दो उद्देश्य दिखाई देते हैं। प्रथम
मूल पाठ में निहित संदेश का अर्थ ग्रहण करने और उसे स्पष्ट करने के लिए महत्वपूर्ण
अंशों पर ध्यान देना, और दूसरे, इन
अंशों के अनुवाद पर्यायों के निर्धारण में विशेष सतर्कता बरतना।
v) पुनर्गठन (Restructuring) में स्रोत भाषा की सामग्री को लक्ष्य भाषा में
संप्रेषित करने के लिए उसका पुनर्गठन किया जाता है। यह पुनर्गठन लक्ष्य भाषा की
प्रकृति को ध्यान में रखते हुए और लक्ष्य भाषा पाठक को ध्यान में रखते हुए किया
जाता है ताकि पाठक को किसी भी स्तर पर समस्या का सामना न करना पड़े।
vi) पुनरीक्षण (Proofreading) के सोपान पर पहुँचने के बाद अनूदित पाठ की
पूर्णरूपेण जाँच-पड़ताल की जाती है और विभिन्न प्रकार की अशुद्धियों को दूर किया
जाता है।
vii) पर्यालोचन (Discussion) अंतिम सोपान है जिसमें विषयगत प्रमाणिकता को
परखा जाता है। यह अनुवाद का प्रक्रियात्मक चरण न होकर अनुवाद विमर्श का चरण है।
इसके लिए अनुवादक उस विषय के विशेषज्ञ से परामर्श कर सकता है।
इस प्रकार, बाथगेट
ने विस्तारपूर्वक से अनुवाद प्रक्रिया की अवधारणा प्रस्तुत की।
©
डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र / Dr. Sriniket Kumar Mishra
सहायक प्रोफेसर / Assistant Professor
अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ, / School of Translation
and Interpretation
म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा
/ MGAHV, Wardha