शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

अनुवाद की पश्चिमी परंपरा या भारतेतर परंपरा का प्राचीन काल

अनुवाद की पश्चिमी परंपरा या भारतेतर परंपरा का प्राचीन काल 


अध्ययन की दृष्टि से हम पश्चिमी अनुवाद की परंपरा को मुख्यतः तीन काल खंडों में विभाजित कर सकते हैं – (i)प्राचीन काल, (ii) मध्यकाल एवं (iii) आधुनिक काल

प्राचीन काल को हम पाँचवीं शताब्दी तक मान सकते हैं, जहाँ संत जेरोम का उल्लेख होता है। मध्यकाल को छठी शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक माना गया है। आधुनिक काल का आरंभ पुनर्जागरण काल से माना गया है। इस पाठ में हम पश्चिमी अनुवाद परंपरा के प्राचीन काल का अवलोकन करेंगे।

पश्चिम में भी अनुवाद समाज का एक आवश्यक पहलू रहा है। लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में जैसे मिस्र, सुमेर, बेबीलोन, हित्ती आदि में अनुवाद के प्रारंभिक स्रोत देखे जा सकते हैं। प्राचीन सुमेर की मिट्टी की मुद्राओं पर अनुवादकों का उल्लेख मिलता है।

प्रशासनिक तौर पर अनुवाद का सबसे प्राचीन साक्ष्य लगभग 2100 ईसा पूर्व हमें बेबीलोन के राजा ह्म्मुराबी के यहाँ मिलता है। यहाँ कई भाषाओं का प्रचलन था। प्रशासनिक कार्यों हेतु राजभाषा के अतिरिक्त अन्य भाषाओं का भी प्रयोग होता था।

आनखुरमेस को संसार का सबसे पुराना अनुवादक माना जाता है। वह मिस्र का रहने वाला था और तिनिस का मुख्य पुरोहित भी था। इनका काल ईसा पूर्व 14वीं शताब्दी माना जाता है।

प्राचीन ग्रीक में दूसरी भाषाओं से अनुवाद के साक्ष्य नहीं मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन यूनान के लोग अपने से भिन्न अन्य लोगों को ‘बर्बर समझते थे और ‘बर्बर लोगों की भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान से उन्हें कोई विशेष लगाव नहीं था। लेकिन, व्यापारिक एवं अन्य जरूरतों के लिए वे अनुवादकों या दुभाषियों की सहायता लेते थे क्योंकि अनुवाद के बिना ग्रीस से बाहर किसी भी तरह का व्यापार संभव नहीं था।

अनुवाद विद्या और अनुवाद सिद्धांत के विकास में बाइबिल के अनुवाद की विशेष भूमिका है। बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के पहले पांच अंशों का हिब्रू से ग्रीक भाषा में अनुवाद का प्रयास किया गया, इस अनुवाद को सेप्तुआगिन्त के नाम से जानते हैं। यह अनुवाद 300 ईसा पूर्व के आस-पास किया गया था। यह अनुवाद 72 अनुवादकों का सम्मिलित प्रयास था जिसे 72 दोनों में पूरा किया गया था। यह अनुवाद बाइबिल का स्वछंद अनुवाद माना जाता है क्योंकि इस अनुवाद में काफी छूट ली गयी थी। यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि इस समय तक इसाई धर्म स्थापित नहीं हुआ था। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अनुवाद एक सामूहिक एवं सम्मिलित प्रयास था एवं यह एक धार्मिक ग्रंथ का स्वछंद अनुवाद था। आगे चलकर इस अनुवाद ने बाइबिल के अन्य अनुवादों के लिए आधार एवं मार्गदर्शक का कार्य किया। लैटिन में बाइबिल का पहला अनुवाद भी सेप्तुआगिन्त के आधार पर ही हुआ। प्राचीन काल में यूरोप में कैथोलिक प्रर्थानाओं में इसी का उपयोग होता रहा था।

यहाँ हम रोसेटा प्रस्तर या अभिलेख का उल्लेख कर सकते हैं। इसकी ख़ोज सन 1799 में मिस्र के नील नदी के मुहाने पर हुआ। इसमें तीन लिपियों का जिक्र है तथा इसका समय ईसा पूर्व 196 माना गया है। यह एक पुरातात्विक साक्ष्य है और इसका उल्लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसमें प्राचीन मिस्र की हेरोग्लोफिक एवं देमोतिक लिपि है और साथ ही इसमें नीचे की तरफ प्राचीन ग्रीक लिखी गयी है। इस प्रकार एक ही प्रस्तर पर तीन लिपियों का प्रयोग हुआ है। यह आज ब्रिटिश संग्रहालय में संरक्षित है।

चित्र :

ग्रीक सभ्यता के उपरांत, रोमन काल में अनुवाद की महत्ता काफी बढ़ गयी तथा यहाँ से ग्रीक की कई कृतियों का लैटिन भाषा में अनुवाद हुआ। रोमन साम्राज्य की विजय के उपरांत ग्रीक एवं लैटिन भाषा में काफी कार्य हुए। प्राचीन रोम में पुल्बिउस तेरेंसियस आफ़ेर,  जिन्हें टेरेंस के नाम से जानते हैं, ये एक विशिष्ट अनुवादक थे। इनका काल ईसा पूर्व 190-159 था। माना जाता है कि इन्होंने लगभग 100 ग्रीक भाषा के हास्य नाटकों का लोक प्रचलित लैटिन में अनुवाद किया था मगर आज इनके मात्र छः नाटक ही उपलब्ध हैं। इनकी प्रशंसा बाद में जुलिअस सीज़र ने भी की है।

ग्रीक से लैटिन में अनुवाद करने वाले अनुवादकों में आंद्रोनिकुस, पलाऊतुस, एनीउस, कैटलस, सीसेन्ना का नाम उल्लेखनीय है। आंद्रोनिकुस ने ग्रीक से लैटिन में कई ग्रंथों के अनुवाद किया जिसमें से उनके द्वारा होमर के ओडिसी का अनुवाद विशेष रूप से उल्लेखनीय है। लगभग 200 वर्षों तक यह अनुवाद रोम के विद्यालयों में अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता था। यह एक अनुवाद न होकर रूपांतरण था और अनुवादक ने यूनानी परिवेश को रोमन परिवेश में ढाल दिया था।

प्राचीन रोम में एक और नाम विशेष उल्लेखनीय है और वह है सिसेरो, इन्हें किकेरो या चिचेरो के नाम से भी जाना जाता है। इनका पूरा नाम मार्कुस तुलिउस किकेरो था। इनका समय ईसा पूर्व 106 से 43 ईस्वी तक माना जाता है। किकेरो प्रसिद्ध वक्ता, दार्शनिक एवं राजनेता थे। कहा जाता है कि इन्होंने ग्रीक से लैटिन में पहला अनुवाद मात्र 16 वर्ष की आयु में की थी। इन्होंने प्लेटो एवं डेमोस्थनीज की कृतियों का लैटिन में अनुवाद किया था। इनके अनुसार स्रोत भाषा की रचना का अर्थ ग्रहण करके उसे लक्ष्य भाषा में व्यक्त करना चाहिए। रचना का शब्दशः अनुवाद अनुवादक की अक्षमता का द्योतक होता है। इससे अनुवाद भाषा की दरिद्रता भी प्रदर्शित होती है। इनके अनुसार अनुवाद में पाठक या स्रोता को भी ध्यान में रखना चाहिए।

इसके बाद संत जेरोम का नाम बाइबिल के अनुवादक एवं अनुवाद चिंतक के रूप में प्रसिद्ध है। प्राचीन काल के अंतिम शताब्दी में अनुवादकों की सूची में संत जेरोम का नाम सबसे महत्वपूर्ण है। इनका काल 345-420 ईस्वी था।



30 सितंबर – अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस

इन्होंने वुल्गाता नाम से ओल्ड टेस्टामेंट का लैटिन में अनुवाद करने का प्रमुख कार्य किया। इस अनुवाद के लिए वे जेरुशेलम भी गए तथा वहाँ इन्होंने हिब्रू भाषा के अपने ज्ञान को परिमार्जित किया। यूरोप में इसाई धर्म का प्रचार-प्रसार लैटिन भाषा के माध्यम से ही हुआ और इसमें संत जेरोम का योगदान बहुत उल्लेखनीय है। रोमन कैथोलिक चर्च में इनके इस अनुवाद की मान्यता अभी तक बनी हुई है। इन्होंने शब्दानुवाद से बेहतर अर्थानुवाद को कहा है। लेकिन शब्दानुवाद का भी अपना महत्व है। संत जेरोम का जन्मदिन 30 सितंबर को माना जाता है और इसी के उपलक्ष्य में सन 1991 से 30 सितंबर को प्रत्येक वर्ष अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 

संदर्भ ग्रंथ :

गोपीनाथन, जी. (1990). अनुवाद : सिद्धांत एवं प्रयोग. प्रयाग : लोकभारती.

जेरोम, सं. (2004). ‘Letter to Pammachius’ (Translated by Kathleen Davis) in The Translation Studies, Reader- Lawrence Venuti (Editor), Routledge. Pp- 21-30.

©Sriniket Kumar Mishra